Blog

  • Giloy Ki Kheti : गिलोय जो रखे सवास्थ्य का ध्यान

    Giloy Ki Kheti : गिलोय जो रखे सवास्थ्य का ध्यान

    Giloy Ki Kheti : गिलोय जो रखे सवास्थ्य का ध्यान

    गिलोय, जिसे (Tinospora cordifolia) नाम से भी जाना जाता है, एक औषधि पौधा है जो आयुर्वेद में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रसिद्ध है। इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण इसकी मांग बनी रहती है । गिलोय को “अमृता” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये कई प्रकार के रोग निवारण में उपयोगी होता है। इसलिए, Giloy Ki Kheti किसानो के लिए एक फ़ायदेमंद व्यवसाय बन सकती है। आइए जानते हैं कैसे गिलोय की खेती की जाती है और इसके लिए कौन से तरीके अपनाए जा सकते हैं।

    गिलोय की खेती कैसे करें

    गिलोय एक लता प्रकार का पौधा है जो एक समर्थन के साथ विकास करता है, जैसे पेड़ या खंभा। गिलोय को काटने के माध्यम से उगाया जा सकता है, जिसमें गिलोय के पुराने तने का एक हिस्सा काट कर नई जमीन में लगाया जाता है। इसके पोधे को जल्दी ही जड़ पकडने में मदद मिलती है। गिलोय को ऑर्गेनिक तरीके से उगाया जा सकता है जिससे इसका उपयोग और भी लाभदायक हो जाता है।

    गिलोय की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

    Giloy Ki Kheti के लिए अधिक से अधिक उपयुक्त गर्म और अध्रक्षीत होती है। भारत के कई राज्यों में इसकी खेती सफल होती है। 25°C से 35°C तक का तापमान गिलोय की खेती के लिए अनुकूल होता है। मिट्टी की बात करें तो गिलोय को सबसे ज्यादा रेतीली मिट्टी, चिकनी मिट्टी या दोमट मिट्टी पसंद होती है। मिट्टी का पीएच स्टार 6-7.5 के बीच होना चाहिए ताकि फसल अच्छे से हो सके।

    गिलोय की खेती के लिए जमीन की तैयारी

    गिलोय की खेती के लिए जमीन को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। ज़मीन को एक बार गहरा हल चलाकर नरम बनाया जाता है। यदि मिट्टी अधिक कड़ी है तो गोबर या जैविक खाद का इस्तेमल भूमि को नरम और उपजी बनाने के लिए तैयार किया जाता है। घराई में 1-2 बार हल चलाना आवश्यक है ताकि अच्छे पौधे विकास हो सके।

    बिजाई

    गिलोय की बिजाई कटिंग या तने से की जाती है। तन को 6-8 इंच के टुकड़ों में काट कर 1-2 इंच गहराई में जमीन में डाल दिया जाता है। तने के टुकड़ों को ऐसे स्थान पर लगाया जाता है जहां पर उन्हें समर्थन मिल सके, जैसे कि बगीचों में या किसी वटियारे के पास। बिजाई का समय मानसून या गर्मी के आरंभ में बेहतर होता है।

    सिंचाई

    गिलोय के पोधे को प्रारम्भिक अवस्था में अधिक सिंचाई की जरूरत होती है, खास कर जब तक वो पूरी तरह से जम नहीं जाता। हल्का गिला माहोल पोधों के लिए फ़ायदेमंद होता है । प्रति सप्ताह 1-2 बार सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन ये ध्यान रहे कि पानी का ज्यादा जमाव ना हो क्योंकि इससे जड़ो में सड़न हो सकता है।

    खरपतवार नियन्त्रण

    गिलोय की खेती में खरपतवार नियन्त्रण करना जरूरी है ताकि फसल का विकास अच्छे से हो सके। खरपतवार को हाथों से निकालना या जैविक शाकनाशी का उपयोग करना फ़ायदेमंद हो सकता है। मल्चिंग का इस्तमाल भी किया जा सकता है, जो पौधों के आस-पास की मिट्टी को नरम रखता है और खरपतवार को उगने से रोकता है।

    फसल की कटाई

    गिलोय की फसल लगभग 8-12 महीने में तैयार हो जाती है। जब पोधे का तन थोड़ा मोटा हो जाता है तब इसे काटा जाता है। तने को काट कर उसका उपायोग किया जाता है या बेच दिया जाता है। गिलोय के तने को ध्यान से काटा जाता है ताकि बाकी पोधा आगे विकास करता रहे ।

    गिलोय की खेती के फायदे

    Giloy Ki Kheti

    Giloy ki kheti  किसानो के लिए एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है। आयुर्वेदिक बाजार में इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गिलोय को आयुर्वेद में रोग निवारण और रोग प्रतिकार शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, गिलोय की खेती करने में कम लागत लगती है और इसका उत्पादन उचित दामों पर बिकता है, जो किसानो के लिए मुनाफ़ा कमाने का अच्छा ज़रिया बन सकता है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Bamboo Farming 

    FAQs

    1. गिलोय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?
    गिलोय की खेती के लिए 25°C से 35°C का तापमान सबसे उपयुक्त होता है।

    2. गिलोय को कैसे उगाया जाता है?
    गिलोय को कटिंग के माध्यम से उगाया जाता है, जिसमें पुराने तने के टुकड़ों को नई जमीन में लगाया जाता है।

    3. गिलोय की बिजाई का सही समय क्या है?
    गिलोय की बिजाई का सबसे सही समय मानसून या गर्मी के आरंभ में होता है।

    4. गिलोय की फसल कब तैयार होती है?
    गिलोय की फसल लगभग 8-12 महीने में तैयार हो जाती है।

    5. गिलोय के पौधों को सिंचाई की कितनी आवश्यकता होती है?
    गिलोय के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में प्रति सप्ताह 1-2 बार सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन पानी का अधिक जमाव नहीं होना चाहिए।

  • Shatavari Ki Kheti : एक सम्पूर्ण मार्गदर्शक

    Shatavari Ki Kheti : एक सम्पूर्ण मार्गदर्शक

    Shatavari Ki Kheti : एक सम्पूर्ण मार्गदर्शक

    शतावरी एक औषधि पौधा है जो आयुर्वेद में अपने स्वास्थ्य लाभों के लिए मशहूर है। इसका इस्तमाल प्राचीन समय से कई रोग निवारण और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हो रहा है। आज के समय में शतावरी की मांग बढ़ रही है, और इसकी खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है। इस कंटेंट में हम जानेंगे कि Shatavari Ki Kheti कैसे की जाती है और इसका व्यावसायिक उपयोग कैसे किया जा सकता है।

    शतावरी की खेती कैसे करें

    Shatavari Ki Kheti

    Shatavari Ki Kheti के लिए सबसे पहले आपको अच्छी मिट्टी और उपयुक्त जलवायु का ज्ञान होना चाहिए। इसकी खेती करने के लिए जैविक तरीके अपनाएं जा सकते हैं, क्योंकि शतावरी एक लचीला पौधा है जो अलग-अलग प्राकृतिक स्थितियों में उग सकता है। इसके अलावा बीज या रूठों के मध्यम से इसकी खेती की जाती है, और ये 18-24 महीनेमें तैयार हो जाती है।

