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  • अफ़ीम की खेती कैसी होती है ?अफ़ीम की खेती का लाइसेंस,कमाई

    अफ़ीम की खेती कैसी होती है ?अफ़ीम की खेती का लाइसेंस,कमाई

    अफ़ीम की खेती कैसी होती है अफ़ीम की खेती का लाइसेंस,कमाई

    अफ़ीम की खेती कैसी होती है

    अफीम की खेती सेसम्बंधित जानकारी अफीम की खेती मादक पदार्थ (Narcotics) के लिए की जाती है द्य इसके पौधा एक मीटर ऊँचा, तना हरा, पत्ता आयताकार तथा फूल सफेद, बैंगनी या रक्तवर्ण, सुंदर कटोरीनुमा एवं चौड़े व्यास वाले होते है। इसके पौधों पर फल फूल झड़ने के तुरंत बाद आने लगते है, जिसका आकार एक इंच व्यास वाला देखने में अनार की तरह होता है द्य इसके फल को डोडा कहते है, तो स्वयं ही फट जाता है, तथा फल के छिलको को पोश्त कहा जाता है द्य इन डोडो के अंदर सफेद रंग के गोल आकार वाले सूक्ष्म, मधुर दानेदार बीज पाए जाते है। इन्हे आमतौर पर खसखस भी कहते है। नमी होने पर अफीम मुलायम होने लगती है। इसका अंदरूनी भाग गहरा बादामी और चमकीला है, जो बहार से काला रंग लिए गहरा भूरा होता है। इसकी गंध तीव्र गति वाली होती है, जिसका स्वाद तिक्त होता है।

    अफीम को जलाने पर किसी प्रकार का धुआँ नहीं होता है, और न ही कोई राख होती है, किन्तु पानी में यह आसानी से घुल जाती है। चूंकि अफीम एक नशीला पदार्थ है, इसलिए इसकी खेती करने से पहले नारकोटिक्स विभाग से इजाजत लेनी पड़ती है, जिसके बाद आप कुछ नियम व शर्तों को ध्यान में रखते हुए बिना किसी रोकटोक के आसानी से से अफीम की खेती कर सकते है। यह कम खर्च में अधिक से अधिक मुनाफा देनी वाली खेती है। यदि आप भी अफीम की खेती करने के बारे में सोच रहे है, तो इस लेख में आपको अफीम की खेती कैसे होती है, अफीम की खेती का लाइसेंस कैसे मिलेगा तथा अफीम की खेती से कितनी कमाई होगी, इसके बारे में विशेषतौर पर बताया जा रहा है। भारत में अफीम की खेती पूरे विश्व में अफीम की खेती कुछ ही देशो में की जाती है। अफगानिस्तान में अफीम को मुख्य रूप से उगाया जाता है,

    जिस वजह से अकेले अफगानिस्तान में 85% अफीम का उत्पादन किया जाता है द्य भारत के कुछ ही राज्यों में अफीम की खेती की जाती है द्य चूंकि भारत में अफीम का उत्पादन पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में होता है, इसलिए गत वर्ष 2020-21 में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य में अफीम का उत्पादन तकरीबन 315 टन था।

    अफ़ीम की खेती

    अफीम के फायदे : अफीम नशीला पदार्थ होने के साथ-साथ आयुर्वेदिक उपचार के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है, यदि इसका सेवन इलाज के तौरपर करते है, तो यह हमारे शरीर के कुछ रोगो में लाभ भी पहुँचाता है। दांत दर्द में:- दांत में कीड़ा लग जाने पर अफीम और नौसादर को बराबर मात्रा में मिलाकर कीड़ा लगे दांत के छेद में दबाकर रखे इससे दांत दर्द में आसानी से राहत मिल जाती है।

    सिर दर्द के उपचार में:- एक ग्राम जायफल के साथ आधा ग्राम अफीम को दूध में मिलाकर लेप को तैयार कर ले। इसके बाद इस लेप को कपाल पर लगाए सर्दी और बादी से होने वाले सिर दर्द में आसानी से आराम मिल जाता है।

    खांसी के इलाज में:- अधिक खांसी आने पर 50 डळ अफीम की मात्रा को मुनक्के के साथ निगल जाए, इससे दौरा शांत हो जायेगा और अच्छी नींद भी आएगी। गर्भस्राव को रोकने में लाभकारी- पिंड खजूर के साथ 40 MG अफीम की मात्रा को मिलाकर उसका सेवन दिन में 3 बार करे, तुरंत ही गर्भस्राव रुक जायेगा।

