आधुनिक खेती करने के 5 तरीके : खेती को सफल बनाने के लिए अपनाये ये तरीके
आज के समय में किसान खेती कर रहे और अपनी थोड़ी से फसलों से निश्चिंत हैं और अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं जिस वजह से उन्हें ज्यादा फायदे नहीं देखने को मिल रहे हैं | पर जो किसान जागरूक हैं और खेती से जुड़े तकनीकों के बारे में जानकारी रखता हैं वो अपने दिमाग से काफी उन्नति कर रहा हैं | तो आप भी हमारा ये ब्लॉग पढ़िए और जानिये आधुनिक खेती करने के 5 तरीके जो आपकी खेती को सफल बनाने में फायदा देगा
Drone Irrigation & Monitoring
आज के डिजिटल युग में ड्रोन तकनीक खेती के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई है। ड्रोन का उपयोग किसानों द्वारा खेतों की निगरानी, बीजों का छिड़काव, कीटनाशकों एवं खाद के छिड़काव, तथा सिंचाई की निगरानी हेतु किया जा रहा है। इससे खेती अधिक सटीक, तेज़ और कम श्रम वाली हो गई है। ड्रोन का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि यह बड़े-बड़े खेतों की निगरानी कुछ ही मिनटों में कर सकता है। इससे यह पता लगाना आसान होता है कि किस क्षेत्र में फसल को बीमारी लगी है, किस हिस्से में पानी की कमी है, और कहां पर खाद की आवश्यकता है। कुछ ड्रोन में थर्मल सेंसर एवं मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरे लगे होते हैं जो फसल की गुणवत्ता का भी विश्लेषण कर सकते हैं | ड्रोन के माध्यम से छिड़काव करने से रासायनिक खाद या कीटनाशकों की बचत होती है, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता। इसके अलावा, ड्रोन खेतों में पहुंचने वाली जगहों तक भी आसानी से उड़ कर पहुंच सकते हैं, जहाँ पर सामान्य मशीनें नहीं पहुंच पातीं। हालांकि, यह तकनीक अभी भी महंगी है और हर किसान की पहुंच में नहीं है, लेकिन सरकार और निजी कंपनियां इसे किफायती बनाने की दिशा में कार्य कर रही हैं। आने वाले समय में ड्रोन कृषि का अभिन्न हिस्सा बन जाएगा।
Hydroponic Farming
हाइड्रोपोनिक खेती एक अत्यंत उन्नत और वैज्ञानिक तरीका है जिसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती। इस पद्धति में पौधों की जड़ों को पोषक तत्वों से भरपूर पानी के घोल में उगाया जाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे जल की काफी बचत होती है, और यह उन स्थानों पर भी संभव है जहां मिट्टी उपजाऊ नहीं है या जगह सीमित है, जैसे शहरी क्षेत्र या इनडोर खेती। हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पानी को बार-बार पुनः उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे यह पारंपरिक खेती की तुलना में लगभग 80-90% कम पानी का उपयोग करता है। इस विधि में रोगजनकों का खतरा कम होता है क्योंकि मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता। पौधों को आवश्यक पोषक तत्त्व सीधे उनके जड़ों तक पहुँचते हैं, जिससे उनकी वृद्धि अधिक तेजी से होती है और फसल जल्दी तैयार होती है। इस प्रणाली से टमाटर, मिर्च, पालक, लेट्यूस, धनिया आदि सब्जियाँ सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। इस प्रणाली की स्थापना पर प्रारंभिक लागत अधिक होती है और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है, परन्तु उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा पारंपरिक खेती से कहीं बेहतर होती है। कई स्टार्टअप्स और शहरी किसान अब इस विधि को अपना रहे हैं, विशेष रूप से जैविक और ताज़ा सब्जियों के लिए।
Polyhouse Farming
