तरबूज की खेती कैसे करे : फरवरी में गर्मियों के राजा कहे जाने वाले फल की खेती
अगर आप इस गर्मियों में अच्छी कमाई करने की सोच रहे हैं , तो पढ़े तरबूज की खेती कैसे करे ब्लॉग को जो आपको इसकी खेती से जुडी हर जानकारी प्रदान करेगा जिसकी मदत से आप इसकी खेती के लिए अहम जानकारी जैसे खेत को किसे जोते , मिट्टी का चयन कैसे करें,इसके अलावा आपको सभी जानकारी हमारे इस ब्लॉग में मिल जायेगी | तो हमारे इस ब्लॉग को पढ़ना न भूले और अगर आप को हमारे ब्लोग की जानकारी अच्छी लगी हो तो वेबसाइट में आ रहे नोटिफिकेशन पर क्लिक करदे जिससे हर जानकारी आपको सबसे पहले मिल जायेगी |
तरबूज की खेती कैसे करे जिस से हो मुनाफा
Watermelon Farming
तरबूज की फसल आपको सबसे ज्यादा गर्मियों के समय मिलेगी, जो की फरवरी या मार्च में बोई जाती हैं | गर्मियों के समय तरबूज खाने के भी फायदे हैं वही अगर आप भी इस समय इसकी खेती करते हैं , तो आपको काफी फायदा हो सकता हैं इसलिए ध्यान से पढ़े |
तरबूज की खेती का समय
इसकी खेती का समय इलाकों और वातावरण के हिसाब से से अलग अलग होता हैं | जिस तरह कई जगह पर तरबूज की खेती के लिए सही समय फरवरी से लेकर मार्च तक होता हैं जिसमे आप इसकी बुवाई फरवरी तक कर देनी चाहिए जिस आपको मई के महीने तक तरबूज की फसल जायेगी | अगर आप अप्रैल या मई के महीने में इसकी खेती करते हैं, जो की पहाड़ी इलाकों में खासकर देखी जाती हैं, तो फिर फसल आपको जून तक मिल पाती हैं |
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तरबूज की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है
इसकी खेती भारत में बहुत अधिक पैमाने पर की जाती है , जिसमें उत्तर प्रदेश का पहला नंबर है इसके बाद आंध्र प्रदेश ,तमिलनाडु ,कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल ,मध्य प्रदेश ,हरियाणा ,महाराष्ट्र, झारखंड का नंबर आता है | निकाले गए नम्बरों के अनुसार यूपी में 706.65 लाख तन तरबूज का उत्पादन होता है ,जो की एक राज्य के अनुसार सबसे अधिक हैं |
तरबूज कितने दिन में पकता है?
तरबूज की फसल को पकने में समय उसकी किस्म पर निर्भर करता हैं , आमतौर पर इसकी फसल 80 से 90 दिनों में पक जाती हैं | जब कोई किस्म ऐसी भी होती हैं जिसमे 100 दिन से ज्यादा भी लग जाते हैं |
तरबूज की खेती कैसे करें
तरबूज की खेत करने के लिए पढ़े इन पॉइंट्स को :
- खेती करने के लिए आपको सबसे पहले अपने खेत की सही तरह से जुताई करनी हैं |
- बीजों का इस्तेमाल सही तरह से करे , और किसी खाद की दुकान से खरीद ले |
- फिर आपको बीजों को क्यारियों में लगाना हैं और ध्यान देना हैं की बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 150 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए |
- बीजों को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोये और 5 से 7 दिनों में उनमे सिंचाई देते रहे|
- अगर आप एक एकड़ में तरबूज की खेती करना चाहते हैं तो ध्यान दे की 300 से 400 ग्राम बीजों की जरूरत होगी |
- तरबूज की खेती 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती हैं |
तरबूज में लगने वाले रोग
1. विल्ट रोग
इसके लक्षण:
पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे सूखने लगती हैं।
जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं और पौधा मर जाता है।
उपाय:
. रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
. खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
. कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा विरिडी का प्रयोग करें।
2. पाउडरी फफूंद
इसके लक्षण:
पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर जैसा पदार्थ जम जाता है।
. पौधों की वृद्धि रुक जाती है और फल खराब हो जाते हैं।
उपाय:
सल्फर आधारित फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
. रोगग्रस्त पौधों को हटा दें और खेत में अधिक नमी न आने दें।
. डाइथेन एम-45 का छिड़काव करें।
3. ब्लाइट रोग
इसके लक्षण:
पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
. अधिक नमी होने पर यह रोग तेज़ी से फैलता है। उपाय:
रोग प्रतिरोधी बीजों का प्रयोग करें।
. मैन्कोज़ेब या रिडोमिल गोल्ड का छिड़काव करें।
सुबह सिंचाई करें ताकि अधिक नमी न रहे।
4. तरबूज मोजेक वायरस
इसके लक्षण:
पत्तियों पर पीले-हरे धब्बे दिखने लगते हैं।
पौधों की वृद्धि रुक जाती है और फल विकृत हो जाते हैं।
उपाय:
वायरस फैलाने वाले कीटों (जैसे सफेद मक्खी और एफिड्स) को नियंत्रित करें।
रोगग्रस्त पौधों को तुरंत हटा दें।
इमिडाक्लोप्रिड या थायमेथोक्सम का छिड़काव करें।
5. फल सड़न रोग
लक्षण:
फलों और पत्तियों पर गहरे भूरे या काले धब्बे दिखाई देते हैं।
फल सड़ने लगते हैं और समय से पहले गिर जाते हैं।
उपाय:
कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे फफूंदनाशकों का छिड़काव करें।
खेत में अच्छी जल निकासी रखें और पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें।
बुवाई से पहले बीजों को थायरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
6. जड़ सड़न रोग
इसके लक्षण:
पौधे की जड़ें सड़ने लगती हैं और पौधा मुरझा जाता है।
यह रोग अधिक नमी और जलभराव वाले क्षेत्रों में तेजी से फैलता है।
उपाय:
खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें,ट्राइकोडर्मा फंगस का प्रयोग करें ,बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करें।