    अफीम की खेती करने का तरीका: अफीम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसलिए इसके बीजो की बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के मध्य की जाती है। बीज बुवाई से पहले खेत कोअच्छी तरह से जुताई कर तैयार कर लेना होता है द्य इसके लिए खेत की गहरी जुताई की जाती है। जुताई के पश्चात खेत में पानी लगाकर मिट्टी के नम हो जाने के लिए छोड़ देते है। खेत का पानी सूख जाने पर रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए। भुरभुरी मिट्टी को पाटा लगाकर समतल कर देते है। अफीम की खेती में अधिक मात्रा में खाद व वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा को खेत में डालना होता है। इसकी खेती में न्यूनतम सीमा का विशेष ध्यान रखे, इसलिए भूमि को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व जरूर दे । यदि आप न्यूनतम सीमा से बाहर खेती करते है, तो आपका लाइसेंस तक रद्द हो सकता है द्य पर्याप्त भूमि में ही अधिक मात्रा में पैदावार पाने के लिए भूमि की जांच अवश्य करवाए और भूमि में जिस चीज की कमी हो उसे पूरा करे, ताकि उत्पादन अच्छी मात्रा में मिल सके।

    अफीम की खेती में भूमि व जलवायु : अफीम की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है द्य गहरी काली व् पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली भूमि जिसका PH. मान 7 के आसपास हो तथा वहां पिछले 5 से 6 वर्षों में – अफीम की खेती न की गयी हो। इसके अलावा खेत जल भराव वाला न हो द्य अफीम का पौधा समशीतोष्ण जलवायु वाला होता है, इन्हे 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।

    अफीम की उन्नत किस्में : नारकोटिक्स विभाग की कई संस्थाओ द्वारा अफीम पर अनुसंधान कर किस्में तैयार की गयी है, जिन्हे आप विभाग से खरीद सकते है। इसमें जवाहर अफीम-539, जवाहर अफीम-540, व् अफीम-16 काफी लोकप्रिय किस्में है । यदि आप बीजो की रोपाई कतार में करते है, तो प्रति हेक्टेयर के खेत में केवल 5 से 6 KG बीज ही लगते है, तथा फुकवा विधि द्वारा की गयी रोपाई के लिए 7 से 8 KG बीजो की जरूरत होती है।

  • Neem एक Fayde अनेक किसान का अनुभव

    Neem एक Fayde अनेक किसान का अनुभव

    Neem एक Fayde अनेक किसान का अनुभव

    Neem ke Fayde

    Neem ke Fayde:- नीम का फूल बसंत में फूलता है। हवा से संयोग कर पर्यावरण को पवित्र । करता हैं। इसके सारे जड़ डाल, तना, अंग, प्रत्यंग फल, फूल खेती में खाद्य कीटनाशक आदि रूप में परंपरागत रूप से व्यवहार होते आ रहें है। मानव मे होने वाले रोगों में कार्य करते है। श्रावण मास में कृष्ण पक्ष पंचमी जो इस वर्ष फिर से आयेगा को पडेगा ‘नागपंचमी’ त्यौहार में लोग नीम के पत्ते खाते । हैं। मान्यता है कि इससे खून शुद्ध होता है। टहनी को घर में खोंस देने से। वास्तु देवता खुश होते है।

    अंदर के वातारण की शुद्धि होती है। अतः यह वृद्ध पर्व त्यौहार से भी जुड़ा होता है। नीम के कई प्रजातियों के फल को लोग खाते है। नीम का नौरा भी होता है। बीज से तेल निकाला जाता है।। बचा हुआ भाग खली होता है। यह सर्वोत्तम जैविक खाद है। रसायन मुक्त । खेती के लिए रामबाण है। हमारे ऋषि उसका प्रयोग करते थे। वैज्ञानिक भी ! नीम के गुण-धर्म को पहचानने में सफल हुए है। यह वृक्ष आम का आम और गुठली का दाम प्रदान करने वाला है। वैज्ञानिक मत यह है कि अब तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार नीम का उपयोग बाकी सभी कीटनाशकों के मुकाबले संरक्षित खेती हेतु सुरक्षित पाया गया है। यह भारत वर्ष के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह किसी भी प्रकार की स्थलाकृति !