    शतावरी की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

    शतावरी को अधिक से अधिक उपयुक्त गर्म और सुरक्षित बनाए रखता है। 25°C से 35°C तक का तापमान इसकी खेती के लिए उत्तम माना जाता है। मिट्टी की बात करें तो शतावरी की खेती के लिए रेतीली या बालू मिट्टी सबसे अच्छी होती है, जिसमें पानी की निकसी अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच स्टार 6-8 के बीच हो तो बेहतर उत्पादन मिलता है।

    शतावरी की उन्नत किस्मे

    शतावरी की कई प्रकृतियां हैं जो आजकल खेती में इस्तेमाल की जाती हैं। इसमे मुख्य रूप से “शतावरी ऑफिसिनालिस” और “शतावरी एड्सेन्डेंस” प्रमुख हैं, लेकिन “शतावरी रेसमोसस” की मांग सबसे ज्यादा होती है क्योंकि इसमें अधिक औषधि गुण पाये जाते हैं।

    शतावरी की खेती के लिए जमीन की तैयारी

    शतावरी की खेती के लिए जमीन को पहले अच्छे से हल चलाकर तैयार करना होता है। मिट्टी को नरम बनाने के लिए गर्माहट तक हल चलाना आवश्यक होता है। जैविक खाद का इस्तमाल जमीन की उपजौ शक्ति को बढ़ाता है। 25-30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर ज़मीन में मिलती है।

    बिजाई

    शतावरी की बिजाई के लिए छोटे पोधे या रूठों का इस्तमाल किया जाता है। इन्हें 30-40 सेमी के फासले पर लगाया जाता है और प्रति पोधे के बीच का फासला 1 मीटर तक होना चाहिए। बिजाई का समय वर्षा के बाद, अक्टूबर-नवंबर तक सबसे बेहतर होता है।

    खरपतवार नियन्त्रण

    शतावरी की खेती में खरपतवार एक बड़ी समस्या हो सकती है, इसलिए इसका नियन्त्रण आवश्यक है। मलचिंग या हाथों से निकला जा सकता है खरपतवार को । इसके अलावा जैविक शाकनाशी का भी उपयोग किया जा सकता है।

    सिंचाई

    शतावरी के पोषण को विकास के लिए समय पर सिंचाई की जरूरत होती है। रेतीली मिट्टी होने के कारण पानी जल्दी सुख जाता है, इसलिए प्रति सप्ताह एक बार सिंचाई जरूरी होती है। ड्रिप सिंचाई का उपयोग भी शतावरी की खेती में फ़ायदेमंद होता है।

    शतावरी के पोधे की देखभाल

    शतावरी के पोधे को खास देखभाल की जरूरत होती है, खासकर उनकी जड़ो के आस-पास। समय पर खाद देना और खरपतवार का नियन्त्रण करना इसकी अच्छी उपज शक्ति के लिए जरूरी है। पोधे को कभी-कभी फंगल संक्रमण भी हो सकता है, जिसका इलाज जैविक कवकनाशी से किया जा सकता है।

    फसल की कटाई

    शतावरी की फसल 18 से 24 महीने में तैयार हो जाती है। जब पोधे के मूल से सफेद जड़ें उबरने लगती हैं, तब उन्हें निकाल कर सफाई कर दी जाती है। इन जड़ो को ध्यान से निकालना होता है ताकि पोधो को नुकसान ना हो । सफ़ाई के बाद इन्हें सुखा कर बेचा जाता है।

    शतावरी की खेती के लाभ

    शतावरी की खेती से कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे इसकी मांग औषधि बाजार में लगातार बढ़ रही है। शतावरी को आयुर्वेद में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण उपचार माना जाता है। इसके अलावा, शतावरी की खेती किसानो को अच्छा मुनाफ़ा देती है क्योंकि इसकी उपज कम होती है और बिकरी उचित दाम पर होती है।

    भारत में शतावरी की खेती

    भारत में Shatavari Ki Kheti आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में होती है। राज्य की जलवायु और मिट्टी शतावरी के विकास के लिए अनुकूल होती है, और ये किसानों के लिए एक लाभदायक फसल साबित होती है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Benefits of Drinking Coconut Oil

    FAQs

    1. शतावरी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?
    शतावरी की खेती के लिए 25°C से 35°C का तापमान सबसे उपयुक्त होता है।

    2. शतावरी की फसल कब तैयार होती है?
    शतावरी की फसल 18 से 24 महीने में तैयार होती है।

    3. शतावरी की बिजाई का सही समय क्या है?
    बिजाई का सबसे सही समय वर्षा के बाद, अक्टूबर-नवंबर तक होता है।

    4. शतावरी की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे किया जा सकता है?
    खरपतवार नियंत्रण के लिए मलचिंग, हाथ से निकालना या जैविक शाकनाशी का उपयोग किया जा सकता है।

    5. शतावरी के पोधों की देखभाल में क्या महत्वपूर्ण है?
    पोधों को समय पर खाद देना, खरपतवार का नियंत्रण करना और फंगल संक्रमण से बचाना महत्वपूर्ण है।

  • Bamboo Farming :पढ़ो ये ब्लॉग और पाओ इस से जुड़ी हर मुमकिन जानकारी

    Bamboo Farming :पढ़ो ये ब्लॉग और पाओ इस से जुड़ी हर मुमकिन जानकारी

    Bamboo Farming :पढ़ो ये ब्लॉग और पाओ इस से जुड़ी हर मुमकिन जानकारी

    क्या आप ऐसी खेती के बारे में सोच रहे हैं जो आपको फ़ायदा तो प्रदान करेगी ही साथ-साथ आपके खेत की मिट्टी की उर्वरक छमता को अच्छी कर देगी तो पढ़ें हमारे ब्लॉग “Bamboo Farming ” जो आपको इसकी खेती और इसमें होने वाली बीमारियों के बारे में बताएगा, अभी पढ़ें और अगर आप हमारे इंस्टाग्राम चैनल से जुड़ना चाहते हैं तो यहां Click करें

    Bamboo Farming

    Bamboo Farming से जुडी हर जानकारी यहां प्राप्त करें

    बांस के बारे में

    बांस जो बम्बू के नाम से भी जाना जाता है, ये एक अनोखा और तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है और इसकी प्रवृत्ति एक घास की तरह ही होती है पर ये लम्बाई में पेड़ की तरह होता है | बांस को हम फर्नीचर पेज और हस्तशिल्प जैसे चीज को बनाने में प्रयोग में लेते हैं | ये पर्यावरण में भी काफी महत्तवपूर्ण भूमिका रखता है क्योंकि ये कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखता है और ऑक्सीजन देता है

    Bamboo ki kheti के लिए मिट्टी

    इसकी खेती में सबसे अच्छी मिट्टी हल्की रेतीली दोमट मिट्टी होती है, जिसकी पानी को ना रुकने देने की छमता अच्छी होती है, जिस वजह से पानी रुकता भी नहीं है, जिसकी जड़ें में कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है | मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए जो इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है, वैसे इसकी खेती के लिए पानी की कम जरुरत होती है पर मिट्टी सही होनी चाहिए जिस से नामी बने रहे और पेड़ जल्दी उगे

    किस वक्त करे खेती

    Bamboo Farming के लिए सबसे अच्छा मौसम मानसून का होता है क्योंकि इस मौसम में मिट्टी में नमी सही मात्रा में होती है जिससे इनके पेड़ो में बढ़ोतरी जल्दी होती है | इसको लगाने का सही समय जून से सितंबर तक होता है जब मानसून रहता है, और अगर सिंचाई की सुविधा अच्छी है तो आप इसकी खेती कभी भी कर सकते हैं।

    Bamboo Farming

    बांस के पेड़ को कैसे लगाएं?

