Aalu mein lagne wale rog : खेती बर्बाद कर देते हैं आलू ये रोग
आलू की खेती काफी महत्वपूर्ण होती हैं , क्योंकि आलू का प्रयोग हर जगह किया जाता हैं | पर क्या आप जानते हैं की कौनसे रोग आलू की खेती को बर्बाद कर देते हैं , जिस से किसान को काफी नुक्सान सेहन करना पड़ता हैं | उस से पहले जरूर पढ़े Aalu mein lagne wale rog ब्लॉग जो आपको होने वाले नुक्सान से बचा सकता हैं | खेती से जुड़ी जानकारी पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे Aapkikheti.com
जाने अभी Aalu mein lagne wale rog के बारे में
आलू की खेती में ओले का प्रभाव , ठंडक की मार और इसके अलावा इसके रोग काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं | नीचे दी गयी जानकारी में हम यही जानेंगे की आलू की खेती में कौनसे रोग लगते हैं |
1. अगेती झुलसा
अगेती झुलसा आलू की फसल का एक सामान्य लेकिन गंभीर फफूंदी रोग है, जो विशेष रूप से गर्म और आर्द्र जलवायु में तेजी से फैलता है। इस रोग में सबसे पहले पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल या अंडाकार भूरे धब्बे दिखाई देते हैं, जिनके भीतर चक्राकार रेखाएँ बनती हैं। समय के साथ ये धब्बे बढ़कर एक-दूसरे से मिल जाते हैं और पूरी पत्ती सूख जाती है, जिससे पौधे की बढ़ने की छमता काम हो जाती हैं , जिससे उत्पादन काम हो जाता हैं |
अगेती झुलसा को सही करने के उपाय
- रोग लगी पत्तियों और पौधों को तुरंत खेत से निकालकर नष्ट करें।
- एक ही खेत में लगातार आलू की खेती न करें फसल चक्र का इस्तेमाल करे , जिस से मिट्टी की उपजाऊ छमता हैं सही रहती हैं
- बुआई से पहले बीज कंदों को 2.5 ग्राम Mancozeb या Chlorothalonil प्रति लीटर पानी में उपचारित करें।
- रोग के शुरू के लक्षण दिखने पर 10–12 दिन के अंतराल पर Mancozeb (0.25%) या Chlorothalonil (0.2%) का छिड़काव करें।
2. पछेती झुलसा
पछेती झुलसा आलू की सबसे खतरनाक और तेजी से फैलने वाली फफूंदी बीमारी है, जो ठंडी और गर्म जलवायु में अधिक होती है। इस रोग की शुरुआत पत्तियों के किनारों पर जलने, जैसी भूरे या काले रंग की धब्बों से होती है। कुछ समय बाद पत्तियों के नीचे सफेद फफूंद जैसी परत दिखाई देती है, जो रोगजनक की वृद्धि का संकेत है। यदि समय पर नियंत्रण न किया जाए , तो यह रोग पूरे खेत में फैलकर पत्तियों, तनों और कंदों तक को ख़राब कर देता है, जिससे आलू की खेती को भारी नुकसान होता है।
पछेती झुलसा को सही करने के उपाय
- रोग वाले पौधों को तुरंत उखाड़कर खेत से हटा दे ताकि रोग ज्यादा ना फैले |
- बुआई से पहले बीजों का उपचार Metalaxyl 0.2% या Mancozeb 0.3% घोल में करें, इससे रोग के लगने के चांस कम हो जाते हैं |
- रोग केशुरुवात लक्षण दिखाई देने पर Metalaxyl + Mancozeb (Ridomil Gold) 0.25% का छिड़काव करें।
- इसके 10–12 दिन बाद Chlorothalonil 0.2% या Copper oxychloride 0.3% का दूसरा छिड़काव करें।
- खेत में संतुलित सिंचाई रखें और अत्यधिक नमी से बचें, क्योंकि यह रोग नमी में तेजी से फैलता है।
3. ब्लैकलेग
