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  • Kesar ki kheti : जानिये और इसके फायदे के बारे में

    Kesar ki kheti : जानिये और इसके फायदे के बारे में

    Kesar ki kheti : जानिये और इसके फायदे के बारे में

    केसर जिसे सैफ्रन भी कहते हैं, जिसकी उत्पत्ति एक फूल से होती है और इसको काफी मूल्यवान माना जाता है, अगर आप इसकी खेती करते हैं तो आप की आय में काफी बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन किस तरह से आप इसकी खेती कर सकते हैं वो आपको पता है। चल जायेंगे हमारे इस ब्लॉग से तो पढ़ें इसे “Kesar ki kheti : जानिये और इसके फायदे के बारे में”

    1. मिट्टी और जलवायु

    इसकी खेती के लिए दोमत मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है जिसमें पानी का निकास सही तरह से होता है | इसकी खेती ठंडी जलवायु वाले जगह अच्छी होती है तब भी ये कश्मीर उत्तराखंड में अच्छी तरह से पनपता है

    2. इसकी खेती का महीना

    इसकी खेती के प्रमुख महीने हैं, क्योंकि इसे जुलाई से अगस्त तक बोया जा सकता है, क्योंकि ये महीना इसकी खेती के लिए अच्छा होता है, क्योंकि बरसात मिट्टी को नरम रखती हैं, इसे वजह से अब इसकी खेती हर जगह उगने लगी है।

    3. केसर के पौधे की देखभाल

    केसर के पौधे की अच्छी तरह से देखभाल आपको फ़ायदा दे सकती है | क्योंकि नियामित सिचाई और निराई गुराई से और खाद की मदत से आप इसके पेड़ को रोगो से बचा सकते हैं< और इसके उत्पादन को बड़ा सकते हैं

    4. आर्थिक लाभ

    Kesar ki kheti आपको काफी लाभ दे सकती है क्योंकि इसकी खेती अगर आप करते हैं तो ये आपको लाखो में मुनाफ़ा दे सकता है। बाजार में इसकी मांग हमेशा अच्छी रहती है, इसकी वजह से ये एक अच्छा विकल्प है किसानों के लिए

    5. स्वास्थ्य लाभ

    केसर का प्रयोग हम स्वस्थ्य संबंध में कर सकते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है जो आपकी इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करता है और आपके बचाव को सुधारने और तनाव को दूर करने में मदद करता है, इसके अलावा यह स्किन बालो के लिए भी फायदेमंद होता है और आप इसे अपने बच्चे को भी दे सकते हैं जिस से आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा

    6. इसके आगे की प्रक्रिया

    केसर की फसल लगभग 70-80 दिनों में तैयार हो जाती|  इसकी जुलाई अगस्त में होती है और इसके पेड़ में फूल नवंबर तक खिलते हैं फूल खिलने के बाद इसके फूल में से केसर के धागे को निकला कर फिर उन्हें सुखकर बेचा जाता है जिस से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं

    7.  इसके उपयोग

    केसर का प्रयोग हम अनेक व्यंजनों में करते हैं, जिनमें एक स्वाद और सेहत और बढ़ते हैं। भारतीय मिठाईया बिरयानी दूध से बने खीर में प्रयोग होता है क्योंकि इस से खीर का स्वाद और बढ़ जाता है

     Kesar ki kheti FAQ’s

    • केसर की खेती कहां की जाती है?
      केसर की खेती मुख्यतः जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड के ठंडे और ऊंचे इलाकों में की जाती है। कश्मीर का केसर विश्वभर में प्रसिद्ध है।
    • केसर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु क्या है?
      केसर की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसे 12-15°C तापमान और अच्छी धूप की आवश्यकता होती है।
    • केसर की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त होती है?
      केसर की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
    • केसर की खेती में लागत और मुनाफा कितना होता है?
      केसर की खेती में प्रारंभिक लागत अधिक होती है, लेकिन एक बार पौधे लगाने के बाद कई सालों तक फसल ली जा सकती है। केसर की उच्च मांग और कीमत के कारण यह बहुत लाभकारी फसल है।
    • केसर के पौधे की बुवाई कब की जाती है?
      केसर के कंदों की बुवाई जुलाई से अगस्त के बीच की जाती है। फसल अक्टूबर-नवंबर में तैयार होती है।