    ये हम यहाँ दिए गइ कुछ प्रक्रिया के द्वारा समझेंगे

    उसके खेत को तैयार करना :सबसे पहले आपको इसके पेड़ को लगाने के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना है जिसमें से उसमें कोई मिट्टी के बड़े टुकड़े ना रहे और मिट्टी में 30 से 40 सेंटीमीटर की गहराई करके गड्डे खोद दो और हमें खाद बघेरा डाल दो जिससे मिट्टी की छमता बढ़ जाए

    पेड़ को कैसे लगाये :इसके पेड़ को उगाने के लिए बीज को 1.5 से 2 मीटर की दूरी पर लगाय जिस से ये बड़े होकर एक दूसरे से टकराए ना और इनके जड़े एक दूसरे की जड़ों से ना मिले | गड्ढे में बीज डाल कर उसकी मिट्टी को आराम से दबायें

    पानी देना लागातर : इसकी खेती के लिए पानी बहुत जरूरी है अगर खेती कर रहे हैं तो शुरूवात के 6 महीने पानी जरूर दे और ध्यान दे पानी रुकना नहीं चाहिए

    मल्चिंग: मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनाए रखने में मदद मिलती है और खरपतवार को भी नियंत्रित किया जाता है।

    उर्वरक देना चाहिए: बांस की खेती में हर साल उनको संतुलित उर्वरक (फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, पोटैशियम) देना आवश्यक है क्योंकि ये पेड़ को जल्दी बढ़ाने में मदद करता है

    बांस में पाए जाने वाले रोग

    बांस ब्लाइट : ये एक प्रकार का कवक रोग है जो इसके पत्तों में लगता है, इसको कॉपर बेस fungicide से सही कर सकते हैं

    जड़ सड़न: ये अधिक पानी की सिंचाई की वजह से और खराब ड्रेनेज सिस्टम की वजह से होता है और इसे सही करने के लिए ड्रेनेज सिस्टम करे और खराब जड़ों को सही करें

    पत्ती का पीला होना: ये भी एक प्रकार का कवक रोग है जिसके पती पीले पड़ जाती है इसके लिए fungicide स्प्रे कर दे जिससे ये सही हो जाएगा

    कीट पड़ना: इसमें कीड़े मकोड़े भी लग जाते हैं जो कि आप नीम के तेल से सही कर सकते हैं|

    Bamboo farming FAQ’s

    1. बांस क्या होता है?

      • बांस एक प्रकार की घास होती है जो पानी के आस-पास के इलाकों में होती है। इसका उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है और कई प्रकार की हाथ से बनी चीज़ों, जैसे टोकरी और छतरी, के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
    2. बांस की खेती के लिए मौसम कौनसा ठीक है?

      • बांस की खेती गर्मियों के बाद और बारिश के दौरान बेहतरीन होती है क्योंकि इसमें अधिक पानी की ज़रूरत होती है। मानसून का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है।
    3. बांस की खेती कैसे शुरू करें?

      • बांस की खेती के लिए बीज या छोटे पौधे लगाए जाते हैं। मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करके और उसमें ज़रूरत के मुताबिक पानी भरकर बान उगाया जाता है।
    4. बांस कितने दिनों में तैयार होती है?

      • बांस उगने में लगभग 3 से 4 महीने लगते हैं, पर इसका समय मिट्टी, जलवायु और ठीक से पानी देने पर निर्भर करता है।
    5. बांस की खेती के लिए कितना पानी चाहिए होता है?

      • बांस की खेती के लिए अधिक पानी की ज़रूरत होती है क्योंकि यह गीले इलाकों में अच्छी तरह उगती है। खेतों में हमेशा नमी या पानी होना चाहिए।
    6. बांस की फसल से क्या लाभ होता है?

      • बांस पशु आहार के रूप में इस्तेमाल होती है और इसका आर्थिक महत्व भी है क्योंकि यह हाथ से बने उत्पादों के लिए भी इस्तेमाल होती है, जैसे टोकरी, चाप, छतरी आदि।
    7. बांस उगाने में किस किस्म की तकनीकों का उपयोग होता है?

      • बांस की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है, जिसमें गहराई कम मिट्टी में बीज बोए जाते हैं। पास में तालाब या पानी का स्रोत हो तो और अच्छा होता है।
    8. बांस की खेती के लिए कोई सरकारी योजना या सहायता उपलब्ध है?

      • कई सरकारी योजनाएँ हैं जो पशु आहार के रूप में बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सहायता प्रदान करती हैं। कृषि विभाग से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
    9. बांस की खेती में कौन-कौन से रोग या कीट लगते हैं?

    • बांस की खेती में आम तौर पर पानी की कमी या अधिकता से कुछ कीट लगने की संभावना होती है। इसलिए खेती के दौरान पानी का सही प्रबंधन ज़रूरी होता है।

    हम आशा करते हैं की आपको हमारा ये ब्लॉग जानकरीपूर्ण लगा और आप ऐसी कृषि से सम्बन्धी जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट  Aapkikheti.com पर आवश्य जाए

  • Benefits of Drinking Coconut Oil : जानिए कोकोनट ऑइल पिने के फायदे यहाँ पर

    Benefits of Drinking Coconut Oil : जानिए कोकोनट ऑइल पिने के फायदे यहाँ पर

    Benefits of Drinking Coconut Oil : जानिए कोकोनट ऑइल पिने के फायदे यहाँ पर

    नारियल तेल, यानी coconut oil, एक प्राकृतिक और स्वास्थ्य के अनुकूल तेल है जो स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। आजकल लोग नारियल को अपने आहार में शामिल कर रहे हैं क्योंकि इससे शरीर को अंदर से स्वस्थ बनाया जा सकता है।इस कंटेंट में हम Benefits of Drinking Coconut Oil के बारे में बात करेंगे, जैसे स्वास्थ्य लाभ, वजन घटाना, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, सौंदर्य लाभ, और पाचन को कैसे सुधारें।

    नारियल तेल पीने के स्वास्थ्य लाभ

    नारियल तेल पीने से शरीर को कई तरह के स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है, जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। ये कोलेस्ट्रॉल लेवल को कण्ट्रोल में रखने में मदद करता है और दिल की बिमारियों का जोखिम कम करता है। नारियल तेल के नियमित सेवन से ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, जो शरीर को दिन भर सक्रिय रखने में मदद करता है।

    नारियल तेल से वजन घटाने के फायदे

    Benefits of Drinking Coconut Oil

    नारियल तेल में मीडियम-चेन ट्राइग्लिसराइड्स (एमसीटी) होते हैं, जो फैट को बर्न करने में मददगार होते हैं। ये मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करता है, जिससे शरीर में वसा जल्दी ऊर्जा में परिवर्तित होती है। अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं, तो अपने आहार में थोड़ा नारियल तेल शामिल करना फायदेमंद हो सकता है। इसका नियमित उपयोग क्रेविंग को भी नियंत्रित करता है, जो वजन घटाने के लिए मददगार होता है।

