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makke ki kheti कैसे करे?

 makke ki kheti कैसे करे?

जानिए makke ki kheti कैसे करे?

makke ki kheti kese kare

भूमि में जस्ते की कमी होने पर बारिश के मौसम से पहले 25 किलो जिंक सल्फेट की मात्रा को खेत में डाल देना चाहिए। खाद और उवर्रक को चुनी गई उन्नत किस्मों के आधार पर देना चाहिए इसके बाद बीजो की रोपाई के समय नाइट्रोजन की 13 मात्रा को देना चाहिए, और इसके दूसरे भाग को बीज रोपाई के एक माह बाद दे, और अंतिम भाग को पौधों में फूलो के लगने के दौरान देना चाहिए।

बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Sowing Seeds Right time and Method):

makke ki kheti में बीजो को लगाने से पहले उन्हें अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे बीजो की वृद्धि के दौरान उनमे रोग न लगे द्य इसके लिए सबसे पहले बीजो को थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम की मात्रा को प्रति 1 किलो बीज को उपचारित कर ले द्य इस उपचार से बीजो को को फफूंद फफूंद से बचाया जाता है द्य इसके बाद बीजो को मिट्टी में रहने वाले कीड़ो से बचाने के लिए प्रति किलो की दर से थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम की मात्रा से उपचारित कर लेना। चाहिए।

मक्के के बीजो की रोपाई सीड ड्रिल विधि द्वारा भी बो सकते है द्य इसके बीजो को बोने के लिए खेत में 75 ब्ड की दूरी रखते हुए, कतारों को तैयार कर लेना चाहिए, तथा प्रत्येक बीज के बीच में 22 ब्ड की दूरी अवश्य रखे। एक एकड़ के खेत में लगभग 21,000 मक्के के पौधों को लगाया जा सकता है। मक्के के बीजो की रोपाई को वर्ष में अलग-अलग ऋतुओं में की जा सकती है द्य यदि आप चाहे तो इसके बीजो को मार्च के अंत तक बो सकते है,। या फिर अक्टूबर से नवंबर तक या फिर जनवरी और फरवरी के मध्य भी इतके बीजो की बुवाई को किया जा सकता है।

मक्के के पौधों की सिंचाई (Maize Plante rigation) :

मक्के की फसल को पूर्ण रूप से तैयार होने तक 400-600 मिमी पानी की जरूरी होती है द्य इसकी पहली सिंचाई को बीजो की रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए द्य इसके बाद जब पौधों में दाने भरने लगे तब इसे सिंचाई की। आवश्यकता होती है द्य मक्के की फसल की सिंचाई बीजो के रोपाई के समय के अनुसार की जाती है द्य इसके अतिरिक्त मक्के की फसल को खरपतवार से भी बचाना पड़ता है द्य खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई दृ गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है द्य makke ki kheti में जब खरपतवार दिखाई दे तो । प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण कर लेना चाहिए, तथा 20 से 25 दिन के अंतराल में खरपतवार दिखने पर उसे निकल देना। चाहिए।

अतिरिक्त कमाई (Extra Earnings) :

मक्के की फसल के दौरान आप makke ki kheti में अन्य फसलों को ऊगा कर अतिरिक्त कमाई भी कर सकते हैद्य इसमें आप मूंग, तिल, सोयाबीन, बोरो या बरबटी, उरद, सेम जैसी फसलों को ऊगा सकते हैद्य जिससे किसानो को आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना। पड़ेगा।

मक्के के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम(Maize plant Diseases and their Prevention) :

तना। मक्खी रोग इस तरह के रोग का प्रकोप फसल में बसंत के मौसम में देखने को मिलता है द्य तना मक्खी रोग पौधों पर हमला कर उनके तनो को खोखला कर देता है, जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है इस रोग की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल की 2 से 3 मिलीलीटर की मात्रा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से डाल कर छिड़काव करे ।

तना भेदक सुंडी रोग इस तरह का रोग तने में छेद कर उसे अंदर सेखाकर उसे सूखा देता है द्य जिससे तना सूख कर नष्ट हो जाता है। क्वीनालफॉस 30 या क्लोरेन्ट्रानीलीप्रोल का उचित मात्रा में छिड़काव कर इसरोग की रोकथाम की जा सकती है।भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग इस किस्म का रोग पौधों को अधिक हानि पहुँचता है।

इस रोग के लग जाने से पौधों की पत्तियो पर हल्की हरी या पीली चौड़ी धारिया दिखाई देने लगती है द्य रोग के अधिक बढ़ जाने पर यह धारिया लाल रंग की हो जाती है, तथा सुबह के समय पत्तियो पर राख के रूप में फफूंद नजर आती है। मेटालेक्सिल या मेंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

पत्ती झुलसा कीट रोग :

यह कीट रोग पत्तियों के निचले हिस्से से शुरू होकर कची धूल और आक्रमण करता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पत्तियों की निचली सतह पर लम्बे, भूरे, अण्डाकार धब्बे नजर आते है। मेन्कोजेब या प्रोबिनब की उचित मात्रा का घोल बना कर पौधों पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। इसके अतिरिक्त भी मक्के के पौधों में कई रोग देखने को मिल जाते हैं, जैसे:- जीवाणु तना सड़न, रतुआ, सफेद लट, सैनिक सुंडी, कटुआ, पत्ती लपेटक सुंडी आदि।

पौध अंगमारी रोग से बचाव (Plant Blight Disease Prevention) :

इस रोग के हो जाने पर कपास के टिंडो के पास वाले पत्ते लाल कलर के हो जाते हैं, खेत में नमी होने पर भी पौधा मुरझाने लगता है। इस रोग के लग जाने पर पौधा कुछ दिन बाद ही नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से बचाव (Preventing Alternaria Leaf Spot Disease) :

यह बीज जनित रोग होता है, जिसके लग जाने पर पहले पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है द्य फिर काले भूरे रंग का गोलाकार बन जाता है, यह रोग पत्तियों को जल्द ही गिरा देता है। इसका असर पैदावार को सिमित कर देता है, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा से इस पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

जड़ गलन रोग से बचाव (Root Rot Disease Prevention):

जड़ गलन यह समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से देखने को मिलती है, इससे बचाव के लिए एक ही तरीका है कि खेत में जल का भराव न रहने दें। इस तरह की समस्या अधिकतर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है। इस रोग में पौधा शुरुआत से ही मुरझाने लगता है, इससे बचाव के लिए खेत में बीज को लगाने से पहले कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यूपी 0-3% या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0-2% से उपचारित कर लेना चाहिए द्य कपास की फसल के साथ • मोठ की बुवाई करने से भी इसका बचाव किया जा सकता है।

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