    (Geomorphology) पर बिना किसी खास देखभाल के सरलता से उगाया जा सकता है। यह एक बहुवर्षीय पेड़ है तथा एक बार उगने के बाद। इसकी देखभाल की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं। मैंने कई पेड़ लगाये ।। और अन्य किसानों से भी लगवाये है। यह पेड़ सौ वर्ष से भी अधिक वर्ष तक ! फल देता है। भारत सरकार के द्वारा नीम कोटेट यूरिया का प्रचलन लाभदायक रहा है। इसके उपयोग में करता आ रहा हूं। नीम के बने कीटनाशक पर्यावरण के मित्र कहे जाते है। ये पीड़क कीटों के जीवी और परभक्षियों के लिए सुरक्षित हे। इनका केचुओं पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।। ये औस्ट्रोकेंड की मात्रा का स्थिर रखने में सहायता प्रदान करता है और इस ! प्रकार भूमि की उर्वरकता कायम रहतीर है। संशोषित कीटनाशकों के मुकाबले नीम से बने कीटनाशकों का प्रयोग कर रहा हूं। इनमें बहुत से यौगिक होते है जिनका प्रभाव भिन्न-भिन्न होता है। फलस्वरूप इनके। उपयोग से पीड़क कीटों में प्रतिरोधी क्षमता पैदा होने की संभावना काफी  कम रहती है।

    नीम किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का एक सम्मानित । साधन है। कीटों की रोकथाम के लिए नीम के बीज के कीटनाशक घोल ! तैयार करने की विधिः– नीम के फलों का गूदा उतार कर बीजों को धूप में। अच्छी तरह सुखा लें। सूख जाने से प्राप्त बीजों की दो मुट्ठी भर गिरि (200-300 ग्राम) लेकर उसका दरदरा चूर्ण बना ले। उस चूर्ण को बाल्टी में । डालकर 10 लीटर पानी डालें तथा जोर-जोर से हिलायें। अब एक मिश्रण । को 6-15 घंटे तक इसी प्रकार रहने दे। (सुबह प्रयोग करने के लिए यह। घोल शाम को तैयार कर) अब इसे 20 मिनट तक हिलाये तथा कणरहित घोल प्राप्त करने के लिए इसे मारकीन या अन्य किसी सुती कपड़े से छान ले।

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    इस प्रकार प्राप्त दूधिया घोल प्रयोग के लिए तैयार है। इस घोल का। किसी भी अन्य कीटनाशक की तरह छिड़काव करें फसल की किस्म और । आकार के अनुसार 500-1000 लीटर घोल एक हैक्टेयर के लिए काफी होता है। पांच-छः दिनों के बाद ए क | छिड़ काव  और करें। परिणाम की प्रतिक्षा इक्करें प्रयोग से कीट उसी समय मरते नहीं है बल्कि यह उसे क्योंकि इसके पुण्येन तथा उनकी बढ़वार को रोकने में मदद करता है। यह फसल खाने, अंडे है। रसायन मुक्त, पर्यावरण हितैषी खेती का पहला कदम है। ऐरक अवन और कार्य कृषि से जुड़ा रहा। हल (ट्रेक्टर) चलाना और कलम चलाने की संगति आज भी बरकरार है।

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  • Sitafal ki kheti कैसे करें ?

    Sitafal ki kheti कैसे करें ?

    Sitafal ki kheti कैसे करें

    Sitafal ki kheti कैसे करें

    Sitafal ki kheti:-सीताफल को शरीफा, शुगर एप्पल और कस्टर्ड एप्पल के नाम से भी जाना जाता है. ये एक स्वादिष्ट मीठा फल होता है. इस कारण लोग इसको खाना काफी ज्यादा पसंद करते हैं. इसके खाने के बहुत सारे फायदे हैं. सीताफल के इस्तेमाल से हृदय संबंधित, पेट संबंधित, कैंसर, कमजोरी और जोड़ों में दर्द जैसी कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