    नारियल तेल पीने से इम्यूनिटी बढ़ाएं

    नारियल तेल में लॉरिक एसिड होता है जो शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से लड़ने की ताकत देता है। ये प्राकृतिक जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण हैं जो प्रतिरक्षा को मजबूत बनाते हैं। नियमित नारियल तेल पीने से शरीर का इम्यून सिस्टम ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करता है, जो मौसमी संक्रमण जैसे सर्दी, फ्लू और वायरल संक्रमण से बचने में मदद करता है।

    नारियल तेल पीने के सौंदर्य लाभ

    नारियल तेल सिर्फ स्वास्थ्य के लिए नहीं, बल्की सौंदर्य के लिए भी काफी फायदेमंद है। इससे त्वचा को प्राकृतिक नमी मिलती है और बालों का झड़ना भी नियंत्रित होता है। नारियल तेल के सेवन से त्वचा में चमक आती है और झुर्रियाँ कम होती हैं। ये शरीर के विषाक्त पदार्थों को कम करता है, जो त्वचा और बालों को स्वस्थ बनाने में मदद करता है।

    Benefits of drinking coconut oil on an empty stomach

    सुबह खाली पेट नारियल तेल पीने से बॉडी डिटॉक्स होती है। ये शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है और पाचन तंत्र को साफ करता है। खाली पेट नारियल तेल पीने से मेटाबॉलिज्म तेज होता है, जो पूरे दिन ऊर्जा प्रदान करता है। इसका नियमित उपयोग पेट की समस्याओं, जैसी एसिडिटी और अपच, को भी दूर कर सकता है।

    नारियल तेल से पाचन तंत्र को सुधारें

    नारियल तेल से पाचन तंत्र के लिए भी फायदेमंद होता है। इसमें एमसीटी होते हैं जो पाचन तंत्र को आसानी से अवशोषित कर लेते हैं और पोषक तत्वों को शरीर तक पहुंचने में मदद करते हैं। ये पाचन तंत्र को सुचारू करता है और मल त्याग को बेहतर बनाता है, जिससे कब्ज और अपच जैसी समस्याएं दूर होती हैं।

    पढ़िए यह ब्लॉग Aloe Vera Ki Kheti

    FAQs

    1. क्या नारियल तेल पीने से वजन घटाने में मदद मिलती है ?
    हाँ, नारियल तेल में मीडियम-चेन ट्राइग्लिसराइड्स (एमसीटी) होते हैं, जो मेटाबॉलिज्म को बूस्ट कर वसा को तेजी से ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं, जिससे वजन घटाने में मदद मिलती है।

    2. नारियल तेल पीने से इम्यूनिटी कैसे बढ़ती है ?
    नारियल तेल में लॉरिक एसिड होता है, जो शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से लड़ने की शक्ति देता है। इसके जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।

    3. क्या नारियल तेल त्वचा के लिए फायदेमंद है ?
    जी हाँ, नारियल तेल के सेवन से त्वचा में नमी बनी रहती है, जिससे त्वचा में चमक आती है और झुर्रियाँ कम होती हैं। यह त्वचा को प्राकृतिक रूप से निखारने में मदद करता है।

    4. क्या खाली पेट नारियल तेल पीना फायदेमंद है ?
    हाँ, खाली पेट नारियल तेल पीने से शरीर का डिटॉक्स होता है, विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं और पाचन तंत्र को सुधारने में मदद मिलती है। यह मेटाबॉलिज्म को तेज करता है और दिनभर ऊर्जा प्रदान करता है।

  • Pusa Double Zero Mustard 34 : इससे जुडी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर

    Pusa Double Zero Mustard 34 : इससे जुडी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर

    Pusa Double Zero Mustard 34 : इससे जुडी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर

    Pusa Double Zero Mustard 34 एक उन्नत किस्म है जो उच्च गुणवत्ता वाला तेल और बीज के लिए जानी जाती है। ये किस्म खास तौर पर उन लोगों के लिए उपयोगी है जो सरसों की खेती से अच्छी गुणवत्ता का उत्पादन चाहते हैं। इस आर्टिकल में हम पूसा डबल जीरो बिजनेस 34 की खेती, इसकी विशेषताएं , फायदे, भुगतान और बीज के बारे में जानेंगे

    पूसा डबल जीरो सरसों 34 की खेती कैसे करें

    Pusa Double Zero Mustard 34 की खेती करने के लिए सबसे पहले अच्छी गुणवत्ता का बीज चुनाव जरूरी है। इस वैरायटी के बीज को अक्टूबर के अंत से नवंबर के पहले हफ्ते तक बोया जा सकता है। मिट्टी को अच्छे से जोड़ें और जैविक खाद का उपयोग करें। बीज बोते वक्त बीच में 45-50 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। सिंचाई का ध्यान रखें समय पर पानी देना भी जरूरी है, ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो और फसल स्वस्थ तरीके से विकसित हो सके।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की विशेषताएं

    Pusa Double Zero Mustard 34

    कम इरुसिक एसिड: इस वैरायटी में इरुसिक एसिड का लेवल काफी कम होता है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
    छोटी अवधि की फसल: ये फसल सिर्फ 120-125 दिन में तैयार हो जाती है, जो किसानों के लिए समय-कुशल होती है।
    उच्च तेल सामग्री: इस सरसों की किस्म में तेल की मात्रा अधिक होती है, जो तेल का उत्पादन बढ़ाता है।
    रोग प्रतिरोधक क्षमता: पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 को कई बिमारियों से लड़ने की शक्ति होती है, जिससे फसल का नुकसान कम होता है।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 के फायदे

    स्वास्थ्य लाभ: कम इरूसिक एसिड के कारण ये सरसों तेल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, जो हृदय रोगियों के लिए सुरक्षित है।
    उच्च लाभप्रदता: उच्च तेल सामग्री और रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण विभिन्न प्रकार के किसानों के लिए अधिक मुनाफ़ा देती है।
    लघु विकास अवधि: कम समय में तैयार होने वाली ये फसल उन लोगों के लिए अच्छी होती है जो तेजी से रिटर्न चाहते हैं।

    पूसा डबल जीरो सरसों 34 की पैदावार

    पूसा डबल जीरो सरसों 34 की पैदावर मिट्टी की गुणवत्ता और सिंचाई पर निर्भर करती है। अच्छी खेती प्रकृति के साथ इसकी औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। अगर उचित उर्वरक और सिंचाई का ध्यान रखा जाये, तो भुगतान और भी ज़्यादा हो सकती है।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 के बीज की जानकारी

    Pusa Double Zero Mustard 34 के बीज उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं जो खुद को बीमारी से बचाने की शक्ति रखते हैं। बीज का अंकुरण दर भी काफी अच्छा होता है, जो स्वस्थ और उत्पादक फसल के लिए महत्वपूर्ण है। बीज का चयन हमेशा प्रमाणित स्रोतों से करें ताकि फसल का उत्पादन अधिक हो और बीमारियों से भी सुरक्षा मिले।

    पढ़िए यह ब्लॉग Tulsi Ki Kheti 

    FAQs

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की बुवाई का सही समय क्या है ?
    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की बुवाई का सही समय अक्टूबर के अंत से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते तक होता है।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की खेती के लिए कितनी दूरी पर बीज बोने चाहिए ?
    बीज बोते समय पंक्तियों के बीच में लगभग 45-50 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की विशेषता क्या है ?
    इस किस्म में कम इरुसिक एसिड, उच्च तेल सामग्री और रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। साथ ही यह फसल केवल 120-125 दिन में तैयार हो जाती है।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 के तेल की गुणवत्ता कैसी होती है ?
    इस किस्म के सरसों के तेल में कम इरुसिक एसिड होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, खासकर हृदय रोगियों के लिए।

