Coconut Farming : जानने के लिए पढ़िए पूरा ब्लॉग
भारत में Coconut farming एक प्रसिद्द और लाभदायक खेती है | यह खेती खास तोर पर तटीय इलाकों में की जाती है जहा पर इसे बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। नारियल ना सिर्फ खाने के लिए उपयोगी होते हैं, बल्कि इसके पेड़ का हर हिस्सा अलग-अलग व्यावसायिक उपयोग के लिए प्रयोग में लाया जाता है। आइए, नारियल की खेती कैसे करें और इससे जुड़े अनेको पहलुओं को समझें।
नारियल खेती कैसे करें
Coconut farming करने के लिए सही तकनीक और योजना बनाना जरूरी है
इसमें सबसे पहले बीजो का चुनाव और उन्हें रोपने का सही तरीका समझना जरुरी होता है | बीज को अंकुरित होने के बाद पेड़ लगाया जाता है। रोपण का सही समय और जगह का विकल्प नारियल की वृद्धि को प्रभावित करता है।
जलवायु और भूमि
नारियल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर माना जाता है। गर्म और आर्द्र मौसम नारियल के पेड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए अवश्यक है। 25°C से 30°C के बीच का तापमान नारियल की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है। नारियल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है जिसमें अच्छी जल निकासी होती है।
किस्में
नारियल की कई किस्में होती है जिसमे बौनी और लंबी किस्में प्रमुख हैं | लंबी वैरायटी का पौधा लंबा होता है और इसका फल भी ज्यादा होता है, जबकी बौनी वैरायटी का पोधा जल्दी फल देने लगता है और इसका पौधा छोटा होता है। खेती के लिए ‘ईस्ट कोस्ट टाल’ और ‘ड्वार्फ ग्रीन’ जैसी प्रमुख किस्मों को ज्यादा पसंद किया जाता है।
नारियल के पौधे कैसे लगाएं
नारियल के बीज को पहले अंकुरित करना होता है। एक अच्छे अंकुरित बीज का विकल्प चुनने के बाद उसे 30x30x30 सेमी के गड्ढे में रोपना होता है। बीज को 8-10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए ताकि पौधे के बीच में उचित जगह हो। पौधों को ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां धूप अच्छी मिले और जल की सही व्यवस्था हो।
पौधे की देखभाल
नारियल के पोधों की देखभाल उनकी प्रारंभिक अवस्था में ज्यादा जरूरी होती है। पौधो में से नयी पत्तियों का लगातार निकलना एक अच्छी वृद्धि का संकेत होता हैं लगता है। पोधो को हर एक-दो महीने में प्रॉप अप किया जाता है ताकि वे ठीक से उबर सकें। इन्हें कीड़े और बिमारियों से बचाकर रखना होता है, जिनके लिए नीम का तेल या फेरोमोन ट्रैप का उपयोग किया जाता है।
खाद
Coconut farming में सही और संतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग जरूरी होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट और गाय के गोबर का उपयोग करने से पोधे को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। एक पोधे को हर साल 500 ग्राम नाइट्रोजन, 320 ग्राम फास्फोरस और 1200 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। उर्वरकों को छिड़कने का सही समय जून और दिसंबर का होता है
खरपतवार नियंत्रण
नारियल की खेती में खरपतवार की समस्य अक्सर देखी जाती है। खरपटवार का प्रभाव पोधे की वृद्धि और फलन पर होता है। खरपटवार को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग का उपयोग करना सही होता है। इसके अलावा, रासायनिक जड़ी-बूटियों का उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन इसका संतुलित प्रयोग ही किया जाए तो बेहतर होता है।
सिंचाई
नारियल के पोधों की सही तरीके से सिंचाई करना जरुरी होता है उनकी वृद्धि के लिए | शुष्क मौसम के दौरन हर हफ़्ते में एक बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। ड्रिप सिंचाई की प्रणाली बेहतर होती है, क्योंकि इससे पानी का सही वितरण होता है और पानी की बचत भी होती है।
तुड़ाई
नारियल के फल की तोड़ाई का समय पौधे की उम्र पर निर्भर करता है | लंबी किस्म का पेड़ 6-7 साल में फल देना शुरू करता है, जबकी बौनी किस्म का पेड़ 4-5 साल में। नारियल जब पानी से भर जाए तब तोड़ा जाता है |
भारत में नारियल की खेती
भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में नारियल की खेती के लिए प्रमुख राज्य हैं। भारत दुनिया में नारियल का एक बड़ा उत्पादक देश है। तटीय क्षेत्रों के अलावा अब अनेक दूसरे राज्य भी नारियल की खेती में अग्रसर हैं जहां सही जलवायु और भूमि उपलब्ध है। नारियल की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है और ये एक टिकाऊ व्यवसाय माना जाता है।
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