पॉलीहाउस खेती एक ऐसी आधुनिक विधि है जिसमें फसलों को पॉलीथिन की परत से बने संरक्षित घरों (पॉलीहाउस) में उगाया जाता है। यह घर बाहरी मौसम की परिस्थितियों से पौधों को बचाता है और उनके विकास के लिए एक नियंत्रित वातावरण प्रदान करता है। पॉलीहाउस में तापमान, आर्द्रता, प्रकाश एवं सिंचाई को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे पौधों को पूरे वर्ष उपयुक्त वातावरण मिलता है। इसका मुख्य लाभ यह है कि इसमें कीट और रोगों का खतरा कम होता है, जिससे कीटनाशकों का कम उपयोग होता है और फसलें अधिक जैविक होती हैं। पॉलीहाउस के अंतर्गत टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, गुलाब, जरबेरा आदि फसलें एवं फूल उगाए जाते हैं। यह विधि कम भूमि पर भी अधिक उत्पादन करने में सक्षम है। इसके अलावा, इसकी सहायता से ऑफ-सीजन में भी फसलें उगाई जा सकती हैं, जिससे बाजार में अधिक दाम मिलते हैं। हालांकि पॉलीहाउस की स्थापना में प्रारंभिक निवेश अधिक होता है, लेकिन सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है जिससे किसानों को सहायता मिलती है। इसके अलावा, एक बार अच्छी तरह स्थापित होने के बाद यह विधि किसानों को स्थायी आय का स्रोत बन सकती है।
Aeroponic Farming
एरोपोनिक खेती हाइड्रोपोनिक का ही एक विकसित रूप है, जिसमें पौधों को न तो मिट्टी में और न ही पानी में उगाया जाता है, बल्कि उनकी जड़ों को हवा में लटकाकर एक बंद प्रणाली में पोषक तत्त्वों की फुहार दी जाती है। यह खेती की सबसे उन्नत तकनीकों में से एक है। इस प्रणाली में पौधों की जड़ें एक विशेष कंटेनर में लटकी रहती हैं और एक निश्चित समयांतराल पर उस पर पोषक तत्वों की धुंध या स्प्रे किया जाता है। इससे पौधों को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे उनकी वृद्धि अत्यधिक तेजी से होती है। एरोपोनिक खेती से जल की बहुत अधिक बचत होती है, क्योंकि इसमें केवल आवश्यक मात्रा में पानी प्रयोग होता है। साथ ही पौधों को मिट्टी में होने वाले कीटों से भी बचाया जा सकता है। यह विधि अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में भी अपनाई जा रही है क्योंकि इसमें बहुत कम जगह लगती है। एरोपोनिक सिस्टम में सलाद पत्तियाँ, हर्ब्स, पुदीना, तुलसी, धनिया, स्ट्रॉबेरी आदि फसलें उगाई जा सकती हैं। हालांकि यह प्रणाली अत्यधिक तकनीकी और महंगी है, लेकिन यह भविष्य की खेती के लिए एक आदर्श उदाहरण है। यदि इसे बड़े पैमाने पर अपनाया जाए तो यह शहरी खेती को नई ऊँचाई दे सकती है।
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Mulching Method
मल्चिंग एक पारंपरिक तकनीक का आधुनिक स्वरूप है, जिसमें मिट्टी की ऊपरी सतह को जैविक या अजैविक सामग्री से ढक दिया जाता है। इस विधि से नमी का संरक्षण होता है, खरपतवार की वृद्धि रुकती है और मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है।
मल्चिंग सामग्री जैसे सूखी पत्तियाँ, भूसा, लकड़ी की छीलन, प्लास्टिक शीट, बायोफिल्म आदि का उपयोग खेतों में किया जाता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है और फसलें स्वस्थ रूप से विकसित होती हैं। जैविक मल्चिंग से समय के साथ मिट्टी में कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है। खरपतवार नियंत्रण मल्चिंग का सबसे बड़ा लाभ है। इससे न तो रसायनों की आवश्यकता होती है और न ही बार-बार निराई-गुड़ाई की। इसके अलावा यह जल की बचत करता है क्योंकि मिट्टी से पानी वाष्पीकृत नहीं होता। फलों, सब्जियों और फूलों की खेती में मल्चिंग अत्यंत प्रभावी सिद्ध होती है। यह लागत में किफायती है और हर किसान इसे आसानी से अपना सकता है। सरकारें भी किसानों को जैविक खेती के लिए मल्चिंग अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। यह विधि विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहाँ पानी की कमी है या मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है। आपकी खेती में आधुनिक खेती करने के 5 तरीके से आप भी खेती में बढ़ोतरी कर सकती हैं