    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की पैदावार कितनी होती है ?
    पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 34 की औसत पैदावार 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जो मिट्टी की गुणवत्ता और सिंचाई पर निर्भर करती है।

  • Sarpagandha Ki Kheti : कमाई का सुनहरा अवसर

    Sarpagandha Ki Kheti : कमाई का सुनहरा अवसर

    Sarpagandha Ki Kheti : कमाई का सुनहरा अवसर

    सर्पगंधा, जिसका वैज्ञानिक नाम राउवोल्फिया सर्पेंटिना कहते हैं, एक औषधि पोधा है जो अपने औषधीय गुणों के लिए मशहूर है। Iski jad ka upyog उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और चिंता जैसे रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है | इसका महत्व आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों में है, जिसका कारण इसकी खेती दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। चलिए, हम Sarpagandha Ki Kheti के बारे में विस्तार में जानते हैं।

    सर्पगंधा की खेती कैसे करें

    Sarpagandha Ki Kheti थोड़ा ध्यान देने वाली होती है क्योंकि इसमे जैविक तरीकों का उपयोग करना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले गुणवत्ता वाले बीज या कटिंग को चुनना चाहिए। सर्पगंधा की खेती आप अंकुर तैयार करके या सीधे खेत में रोपाई करके कर सकते हैं। इसकी खेती को 2-3 साल तक ध्यान से देखना पड़ता है, ताकि पोधा अच्छी तरह से बढ़ सके और फायदा दे।

    मिट्टी और जलवायु

    Sarpagandha Ki Kheti के लिए मिटटी और जलवायु काफी महत्तवपूर्ण होती है।इस पोधे को बलुई दोमट मिट्टी अच्छी जल निकास वाली मिट्टी पसंद आती है। मिट्टी का pH लेवल 6 से 7 के बीच होना चाहिए। हल्का गर्मी वाला इलाका इस पोधे के लिए बेहतर होता है। सर्पगंधा का पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से उगता है, और इससे ज्यादा नमी की भी जरूरत होती है।

    पौधे तैयार करना

    सर्पगंधा के पौधे को नर्सरी में बीज से या तने की कटिंग से तैयार किया जा सकता है। अगर बीजों का उपयोग कर रहे हैं, तो उन्हें 1-2 इंच गहराई पर बोयें और ऊपर से मिट्टी डाल दें। 20-25 दिन के अंदर आपको छोटे पोधे निकलते दिखेंगे। कटिंग का उपयोग करते समय, तने का 15-20 सेमी हिस्सा काट कर उसे नर्सरी में लगा सकते हैं।

    रोपाई करना

    जब पोधे 3-4 महीने के हो जाएं और उनकी ऊंचाई 10-15 सेमी हो, तब उन्हें खेत में रोपाई करनी चाहिए। हर पोधे के बीच में 30-40 सेमी का गैप छोड़ना जरूरी है, ताकि उन्हें बढ़ने के लिए स्पेस मिल सके। पोधे को रोपाई करते समय उनकी जड़ो को ध्यान से सेट करना जरूरी है, ताकि वो मिट्टी में अच्छे से सेट हो सकें।

    सिंचाई

    सर्पगंधा की खेती में सिंचाई काफी महत्वपूर्ण होती है। पोधे को सीधा पानी नहीं देना चाहिए; हल्की-हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। बारिश के मौसम में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु गर्मियों में पानी देना आवश्यक होता है। आदर्श रूप से, 7-10 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए।

    खरपतवार नियंत्रण

    Sarpagandha Ki Kheti में खरपतवार का नियंत्रण करना जरूरी होता है। खरपतवार पोधों की वृद्धि को रोकते हैं और पोषक तत्व चुरा लेते हैं। इसलिए, मैन्युअल निराई या शाकनाशी का उपयोग करना चाहिए। जैविक खेती के लिए, मल्चिंग तकनीक भी प्रभावी होती है।

    फसल की कटाई

    सर्पगंधा के पोधे को 2-3 साल तक बढ़ने दिया जाता है, फिर उसकीजड़ो को खोद कर निकालते हैं। जड़ की कटाई तभी करनी चाहिए जब पौधा पूरी तरह परिपक्व हो जाए। जड़ को ध्यान से निकाल कर धो लें और उसे सुखने के लिए छोड़ दें।जड़ को सूखाने के बाद पाउडर या पेस्ट बनाने के लिए इस्तमाल किया जाता है।

    सर्पगंधा की उन्नत किस्मे

    सर्पगंधा की उन्नत किस्मे उपलब्ध हैं, जो अधिक उत्पादन देती हैं और बिमारियों के प्रति प्रतिरोधी होती हैं। “आरए-1” और “आरए-2” किसमें ज्यादा लोकप्रिय हैं, जो ज्यादा औषधीय गुणों के लिए जानी जाती हैं। ये किस्में बेहतरी देने के लिए मशहूर हैं।

    सर्पगंधा की खेती के फायदे

    Sarpagandha Ki Kheti

    औषधीय महत्व: सर्पगंधा एक महत्वपूर्ण औषधि है, जिसका उपयोग उच्च रक्तचाप, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारियों के इलाज में होता है।
    उच्च मांग: आयुर्वेदिक और फार्मास्युटिकल उद्योगों में इसकी मांग बढ़ रही है, इसलिए ये खेती काफी लाभदायक है।
    जैविक खेती के लिए अनुकूल: सर्पगंधा को जैविक तरीके से उगाया जा सकता है, जो पर्यावरण के अनुकूल खेती के लिए फायदेमंद है।
    अच्छी कमाई: कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा कमा सकते है क्योंकि इसकी जड़ की मार्केट वैल्यू काफ़ी ज़्यादा होती है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Methi Ki Kheti 

    FAQs

    सर्पगंधा की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है?
    सर्पगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें अच्छा जल निकास हो, सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए।

    सर्पगंधा की खेती के लिए कौन सी जलवायु बेहतर होती है?
    सर्पगंधा का पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह उगता है। इसे हल्की गर्मी और पर्याप्त नमी की जरूरत होती है।

    सर्पगंधा के पौधे को कैसे तैयार किया जा सकता है?
    सर्पगंधा के पौधे को बीज से या तने की कटिंग से तैयार किया जा सकता है। बीजों को 1-2 इंच गहराई में बोया जाता है, जबकि कटिंग को सीधे नर्सरी में लगाया जा सकता है।

    सर्पगंधा के पौधों की रोपाई कब करनी चाहिए?
    जब पौधे 3-4 महीने के हो जाएं और उनकी ऊंचाई 10-15 सेमी हो जाए, तब उनकी रोपाई करनी चाहिए। पौधों के बीच में 30-40 सेमी का अंतर रखना चाहिए।

  • Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana : सरकार दे रही हैं पशुपालको को 92.41 करोड़ रूपए अभी करे आवेदन

    Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana : सरकार दे रही हैं पशुपालको को 92.41 करोड़ रूपए अभी करे आवेदन

    Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana : सरकार दे रही हैं पशुपालको को 92.41 करोड़ रूपए अभी करे आवेदन

    क्या आप भी डेरी ओर जा कर दूध को बेचते हैं तो Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana योजना आपको काफी फायदे दे सकती हैं क्योंकि सरकार दे रही दूध बेचने वाले 5 रुपए प्रति लीटर पर सब्सिडी जिस से आपको दूध के दाम भी मिलेंगे और साथ साथ सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिलेगी तो अगर आप जानना चाहते योजना के बारे में तो हमारे इस ब्लॉग को जरूर पढ़े

     

    Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana कैसे पाए से फायदा

     

    योजना के फायदे:

    1. वित्तीय सहायता: इस योजना के तहत डेयरी किसानों को दूध उत्पादन बढ़ाने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक निश्चित वित्तीय सब्सिडी प्रदान की जाती है।
    2. छोटे डेयरी किसानों को समर्थन: इस योजना का मुख्य उद्देश्य छोटे और सीमांत डेयरी किसानों को समर्थन देना है ताकि वे अपने डेयरी व्यवसाय को बनाए रख सकें और उसे बढ़ा सकें।
    3. पशुधन स्वास्थ्य सहायता: इस योजना के तहत किसानों को पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए भी लाभ मिलता है, जिससे उनके मवेशियों की सेहत और उत्पादकता में सुधार होता है।
    4. दूध उत्पादन में वृद्धि: यह योजना डेयरी पालन को एक व्यवहार्य व्यवसाय के रूप में प्रोत्साहित करती है, जिससे दूध उत्पादन और आपूर्ति में वृद्धि होती है।
    5. रोजगार सृजन: इस योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को डेयरी पालन को आजीविका के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

    Read here 

    योजना क्या है

    यह एक कल्याणकारी योजना है जिसे राज्य सरकार द्वारा डेयरी किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करने के लिए शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य डेयरी किसानों की आय में वृद्धि करना है, जिसमें सब्सिडी और पशु चिकित्सा सहायता प्रदान की जाती है।

    योजना के उद्देश्य:

    • डेयरी किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
    • डेयरी पालन को आजीविका के रूप में बढ़ावा देना।
    • राज्य में दूध उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करना।
    • डेयरी किसानों और उनके पशुधन के कल्याण को सुनिश्चित करना।

    Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana registration kaise karen

    Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana

    1. ऑनलाइन पंजीकरण: किसान अपने राज्य की आधिकारिक सरकारी वेबसाइट या विशेष डेयरी विकास बोर्ड की वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण कर सकते हैं।
    2. आवश्यक दस्तावेज:
      • आधार कार्ड या पहचान प्रमाण।
      • डेयरी पालन का प्रमाण (पशुधन का विवरण)।
      • सब्सिडी स्थानांतरण के लिए बैंक खाता विवरण।
    3. ऑफलाइन पंजीकरण: किसान अपने नजदीकी सहकारी दुग्ध समितियों या जिला डेयरी कार्यालयों में जाकर भी पंजीकरण कर सकते हैं।

    योजना कब शुरू की गई:

    यह योजना राज्य सरकार द्वारा डेयरी किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए शुरू की गई थी, और इसे शुरू करने की तिथि संबंधित राज्य पर निर्भर करती है।

    FAQs related to Mukhyamantri Dugdh Utpadak Sambal Yojana

    1. क्या यह योजना सभी डेयरी किसानों के लिए है?
      • हाँ, यह योजना विशेष रूप से छोटे और सीमांत डेयरी किसानों के लिए है।
    2. किसान इस योजना से कैसे लाभ उठा सकते हैं?
      • पंजीकरण के माध्यम से किसान सब्सिडी और पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
    3. क्या एक गाय या भैंस वाले किसान भी पंजीकरण कर सकते हैं?
      • हाँ, एक गाय या भैंस रखने वाले छोटे किसान भी पात्र हैं।
    4. सब्सिडी की राशि कितनी होती है?
      • सब्सिडी की राशि राज्य की नीति और डेयरी फार्म के पैमाने के अनुसार भिन्न हो सकती है।
    5. मैं अपने पंजीकरण की स्थिति कैसे जांच सकता हूँ?
      • पंजीकरण के बाद किसान आधिकारिक पोर्टल पर जाकर अपनी स्थिति की जाँच कर सकते हैं।

     

     

  • Bharat Chawal: अब आप आसानी से 29 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर सस्ता चावल ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

    Bharat Chawal: अब आप आसानी से 29 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर सस्ता चावल ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

    Bharat Chawal: अब आप आसानी से 29 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर सस्ता चावल ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

    Bharat Chawal भारत सरकार ने आम जनता पर बढ़ती महंगाई के बोझ को कम करने के लिए एक अहम फैसला लिया है। इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने हाल ही में भारत चावल को बाज़ार में लाने की घोषणा की है। चावल का यह नया संस्करण 29 रुपये प्रति किलोग्राम की किफायती कीमत पर खरीदने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।

    Bharat Chawal के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़े

     

    Bharat Chawal

    एक महत्वपूर्ण घोषणा में, केंद्र सरकार ने Bharat Chawal नामक एक नई पहल शुरू करने की अपनी योजना का खुलासा किया है। इस पहल के तहत, चावल को NAFED, NCCF और केन्द्रीय भंडार जैसी सहकारी समितियों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाएगा। उपभोक्ताओं के पास 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के पैक में चावल खरीदने का विकल्प होगा, जिसे ‘भारत’ ब्रांड नाम के तहत 29 रुपये प्रति किलोग्राम की किफायती कीमत पर बेचा जाएगा। यह कदम मौजूदा ‘भारत’ ब्रांड के विस्तार के रूप में आया है, जो पहले से ही समान सुविधाजनक पैकेजिंग विकल्पों में आटा प्रदान करता है। इस निर्णय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश भर के उपभोक्ताओं को किफायती मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण चावल आसानी से उपलब्ध हो सके। इस पहल का कार्यान्वयन अगले सप्ताह शुरू होने की उम्मीद है, जिससे देश भर के घरों में सुविधा और सामर्थ्य आएगी।

    Bharat Chawal मिलों को कीमतें कम करने के लिए मनाने में सरकार के असफल प्रयास के कारण, उन्होंने अब आवश्यक वस्तु अधिनियम को लागू करने का सहारा लिया है और उनको एक विशिष्ट ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने चावल और धान के स्टॉक का खुलासा करना होगा।

    Suggested to read 

    निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया

    संभव है कि वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए. यह संभावित उपाय उत्पादों और वस्तुओं के किसी भी सीमा पार हस्तांतरण को पूर्ण रूप से बंद कर सकता है। सूत्रों के मुताबिक, चावल के लिए स्टॉक सीमा लागू करने के संबंध में मौजूदा स्टॉक स्थिति पर एकत्र आंकड़ों के आधार पर निर्णय लिया जाएगा। सरकार ने चावल के लिए भी गेहूं की तरह ही स्टॉक सीमा लागू करने का इरादा जताया है। अगर घरेलू बाजार में कीमतों में गिरावट नहीं देखी गई तो उबले चावल के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए जाने की संभावना है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि एक साल पहले दर्ज की गई कीमतों की तुलना में चावल की कीमतों में खुदरा बाजार में 14.5 प्रतिशत और थोक बाजारों में 15.5 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