    और ऐसी ही कृषि से जुड़ी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर आएं Aapkikheti.com

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  • Swaraj 744 FE Tractor : एक विश्वनीय ट्रैक्टर की विशेष जानकारी

    Swaraj 744 FE Tractor : एक विश्वनीय ट्रैक्टर की विशेष जानकारी

    Swaraj 744 FE Tractor : एक विश्वनीय ट्रैक्टर की विशेष जानकारी

    Swaraj 744 FE Tractor एक बहुत ही ताकतवर और भरोसेमंद ट्रैक्टर है, जो अपनी मजबूती और कामकाजी उपयोगिता के लिए जाना जाता है। इसे खासतौर पर भारतीय किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है और डिज़ाइन किया गया है। चलिए, इस ट्रैक्टर के फीचर्स, लाभ, और इसकी कीमत पर एक नज़र डालते हैं।

    इंजन और ताकत

    Swaraj 744 FE Tractor में 3136 सीसी का शक्तिशाली 3-सिलेंडर इंजन लगा है, जो 2000 आरपीएम पर काम करता है और 48 एचपी की ताकत प्रदान करता है। ये इंजन ट्रैक्टर को सुचारू और ईंधन कुशल बनाता है, जो हर तरह की खेती और भारी काम के लिए उपयुक्त है। डीजल इंजन होने के कारण ये डीजल का उपयोग सही तरीके से करता है, जो किसानों के डीजल के खर्च पर कम करता है।

    गियर और ट्रांसमिशन

    इस ट्रैक्टर में 8 फॉरवर्ड और 2 रिवर्स गियर दिए गए हैं, जो स्मूथ और फ्लेक्सिबल चलने में मदद करते हैं। इसका कॉन्स्टेंट मेश ट्रांसमिशन किसानों को अलग-अलग स्पीड में चलने की सुविधा प्रदान करता है, जो अलग-अलग तरह की खेती के कामों में काम आता है।

    उठाने की क्षमता और हाइड्रोलिक्स

    स्वराज 744 FE की उठाने की क्षमता 1700 किलोग्राम तक है, जो इससे भरी खेतीबाड़ी के कामों के लिए एक बेहतरीन ट्रैक्टर बनाता है। इसमें उन्नत एडीडीसी (स्वचालित गहराई और ड्राफ्ट नियंत्रण) हाइड्रोलिक्स भी है, जो मिट्टी के अनुसर स्वचालित रूप से समायोजित हो जाता है और जुताई के दौरान आसानी प्रदान करता है।

    टायर का आकार और स्थिरता

    इसके टायर भी मजबूत और संतुलित होते हैं। आगे के टायर 6.00 x 16 इंच के होते हैं और पीछे के टायर 13.6 x 28 इंच के होते हैं, जो इसे असमान और उबड़-खाबड़ जमीन पर भी स्थिरता देते हैं। ये टायर सेटअप खेतीबाड़ी के अलग-अलग कामों में और कीचड़ भरी जमीन में ट्रैक्टर की पकड़ को मजबूत बनाता है।

    सुविधाएँ और आराम

    इस ट्रैक्टर में साइड शिफ्ट गियर और आरामदायक सीटिंग है, जो लंबी खेतीबाड़ी के कामों में ऑपरेटर को आराम प्रदान करता है। इसमें एडजस्टेबल सीटें और पावर स्टीयरिंग भी उपलब्ध है, जो आसान स्टीयरिंग और ड्राइविंग अनुभव देता है। स्वराज 744 एफई में हाई ग्राउंड क्लीयरेंस है, जो पथरीले और उबड़-खाबड़ इलाकों पर आसानी से चलता है।