ब्लैकलेग आलू की एक गंभीर जीवाणुजनित बीमारी है, जो सबसे ज्यादा ठंडी और अधिक नमी वाली परिस्थितियों में फैलती है। यह रोग पौधे के तने के निचले भाग से शुरू होकर ऊपर की ओर फैलता है। शुरुवात में तने का निचला हिस्सा काला और मुलायम दिखाई देता है, जिससे पौधा ऊपर से पीला पड़ने लगता है और फिर मुरझा कर सूख जाता है। जड़ों और कंदों में भी सड़न आ जाती है, जिससे फसल की उपजाऊ छमता ख़राब हो सकती हैं
ब्लैकलेग रोग को सही करने के उपाय
- केवल स्वस्थ और बिना रोग के बीज/ कंदों का उपयोग करें।
- खेत में अच्छी जल निकासी व्यवस्था बनाए रखें ताकि पानी ठहरे नहीं , क्योंकि पानी के ठहरने से आलू की खेती सड सकती हैं |
- बीज बुआई से पहले Streptocycline 0.01% घोल से उपचारित करें।
- रोगग्रस्त पौधों को तुरंत उखाड़कर खेत से दूर नष्ट करें ताकि संक्रमण फैल न सके।
- फसल चक्र अपनाएँ और आलू की फसल के बाद कुछ समय तक अन्य फसलें (जैसे गेहूँ या मक्का) लें।
4.बैक्टीरियल विल्ट
बैक्टीरियल विल्ट आलू की एक गंभीर बीमारी है, जो पौधे की बढ़ने वाली की क्रिया को संक्रमित करती है और उनमें जल व पोषक तत्वों का प्रवाह बाधित कर देती है। इस कारण पौधा अचानक मुरझाने लगता है, जबकि मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद रहती है। तने को काटने पर उसमें से सफेद या दूधिया रस निकलता है। समय के साथ जड़ों के पास कंदों में सड़न लगने लगती है। यह रोग विशेष रूप से गर्म और नम जलवायु में अधिक फैलता है और खेत में तेजी से संक्रमण कर सकता है।
बैक्टीरियल विल्ट को सही के उपाय
- संक्रमित खेत में आलू, टमाटर, मिर्च या बैंगन जैसी संवेदनशील फसलें लगातार न लगाएँ
- कम से कम 3 वर्षों तक फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाएँ।
- खेत को अच्छी तरह पाने से भर दे और उसे भिगोकर 3–4 सप्ताह तक पारदर्शी पॉलीथिन शीट से ढक दें ताकि धूप से मिट्टी में मौजूद रोग खत्म हो जाते हैं
- रोग दिखाई देने पर संक्रमित पौधों को तुरंत उखाड़कर खेत से दूर नष्ट करें।
- खेत की जल निकासी व्यवस्था अच्छी रखें ताकि पानी का ठहराव न हो।
5.ब्लैक स्कर्फ
ब्लैक स्कर्फ आलू की फसल का एक फफूंदी जनित रोग है, जो मुख्य रूप से कंदों और तनों को प्रभावित करता है। इस रोग में कंदों पर काले या भूरे रंग के खुरदरे धब्बे बनते हैं, जो देखने में मिट्टी या कालिख जैसे लगते हैं, लेकिन वास्तव में यह फफूंद की परत होती है। इन धब्बों के कारण बीज कंदों का उगना कमजोर हो जाता है ,और पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है। इस रोग की वजह से उत्पादन में कमी आती हैं
ब्लैक स्कर्फ को सही करने के उपाय
- केवल अच्छे और उपजाऊ स्वस्थ कंदों का उपयोग करें, खेती में कोई नुक्सान ना हो।
- बुआई से पहले बीजों को Carbendazim (0.1%) या Thiram (0.3%) घोल में उपचारित करें।
- खेत की मिट्टी में जैव-उर्वरक Trichoderma viride @ 2.5 किलो प्रति एकड़ डालें — यह फफूंदी को नियंत्रित करता है और पौधों की जड़ों को स्वस्थ रखता है।
- खेत में जल निकासी अच्छी रखें और अत्यधिक नमी से बचें, क्योंकि यह रोग नमी वाली मिट्टी में अधिक फैलता है।
- फसल कटाई के बाद रोगग्रस्त कंदों और पौधों के अवशेष को खेत से हटा दें।