    सभी संभावनाएँ उपलब्ध हैं

    Bharat Chawal

    फैसले के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने मीडिया को संबोधित किया और कहा कि सरकार बढ़ती कीमतों के मुद्दे से निपटने के लिए विभिन्न रास्ते तलाश रही है। जब विशेष रूप से पूछा गया कि क्या चावल पर स्टॉक सीमा लागू करना अगली कार्रवाई है, तो चोपड़ा ने इस बात पर जोर दिया कि चावल को छोड़कर सभी आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतें वर्तमान में प्रबंधनीय हैं, सरकार सक्रिय रूप से सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।

    इसके अलावा, जब निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध की संभावना के बारे में सवाल किया गया, तो चोपड़ा ने स्पष्ट किया कि इस तरह के उपाय को लागू करने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। गौरतलब है कि 24 जनवरी तक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक चावल के निर्यात में छह फीसदी की गिरावट देखी गई है।

    प्रारंभिक चरण में, सरकार ने खुदरा बिक्री के लिए सहकारी समितियों के बीच वितरित करने के लिए 5 लाख टन चावल की एक महत्वपूर्ण मात्रा अलग रखी है। जैसे ही चावल की मांग बढ़ेगी, अतिरिक्त मात्रा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अलावा, सरकार भारतीय चावल की बिक्री की सुविधा के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को शामिल करने की योजना बना रही है।

    एक अधिकारी चोपड़ा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा संग्रहीत चावल में खुले बाजार में पाए जाने वाले चावल की किस्मों की तुलना में टूटे हुए अनाज का अनुपात अधिक होता है। नतीजतन, सरकार ने सहकारी समितियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि पैकेजिंग से पहले टूटे हुए अनाज का प्रतिशत 5% से कम हो। इस उपाय का उद्देश्य न केवल चावल की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाना है, बल्कि बाजार में टूटे हुए चावल की उपलब्धता को बढ़ाना भी है, जिसका उपयोग इथेनॉल उत्पादन में प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।

    FAQ’s related to Bharat Chawal

    भारत चावल क्या है?

    भारत चावल विभिन्न प्रकार के चावलों को संदर्भित करता है जो भारत में उगाए और खाए जाते हैं। यह देश की बड़ी आबादी के लिए एक प्रमुख आहार है, जो अपने पोषण मूल्य और भारतीय व्यंजनों में व्यापक उपयोग के लिए जाना जाता है।

    भारत में सबसे ज्यादा चावल का उत्पादन किस राज्य में होता है?

    भारत में सबसे ज्यादा चावल का उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश का स्थान है।

    भारत चावल का पोषण मूल्य क्या है?

    चावल कार्बोहाइड्रेट का समृद्ध स्रोत है, जो ऊर्जा प्रदान करता है। इसमें निम्नलिखित पोषक तत्व भी शामिल हैं:

    • थोड़ी मात्रा में प्रोटीन
    • आवश्यक विटामिन जैसे विटामिन बी1 (थायमिन)
    • आयरन, मैग्नीशियम, और पोटैशियम जैसे खनिज
    • फाइबर (ब्राउन चावल जैसी सम्पूर्ण अनाज किस्मों में)

     

    https://www.instagram.com/aapki_kheti?igsh=MWl5cGd3dGd5cXloOA==

  • Aloe Vera Ki Kheti : कम लागत, ज्यादा मुनाफ़ा

    Aloe Vera Ki Kheti : कम लागत, ज्यादा मुनाफ़ा

    Aloe Vera Ki Kheti : कम लागत, ज्यादा मुनाफ़ा

    Aloe Vera Ki Kheti एलोवेरा एक औषधि पौधा है जो अपने घनित पौधे गुणो के लिए जाना जाता है। ये स्किनकेयर, हेल्थकेयर और ब्यूटी इंडस्ट्री में विशेष महत्व रखता है। इसकी खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली खेतियों में से एक है। एलोवेरा की खेती देश के लगभग हर क्षेत्र में की जा सकती है और इसका व्यापक महत्व प्रतिदिन बढ़ रहा है।

    एलोवेरा की खेती कैसे करें

    Aloe Vera Ki Kheti करना आसान है, लेकिन इसके उच्चित फल पाने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। एलोवेरा को जड़ो के टुकड़े से लगाया जाता है। इसकी खेती खेत में सीधा पोधा लगाकर या नर्सरी में पौधे तैयार करके की जा सकती है|

    एलोवेरा की उन्नत किस्मे

    एलोवेरा की उन्नत किस्मे उपलब्ध हैं जो बेहतर उपज और गुणवत्ता वाले हों। कुछ प्रमुख किस्मे हैं:
    एलो बारबाडेंसिस मिलर: सबसे आम व्यवहारिक उपाय होने वाली किस्मे ।
    एलो पेरी: स्कैच और औषधि उपाय के लिए प्रसिद्ध।
    एलो फेरोक्स: इस रेस्तरां के विक्रेताओं में सबसे ज्यादा रस होता है, जो उत्पाद महत्वपूर्ण है।

    एलोवेरा की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

    Aloe Vera Ki Kheti के लिए गरम और अर्ध शुषक पानी सबसे उत्तम होता है। ये 15°C-40°C के बीच अच्छी तरह से उगता है। एलोवेरा की खेती के लिए रेतीली या दोम मिट्टी सबसे बेहतर होती है। मिट्टी का पीएच स्टार 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी का अच्छा ड्रेनेज होना जरूरी है ताकि पानी एकट्ठा न हो, क्योंकि एलोवेरा के पत्ते पानी को बड़ी मात्रा में संग्रहित करते हैं।

    ज़मीन की तैयारी

    ज़मीन को तैयारी करने के लिए सबसे पहले हल चलाकर मिट्टी को ढीला कर लिया जाता है। मिट्टी की अच्छी जल निकासी के लिए 2-3 बार हल चलाना आवश्यक होता है। ज़मीन में जैविक खाद या सूखे गोबर का प्रयोग करना चाहिए ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ सके।

    बुवाई

    एलोवेरा के छोटे प्रकंद या जड़ों को लगभग 1-2 फीट के फासले पर बोया जाता है। पौधे लगाने के बाद हल्की सी मिट्टी उनके इर्द-गिर्द डाल दी जाती है। बुवई के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से अप्रैल के बीच का होता है।

    सिंचाई

    एलोवेरा को पानी की अधिक जरूरत नहीं होती, लेकिन शुरूआती चरणों में हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि पौधे जल्दी जम सके। इसके बाद हफ्ते में एक बार सिंचाई करना पर्याप्त होता है। बरसात के मौसम में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए क्योंकि एलोवेरा को अधिक पानी से नुकसान हो सकता है।

    खरपतवार नियंत्रण

    एलोवेरा की खेती में खरपतवार का नियंत्रण करना जरूरी है ताकि पोधों को पोषण मिल सके। खरपतवार निकालने के लिए ऑर्गेनिक मल्चिंग या प्लास्टिक शीट का उपयोग कर सकते हैं। समय-समय पर खेत का निरीक्षण करके हाथ से खरपतवार निकालना भी एक अच्छा उपाय है।

