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Tea Farming : करिये हर दिलो का प्यार कहे जाने वाली चाय की खेती

Tea Farming : करिये हर दिलो का प्यार कहे जाने वाली चाय की खेती

चाय, यानी कि हमारी सबसे पसंदिंदा पी, सिर्फ हमारे दिन की शुरूआत का हिसा नहीं होती, बल्की ये एक व्यवसायिक रूप में भी काफी फायदेमंद हो सकती है। भारत में Tea Farming काफी प्राचीन है और दुनिया भर में हमारी चाय उत्पादन मशहूर है। अगर आप भी चाय की खेती करने का सोच रहे हैं, तो ये जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी होगी।

चाय की खेती कैसे करें

Tea Farming

Tea Farming के लिए सबसे पहले आपको एक उन्नत क्षेत्र का चयन करना होगा जहां पर जलवायु और मिट्टी चाय की खेती के लिए अनुकूल हो। आपको चाय के पौधे लगाने से पहले अपने क्षेत्र की परीक्षा करनी होगी, क्योंकि चाय के पौधे को अच्छी नशीन मिट्टी, नदी या पहाड़ी क्षेत्र, और अच्छी जल निकासी वाली ज़मीन चाहिए होती है।

चाय की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

Tea Farming के लिए ठंडी और आधी-गीली जलवायु (आर्द्र) सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि क्षेत्र में वर्षिक वर्षा 150-300 सेमी के बीच हो और तापमान 18-30 डिग्री सेल्सियस रहे, तो ये चाय की खेती के लिए अच्छा होता है। मिट्टी की बात करें तो चाय की खेती के लिए अधिक जैविक पदार्थ और बेहतर जल निकासी वाली मिट्टी, चाय की खेती के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही, ऐसी मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की मात्रा ज्यादा हो, खेती के लिए लाभकारी होती है। अम्लीय प्रकृति वाली मिट्टी, जिसका pH स्तर 4.5 से 5.5 के बीच हो, चाय के पौधों के लिए आदर्श मानी जाती है।

चाय की खेती का मौसम

चाय की खेती का सही मौसम वर्षा के समय और उसके बाद का समय होता है। भारतीय राज्यों में, चाय के पौधे लगाने का समय जून से सितंबर तक का माना जाता है, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है। मॉनसून के बाद चाय के पौधे जल्दी से विकसित होते हैं, और इस दौरान उनकी देखभाल भी आसान होती है।

चाय के पौधे कैसे लगाएं

चाय के पौधे को नर्सरी में उगाया जाता है और जब ये पौधे 9-12 महीने के हो जाते हैं, तब इन्हें खेतों में रोप दिया जाता है। पौधों को 1.5 से 1.2 मीटर के फासले पर लगाया जाता है, ताकी अच्छी तरह से विकास हो सके। हर पौधे की गहराई और अंतर काफी महत्तवपूर्ण होते हैं, जिससे चाय की जड़ो को मजबूत होने का समय मिलता है।

चाय की उन्नत किसमें

चाय की कई उन्नत किसमें उपलब्ध हैं जो व्यावसायिक खेती के लिए उपयोगी होती हैं। भारत में असम की चाय, दार्जिलिंग की चाय और नीलगिरि की चाय काफी मशहूर है। इनमें से असम और नीलगिरि क्षेत्र की चाय मीठी और स्वादिष्ट होती है, जबकी दार्जिलिंग की चाय हल्की और खुशबू वाला होती है। खेती के लिए बेहतर किसम का चयन करना जरूरी होता है।

नियंत्रण रेखा (खरपतवार नियंत्रन)

चाय की खेती में खरपतवार का नियम एक महत्वपूर्ण कदम होता है। खरपतवार यानी अनवश्यक झाड़ियां पौधों से पानी, पोषक तत्व और रोशनी छीन लेती हैं,जिसके कारण चाय के पौधों का विकास रुक जाता है। खरपतवार के नियमों के लिए खेतों को नियम के अनुसार सुरक्षित रखना, गीली घास का इस्तेमाल करना, या फिर जैविक या रासायनिक जड़ी-बूटियों का उपयोग कर सकते हैं।

सिंचाई

चाय के पौधों के लिए सिंचाई भी एक महत्वपूर्ण तत्व है, विशेषर उन क्षेत्रों में जहां बारिश कम होती है। पौधों के विकास के अनुरूप सिंचाई की मांग बढ़ती है, और गरम मौसम में इनमें पानी की कमी और ज्यादा होती है। ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर का उपयोग करके पानी का लाभ उठाया जा सकता है और बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है।

चाय की पत्तियों की कटाई

चाय की पत्ती की पहली कटाई लगभग 3 साल बाद होती है जब पौधे पूरी तरह विकसित हो चुके होते हैं। पतियों की कटाई हाथ से या किसी मशीन जरिये की जाती है है। पतियों को काटा जाता है जब वो नई हो और बड़ी हुई हो, क्योंकि इन पतियों से चाय की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त होती है। कटाई का समय महत्तवपूर्ण होता है और इसे जनवरी से नवंबर तक किया जाता है।

चाय की खेती से लाभ

चाय की खेती से व्यवसायिक रूप में काफी फायदे हो सकते हैं। इससे आपको एक अच्छा मुनाफ़ा मिल सकता है, क्योंकि चाय की मांग पूरी दुनिया में बढ़ रही है। आप ऑर्गेनिक चाय या प्रीमियम चाय के सेगमेंट में भी अपना प्रोडक्ट लॉन्च करके अच्छा फायदा कमा सकते हैं। चाय की फसल एक बार लगाने पर कई सालों तक उत्पादन देती है, जो इसे व्यवसायिक रूप से लाभदायक बनाता है।

भारत में चाय की खेती

भारत में Tea Farming प्राचीन समय से होती आ रही है और हम दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादन में से एक हैं। असम, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग), तमिलनाडु (नीलगिरि) जैसे राज्यों में चाय की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत से निर्यात होने वाली चाय दुनिया भर में लोकप्रिय है और ये हमारे देश के लिए एक बड़ा आर्थिक स्तंभ है।

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