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    सीताफल का खाने के अलावा व्यापारिक तौर पर भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इसके बीजों को सुखाकर उनका तेल निकाला जाता है. इस तेल का इस्तेमाल साबुन और पेंट बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसके गूदे को दूध में मिलाकर आइसक्रीम तैयार की जाती है. इसका फल बहुत ठंडा होता है. जिससे यह शरीर के तापमान को स्थिर बनाता है। इसकी खेती के लिए शुष्क जलवायु वाली जगह ज्यादा उपयुक्त होती है. इसके पौधे को गर्मी की ज्यादा जरूरत होती है. और सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है. इसके पौधे को ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती. इसकी पत्तियों में एक विशेष महक आती है, जिस कारण इसके पौधों की ज्यादा देखरेख करने की जरूरत नही होती. भारत में इसकी खेती झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा होती है। अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

    उपयुक्त मिट्टी:- सीताफल की खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती हैं. लेकिन अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. जबकि जल भराव वाली काली चिकनी मिट्टी में इसकी खेती नहीं की जा सकती. क्योंकि जल भराव होने पर उत्त्पन्न होने वाले कीटों के कारण पौधों में कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए।

    जलवायु और तापमान:- सीताफल की खेती के लिए शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं. इसके पौधे अधिक गर्मी में आसानी से विकास करते हैं. लेकिन अधिक समय तक पड़ने वाली तेज सर्दी इसके लिए उपयुक्त नही होती. इससे इसके फलों का स्वाद कड़ा हो जाता है. इसके फलों को पकने के लिए गर्मी के मौसम की जरूरत होती है. लेकिन गर्मी में पकने के बाद भी इसके फल बहुत ठंडे होते हैं। इसके पौधे को अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. और विकास के टाइम ये 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेता है. लेकिन जब इस पर फूल और फल बनते हैं, उस वक्त 40 डिग्री से ज्यादा तापमान होता है तो इसके फूल और फल दोनों झड़ने लगते हैं।

    Sitafal ki kheti कैसे करें

    उन्नत किस्में :- सीताफल की कई तरह की किस्में पाई जाती है. इन सभी किस्मों को उगने के स्थान, फल, बीज के रंग और आकार के आधार पर तैयार किया गया है। अर्का सहन: अर्का सहन सीताफल की एक संकर किस्म है. इस किस्म के फल बहुत रसदार होते हैं. जो बहुत धीमी गति से पकते हैं. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा कम और आकार छोटा होता है. इसके गूदे अंदर से बर्फ की तरह सफेद दिखाई देते हैं. जो स्वाद में बहुत मीठे होते हैं. इनमें सुगंध मध्यम प्रकार की आती है।

    लाल सीताफल:- इस किस्म के पौधों को बीज के माध्यम से उगाने पर फलों में शुद्धता बनी रहती है. इसके फलों का रंग हल्का लाल गुलाबी होता है. इस किस्म के एक पौधे से एक वर्ष में 40 से 50 फल ही प्राप्त किया जा सकते हैं. जो समय के साथ साथ बढ़ते जाते हैं. इस किस्म के फलों में बीज काफी कम मात्रा में पाए जाते है।

    मैमथ :- इस किस्म का उत्पादन लाल शरीफे से ज्यादा होता है. इसके एक पौधे से सालभर में 60 से ज्यादा सीताफल प्राप्त होते हैं. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा भी कम पाई जाती है. इसके फलों की फाँके गोलाकार और बड़ी होती हैं. जिनमें गूदे की मात्रा अधिक पाई जाती है।

    बाला नगर:- इस किस्म के Sitafal ki kheti ज्यादातर झारखंड में की जाती है. झारखण्ड के जंगलों में यह सामान्य रूप से पाया जाता है. इसके फलों का रंग हल्का हरा होता है. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा अधिक पाई जाती है. इसके एक पौधे की पैदावार 5 किलो के आसपास पाई जाती है। इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिनका उत्पादन अलग अलग जगहों पर किया जाता है. इनमें वाशिंगटन पी.आई. 107, 005, ब्रिटिश ग्वाइना और बारबाड़ोज सीडलिंग जैसी कई किस्में मौजूद हैं।

    खेत की तैयारी :- Sitafal ki kheti के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को हटाकर उसकी पलाऊ के माध्यम से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर उसमें पाटा लगा दें. पाटा लगाने से मिट्टी में मौजूद ढेले खत्म हो जाते हैं और भूमि समतल दिखाई देती है।

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