    कटाई

    एलोवेरा के पत्तों की कटाई 8-10 महीने के बाद की जाती है जब पत्ते पूरी तरह विकसित हो जाते हैं। पत्तों को हाथ से या तेज़ छुरी से काटकर अलग किया जाता है। एक बार पत्ते काटने के बाद, पोधा फिर से नए पत्ते उगाने लगता है और अगले 6 महीने में फिर कटाई के लिए तैयार होता है।

    एलोवेरा की खेती के फायदे

    Aloe Vera Ki Kheti

    Aloe Vera Ki Kheti के कई फायदे हैं। ये कम पानी में उगता है और इसमें खर्च भी कम आता है। एलोवेरा का व्यावसायिक उपाय त्वचा की देखभाल, बालों की देखभाल और औषधि उत्पादों में होता है, जिसकी बाजार में हमेशा डिमांड बनी रहती है। इसकी खेती करने से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Bhindi ki Kheti

    एलोवेरा की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती है?
    एलोवेरा की खेती के लिए रेतीली या दोम मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए।

    एलोवेरा की बुवाई का सही समय कब है?
    एलोवेरा की बुवाई का सबसे अच्छा समय फरवरी से अप्रैल के बीच होता है।

    एलोवेरा के लिए उचित जलवायु क्या है?
    एलोवेरा की खेती के लिए गर्म और अर्ध शुष्क जलवायु सबसे उत्तम होती है। यह 15°C से 40°C के बीच अच्छी तरह से उगता है।

    एलोवेरा की किस्में कौन-कौन सी हैं?
    एलोवेरा की प्रमुख किस्मों में एलो बारबाडेंसिस मिलर, एलो पेरी, और एलो फेरोक्स शामिल हैं।

  • Methi Ki Kheti : मेथी की हर पत्ती में छिपा है सेहत का राज़

    Methi Ki Kheti : मेथी की हर पत्ती में छिपा है सेहत का राज़

    Methi Ki Kheti : मेथी की हर पत्ती में छिपा है सेहत का राज़

    Methi Ki Kheti (मेथी की खेती) मेथी (मेथी) एक प्राचीन और लाभदायक फसल है जो देश के लगभाग सभी हिसों में उगाई जाती है। ये ना सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती है, बल्कि इसके पोषक तत्व भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। आज हम मेथी की खेती के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे जो आपकी खेती के अनुभव को बेहतर बनाएगी।

    मेथी की खेती कैसे करें

    Methi Ki Kheti

    Methi Ki Kheti करने के लिए सबसे पहले अच्छी मिट्टी का चयन करना जरूरी है। मिट्टी का पीएच स्टार 6.5 -7 होना चाहिए। कृषि क्षेत्र को अच्छे से हल चलाकर ध्यान दें। बीज को सीधे खेत में बोया जाता है और उसे 1-2 सेमी गहरा बोया जाता है। बोये हुए बिजों को हल्की सी मिट्टी से ढक देना चाहिए ताकि वे अच्छी तरह से उग सकें।

    जलवायु और मिट्टी

    जलवायु से गर्म और ठंडी दोनों ही मौसम ठीक रहते हैं। लेकिन अधिक गरमी या ठंडी फसल के लिए हानिकारक हो सकती है। मध्यम दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी मेथी की खेती के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। ये मिट्टी पानी की सुविधा को अच्छी तरह से रोकने की शमता रखती है और बीज का अच्छे से विकास करती है।

    मेथी की खेती किस मौसम में करें

    Methi Ki Kheti को आप अक्टूबर से नवंबर के बिच कर सकते हैं, जब मौसम हल्के ठंडे और सामान्य गर्मी वाले होते हैं। ये समय फसल के विकास के लिए सबसे अच्छा होता है, क्योंकि इस दौरन फसल को तेजी से उगने के लिए उचित जलवायु मिलती है।

    मेथी की बुवाई का समय

    मेथी की बीज बुवाई का सही समय अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के आखिरी हफ्ते तक का होता है। इस समय बीज अच्छी तरह से उगते हैं और फसल तेजी से विकास करती है। अगर आप जल्दी बोवाई करते हैं तो ठंड के कारण फसल को नुक्सान हो सकता है।

    सिंचाई

    मेथी की खेती में सिंचाई का महत्व पूर्ण योगदान होता है। बीज बुवाई के तुरत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि बीज जल्दी से उग सके। इसके बाद एक या दो हफ़्ते के अंतराल पर सिंचाई ज़रूरी होती है। फसल के विकास के दौरान अधिक पानी देने से बचना चाहिए ताकि फसल गलने न पाए।

    खरपतवार नियंत्रण

    मेथी की खेती में खरपतवार नियन्त्रण के लिए समय समय पर खाड़ी या नियन्त्रण के उपाय करने चाहिए। खरपतवार को हाथ से निकलना या फिर खेती में मल्चिंग का उपाय करना आसान होता है। इस फसल के विकास में रुकावट नहीं आती है और उपज में वृद्धि होती है।

    मेथी की उपज बढ़ाने के उपाय

    मेथी की उपज को बढ़ाने के लिए समय पर खाद और पोषक तत्त्वों का उपाय करना चाहिए। सूखी गोबर की खाद या वर्मी-कम्पोस्ट बेहतर होती है। बीज बुवाई के बाद हल्की सिंचाई और समय-समय पर खरपतवार को निकलना भी उपज को बढ़ाने में मदद करता है।

    मेथी की उन्नत किस्में

    मेथी की उन्नत किस्मे उपलबध हैं जो अधिक उपज देती हैं जैसे कि पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मेथी, राजेंद्र क्रांति, और सह-1। किसमोन का चयन करके आप अपनी फसल से अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

    फसल की कटाई

    मेथी की फसल की कटाई 30-40 दिन के बाद हो सकती है। जब पत्ते पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं तो फ़सल को काटा जाता है। मेथी के पत्ते के साथ उसके बीज भी बड़े आराम से कटाई के लिए तैयारी होते है।

    मेथी की खेती में लाभ

    Methi ki kheti  कम लागत लगती है और अधिक मुनाफ़ा देने वाली फ़सलों में से एक है। ये एक बारबुवाई के बाद कई बार कटाई जा सकती है, जो इसके मुनाफ़े को बढ़ाता है। इसके अलावा मेथी के पत्ते और बीज का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है, जो इसके व्यवसायी महत्व को और बढ़ाता है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Gajar ki kheti 

    FAQs

    मेथी की खेती कैसे की जाती है?
    मेथी की खेती के लिए सबसे पहले अच्छी मिट्टी का चयन करें जिसका पीएच स्टार 6.5-7 हो। बीजों को 1-2 सेमी गहराई में बोया जाता है और हल्की मिट्टी से ढक दिया जाता है। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक है।

    मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी कौन-सी होती है?
    मेथी की खेती के लिए मध्यम दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है। मौसम ठंडा और सामान्य गर्मी वाला होना चाहिए। अधिक गरमी या ठंड फसल के लिए हानिकारक हो सकती है।

    मेथी की खेती किस मौसम में करनी चाहिए?
    मेथी की खेती अक्टूबर से नवंबर के बीच की जा सकती है। यह समय ठंडी और सामान्य गर्मी का होता है, जो फसल के लिए उपयुक्त जलवायु प्रदान करता है।

    मेथी की बुवाई का सही समय क्या है?
    मेथी की बुवाई का सही समय अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के आखिरी हफ्ते तक होता है। इस समय बुवाई से फसल अच्छी तरह से विकसित होती है।