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Muli Ki Kheti : जानने के लिए पढ़िए पूरा लेख

Muli Ki Kheti : जानने के लिए पढ़िए पूरा लेख

मूली एक आसान और जल्दी तैयार होने वाली सब्जी है जो भारत के कई हिस्सों में उगाई जाती है। इसकी जड़ें साफ, कुरकुरी और स्वादिष्ट होती हैं जो लोगों को पसंद आती हैं। Muli Ki Kheti एक ऐसी खेती है जो कम समय में अच्छा मुनाफा देती है और हर तरह के किसान के लिए फायदेमंद है।

Muli Ki Kheti Kaise Kare

Muli Ki Kheti के लिए सही बीज का चयन और उन्हें सही तरीके से लगाना बहुत जरूरी है। मुली को सीधा खेत में लगाया जाता है और ये पौधा विकसित होने के लिए ज्यादा देखभाल नहीं मांगता। बीज को खेत में 1.5 से 2 सेमी गहराई में बोया जाता है और बीज को खेत में 6-8 सेमी का फसल छोड़ा जाता है। फसल को अच्छे से उगाने के लिए समय-समय पर देखभाल और सिंचाई जरूरी होती है।

जलवायु और मिट्टी

Muli Ki Kheti के लिए ठंडा मौसम सबसे उपयुक्त होता है, क्योंकि ये सब्जी ठंडी जलवायु में अच्छे से उगती है। इसकी खेती के लिए 10°C से 25°C के बीच का तापमान आदर्श होता है।
मुली की खेती के लिए रेतीली-डोमट मिट्टी या बालू मिट्टीअच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्टार 6-7 के बीच होना चाहिए, और पानी निकासी के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से सूखा होना चाहिए, ताकि अच्छे से विकास कर सकें।

मुली की प्रसिद्ध किस्में

भारत में मुली की कई प्रसिद्ध किस्में हैं जो अलग-अलग जलवायु और क्षेत्रों में उगायी जाती हैं: पूसा चेतकी: गर्मी में उगाई जाने वाली जल्दी तयार होने वाली क़िस्म ।
जापानी व्हाइट: बड़े आकार और सुंदर साफ जड़ों वाली मुली किस्मत, जो विशेष शीतकालीन खेती के लिए मशहूर है।
पूसा रश्मी: सर्दी के लिए एक प्रसिद्ध किस्में जो अच्छी उत्पादन देती है और सूखी मिट्टी में भी उग सकती है।

जमीन की तैयारी

मूली की खेती के लिए जमीन की तैयारी करना भी बहुत जरूरी है। पहले गहरा जोत कर ज़मीन को अच्छे से मुलायम कर लेना चाहिए, ताकि जड़े आसानी से विकास कर सकें। दो या तीन बार जमीन की जोताई करनी चाहिए, और पुरानी फसल के अवशेष और गंदे घास-फूस को निकालना चाहिए। जैविक खाद का प्रयोग जमीन की उर्वरकता को बनाए रखने के लिए उपयुक्त होता है।

बिजाई का समय

Muli ki kheti

मूली की बिजाई का समय जलवायु और क्षेत्र के अनुसार बदलता है। सर्दी के मौसम में मूली की खेती के लिए अक्टूबर से नवंबर तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है, जबकी गर्मियों के लिए फरवरी से मार्च तक बिजाई कर सकते हैं। मुली की फसल जल्दी तैयार होती है और 45-60 दिनों के बीच में कटने योग्य हो जाती है।

बिज

मुली की खेती के लिए अच्छे गुणवत्ता वाले बिज का चयन बहुत जरूरी है। एक हेक्टेयर खेत के लिए 8-10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीज के चयन के समय उन्नत किस्मो का विकल्प चुनना चाहिए जो रोग-मुक्त हो और अच्छी उपज दे सके।

खरपतवार नियन्त्रण

मूली की खेती में खरपतवार का नियन्त्रण करना जरुरी होता है, क्योंकि ये जड़ो को कमजोर कर सकते हैं। खरपतवार नियन्त्रण के लिए हाथ से निन्दाई (निराई) करना सबसे सही तरीका होता है। लगभग 20 दिन के बाद निंदई कर लेनी चाहिए और अगर जरूरी हो तो केमिकल दवा का उपयोग भी किया जा सकता है।

खाद

मुली की खेती के लिए जैविक खाद जैसा वर्मी-कम्पोस्ट, गोबर की खाद या फिर नीम खाद का प्रयोग करना लाभदायक होता है। फसल के बेहतर विकास के लिए पोटाश और नाइट्रोजन खाद देना चाहिए। रसायनिक खाद का सही मात्रा में प्रयोग करके जड़े स्वस्थ और तेज विकास करती हैं।

सिंचाई

मुली के पौधे को लगातार सिंचाई की जरुरत होती है। मुलियों को साफ और बढ़िया उगने के लिए प्रथमिक रूप से सिंचाई पर ध्यान देना चाहिए। हर 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, और खेत की मिट्टी को ना तो ज्यादा गीली और ना ही सुखी होने देना चाहिए। खासकर , बिजाई के तुरंट बाद और जधेन विकसित होने तक सिंचाई लगती होनी चाहिए।

कटाई

मूली की कटाई बिजाई के 40-60 दिन के बाद हो जाती है, ये किस्में और फसल की स्थिति पर निर्भर है।जड़े जब 20-25 सेमी लंबी और बढ़िया आकर की हो जाए तो इनकी कटाई की जाती है। जड़े ज्यादा पुरानी होने पर कड़क हो सकती है, इसलिए समय पर कटाई करना बहुत जरूरी होता है।

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