Giloy Ki Kheti : गिलोय जो रखे सवास्थ्य का ध्यान
गिलोय, जिसे (Tinospora cordifolia) नाम से भी जाना जाता है, एक औषधि पौधा है जो आयुर्वेद में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रसिद्ध है। इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण इसकी मांग बनी रहती है । गिलोय को “अमृता” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये कई प्रकार के रोग निवारण में उपयोगी होता है। इसलिए, Giloy Ki Kheti किसानो के लिए एक फ़ायदेमंद व्यवसाय बन सकती है। आइए जानते हैं कैसे गिलोय की खेती की जाती है और इसके लिए कौन से तरीके अपनाए जा सकते हैं।
गिलोय की खेती कैसे करें
गिलोय एक लता प्रकार का पौधा है जो एक समर्थन के साथ विकास करता है, जैसे पेड़ या खंभा। गिलोय को काटने के माध्यम से उगाया जा सकता है, जिसमें गिलोय के पुराने तने का एक हिस्सा काट कर नई जमीन में लगाया जाता है। इसके पोधे को जल्दी ही जड़ पकडने में मदद मिलती है। गिलोय को ऑर्गेनिक तरीके से उगाया जा सकता है जिससे इसका उपयोग और भी लाभदायक हो जाता है।
गिलोय की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
Giloy Ki Kheti के लिए अधिक से अधिक उपयुक्त गर्म और अध्रक्षीत होती है। भारत के कई राज्यों में इसकी खेती सफल होती है। 25°C से 35°C तक का तापमान गिलोय की खेती के लिए अनुकूल होता है। मिट्टी की बात करें तो गिलोय को सबसे ज्यादा रेतीली मिट्टी, चिकनी मिट्टी या दोमट मिट्टी पसंद होती है। मिट्टी का पीएच स्टार 6-7.5 के बीच होना चाहिए ताकि फसल अच्छे से हो सके।
गिलोय की खेती के लिए जमीन की तैयारी
गिलोय की खेती के लिए जमीन को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। ज़मीन को एक बार गहरा हल चलाकर नरम बनाया जाता है। यदि मिट्टी अधिक कड़ी है तो गोबर या जैविक खाद का इस्तेमल भूमि को नरम और उपजी बनाने के लिए तैयार किया जाता है। घराई में 1-2 बार हल चलाना आवश्यक है ताकि अच्छे पौधे विकास हो सके।
बिजाई
गिलोय की बिजाई कटिंग या तने से की जाती है। तन को 6-8 इंच के टुकड़ों में काट कर 1-2 इंच गहराई में जमीन में डाल दिया जाता है। तने के टुकड़ों को ऐसे स्थान पर लगाया जाता है जहां पर उन्हें समर्थन मिल सके, जैसे कि बगीचों में या किसी वटियारे के पास। बिजाई का समय मानसून या गर्मी के आरंभ में बेहतर होता है।
सिंचाई
गिलोय के पोधे को प्रारम्भिक अवस्था में अधिक सिंचाई की जरूरत होती है, खास कर जब तक वो पूरी तरह से जम नहीं जाता। हल्का गिला माहोल पोधों के लिए फ़ायदेमंद होता है । प्रति सप्ताह 1-2 बार सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन ये ध्यान रहे कि पानी का ज्यादा जमाव ना हो क्योंकि इससे जड़ो में सड़न हो सकता है।
खरपतवार नियन्त्रण
गिलोय की खेती में खरपतवार नियन्त्रण करना जरूरी है ताकि फसल का विकास अच्छे से हो सके। खरपतवार को हाथों से निकालना या जैविक शाकनाशी का उपयोग करना फ़ायदेमंद हो सकता है। मल्चिंग का इस्तमाल भी किया जा सकता है, जो पौधों के आस-पास की मिट्टी को नरम रखता है और खरपतवार को उगने से रोकता है।
फसल की कटाई
गिलोय की फसल लगभग 8-12 महीने में तैयार हो जाती है। जब पोधे का तन थोड़ा मोटा हो जाता है तब इसे काटा जाता है। तने को काट कर उसका उपायोग किया जाता है या बेच दिया जाता है। गिलोय के तने को ध्यान से काटा जाता है ताकि बाकी पोधा आगे विकास करता रहे ।
गिलोय की खेती के फायदे
Giloy ki kheti किसानो के लिए एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है। आयुर्वेदिक बाजार में इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गिलोय को आयुर्वेद में रोग निवारण और रोग प्रतिकार शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, गिलोय की खेती करने में कम लागत लगती है और इसका उत्पादन उचित दामों पर बिकता है, जो किसानो के लिए मुनाफ़ा कमाने का अच्छा ज़रिया बन सकता है।
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FAQs
1. गिलोय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?
गिलोय की खेती के लिए 25°C से 35°C का तापमान सबसे उपयुक्त होता है।
2. गिलोय को कैसे उगाया जाता है?
गिलोय को कटिंग के माध्यम से उगाया जाता है, जिसमें पुराने तने के टुकड़ों को नई जमीन में लगाया जाता है।
3. गिलोय की बिजाई का सही समय क्या है?
गिलोय की बिजाई का सबसे सही समय मानसून या गर्मी के आरंभ में होता है।
4. गिलोय की फसल कब तैयार होती है?
गिलोय की फसल लगभग 8-12 महीने में तैयार हो जाती है।
5. गिलोय के पौधों को सिंचाई की कितनी आवश्यकता होती है?
गिलोय के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में प्रति सप्ताह 1-2 बार सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन पानी का अधिक जमाव नहीं होना चाहिए।