Makka ki kheti :अभी करे शुरू मक्का की बुवाई और जाने क्या हैं तरीके
मक्का की खेती भारत की सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल में आती हैं , इसकी खेती से हमें कई चीज़ों का फ़ायदा होता है और इसकी फ़सल को हम कई तरीकों में प्रयोग में लेते हैं | इसकी खेती अगर आप सही वक़्त पर करते हैं , तो आपको कई और चीज़ों का ध्यान देना भी आवश्यक हैं इसकी , जैसे इसकी बुवाई करने का तरीका और खेत की तैयारी और सिंचाई से जुडी हर जानकारी भी मिलेगी तो क्या आप मक्का की खेती करते हैं तो जरूर पढ़े हमारा ये ब्लॉग | इसके अलावा अगर आप हमसे यूट्यूब चैनल पर जुड़ना चाहते हैं तो अभी करे यहाँ Click
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मक्का, जिसे आम तौर पर मक्का या मकई के नाम से जाना जाता है, दुनिया के कई हिस्सों में उगाई जाने वाली एक मुख्य फसल है। यह अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाना जाता है; इसे सीधे खाया जा सकता है, विभिन्न रूपों में संसाधित किया जा सकता है, और पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक मक्के का पौधा काफी मात्रा में उपज दे सकता है, जिससे यह किसानों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बन जाता है। यह अनाज कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है और मुश्किल समय में समुदायों को सहारा देने में मदद कर सकता है।
मक्का की खेती कैसे करें
मक्का की खेती कैसे करें और क्या हैं तरीके
- खेत को जोतने के बाद आपको ट्रैक्टर से अपने खेत में गोबर की खाद डलवानी चाहिए और फिर एक बार ट्रेक्टर से खेती में डाली गयी खाद को मिलवा लेना चाहिए | जिस से खेत की उर्वरक छमता अच्छे से बढ़ जाए
- खेती में बीजों कों बोने के समय से पहले पानी में बिंघो दे और फिर उन्हें या तो मेड बनाकर बोये या तो उसे चारो तरफ बिखेर भी सकते हैं जिस से पौधों की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा |
- अगर बीज को मेड पर बो रहे हैं तो 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बो सकते हैं जिस से पौधों अच्छे से निकलेंगे
- बीजों को बोने के बाद पानी से सिंचाई करे या फिर ऐसे समय पर बोये जब बरसात आने में सिर्फ 20 दिन या उस से काम बाकी हो |
- मक्का के पौधों की देखभाल में उन्हें समय पर पानी देना, निराई-गुडाई करना और रोगों से बचाव के लिए सुरक्षित उपाय अपनाना शामिल है। समय पर निराई करने से पौधो को पोषक तत्वों का अधिक उपयोग मिलता है, जो भुगतान बढ़ाता है।
मक्का की उन्नत किस्में
मक्का के बीज कब बोएं
Makka ki kheti ke liye mitti
मक्का की खेती में रोग नियंत्रण
मक्का कितने दिनों में तैयार हो जाता है?
मक्का की फसल बीज की किस्म पर ज्यादा निर्भर रहती हैं क्योंकि वैसे ज्यादातर किस्म 4 महीने तक पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं , पर कुछ किस्म 60 से 70 दिनों में भी तैयार हो जाती हैं | छेत्र के अनुसार बुवाई का समय अलग अलग हो सकता हैं , जहाँ पानी की समस्या काम रहती हैं वहां आप अप्रैल के अंत तक भी इसकी बुवाई कर सकते हैं इसके अलावा जहाँ पानी की कमी रहती हैं वहां बरसात आने तक का इंतज़ार कर सकते हैं जैसे जुलाई और जून के महीने तक |
फसल की कटाई
मक्का की खेती के फायदे
मक्का से किसान को फायदा
मक्का की खेती किसानों को कई लाभ प्रदान करती है, जिससे यह एक अनुकूल फसल विकल्प बन जाती है:
उच्च उपज: उचित देखभाल और समय पर खेती करने से किसान अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।बाजार की मांग: मक्का की हमेशा मांग रहती है, चाहे वह मानव उपभोग के लिए हो या पशुओं के चारे के लिए।
आय स्थिरता: मक्का उगाकर किसान पूरे साल नियमित आय सुनिश्चित कर सकते हैं।
मक्का की खेती पर 5 महत्वपूर्ण FAQ
1. मक्का की बुवाई का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
मक्का की बुवाई का सबसे उत्तम समय जून से जुलाई के बीच होता है जब मानसून की शुरुआत होती है। यह समय फसल की बढ़िया वृद्धि के लिए जरूरी नमी प्रदान करता है। वहीं अक्टूबर-नवंबर में रबी सीजन की मक्का बुवाई की जा सकती है।
2. मक्का की खेती के लिए कौन-सी मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है?
मक्का की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए और तापमान 21°C से 27°C तक सबसे अच्छा होता है।
3. मक्का की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
भारत में मक्का की कुछ प्रसिद्ध उन्नत किस्में हैं – गंगा-5, डेक्कन-103, विजय कम्पोजिट, और किसान। ये किस्में रोग प्रतिरोधक होती हैं और अच्छी गुणवत्ता के साथ अधिक उत्पादन देती हैं।
4. मक्का की फसल तैयार होने में कितना समय लेती है?
मक्का की फसल आमतौर पर 60 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है, जो कि किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है। जल्दी पकने वाली किस्में 60-70 दिनों में तैयार हो सकती हैं, जबकि सामान्य किस्मों को लगभग 4 महीने लगते हैं।
5. मक्का की खेती से क्या फायदे होते हैं?
मक्का की खेती से किसान को कम लागत में अधिक मुनाफ़ा मिल सकता है। यह फसल अनाज, पशु चारा और औद्योगिक उत्पाद बनाने में उपयोगी है। इसके अलावा यह पोषक तत्वों से भरपूर होती है और किसानों के लिए आय का एक स्थिर स्रोत बन सकती है।
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