    भारत में स्वराज 744 एफई की कीमत

    इसके दाम की बात करें तो Swaraj 744 FE की कीमत लगभग 6.90 लाख से 7.40 लाख रुपए के बीच होती है। अपने फीचर्स और मजबूती के कारण यह किसानों के लिए एक किफायती और मूल्यवान विकल्प है। विकल्प है, जो किसानों के बजट में भी फिट बैठता है।

    क्यू चुने स्वराज 744 एफई?

    Swaraj 744 FE Tractor

    ताकत और टिकाऊपन: मजबूत इंजन और हाई टॉर्क के कारण, ये कठिन परिस्थितियां भी सही प्रदर्शन करती हैं।
    ईंधन दक्षता: डीजल का कम और हाई पावर इससे किसान का पसंदीदा बनता है।
    उन्नत हाइड्रोलिक्स: एडीडीसी हाइड्रोलिक्स के साथ भारी उपकरण को उठाने में आसानी प्रदान करता है।
    आरामदायक ड्राइविंग अनुभव: एडजस्टेबल सीट और पावर स्टीयरिंग के साथ ये लम्बी दूरी के कामों में भी आराम प्रदान करता है।
    विश्वसनीय और लंबे समय तक चलने वाला: स्वराज 744 एफई का नाम ही विश्वास और गुणवत्ता की निशानी है।

    पढ़िए यह ब्लॉग  Massey Ferguson 1035 DI Dost

    FAQs

    Swaraj 744 FE का इंजन कितने HP का है?
    उत्तर: Swaraj 744 FE में 48 HP का शक्तिशाली इंजन लगा है, जो 2000 RPM पर काम करता है।

    Swaraj 744 FE की उठाने की क्षमता कितनी है?
    उत्तर: Swaraj 744 FE की उठाने की क्षमता 1700 किलोग्राम तक है, जो इसे भारी खेतीबाड़ी के कामों के लिए उपयुक्त बनाता है।

    इस ट्रैक्टर में कितने गियर होते हैं?
    उत्तर: Swaraj 744 FE में 8 फॉरवर्ड और 2 रिवर्स गियर दिए गए हैं।

    Swaraj 744 FE की कीमत भारत में कितनी होती है?
    उत्तर: Swaraj 744 FE की कीमत लगभग 6.90 लाख से 7.40 लाख के बीच होती है, जो राज्य और क्षेत्र के हिसाब से थोड़ी भिन्न हो सकती है।

    Swaraj 744 FE में कौन से विशेष हाइड्रोलिक्स फीचर्स हैं?
    उत्तर: Swaraj 744 FE में उन्नत ADDC हाइड्रोलिक्स हैं, जो स्वचालित गहराई और ड्राफ्ट नियंत्रण प्रदान करते हैं, जिससे मिट्टी के अनुसार खुद को समायोजित कर सकते हैं।

     

  • Ashwagandha ki kheti : करे और पाए गेहू मक्का और धान से 50 %अधिक मुनाफा

    Ashwagandha ki kheti : करे और पाए गेहू मक्का और धान से 50 %अधिक मुनाफा

    Ashwagandha ki kheti : करे और पाए गेहू मक्का और धान से 50 %अधिक मुनाफा

    क्या आप किसी पौधे की खेती करना चाहते हैं जो आपको स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में और इसे उन कंपनी में बेच सके जो दवाई बनाते हैं तो हमारे Ashwagandha ki kheti ब्लॉग को जरूर पढ़े जिसमे आप जानेंगे की इसकी खेती कैसे करे और किस किस तरह से इसका प्रयोग किया जा सकता हैं | इन सभी जानकारी को जानने के हमारा ब्लॉग को जरूर पढ़े

    Ashwagandha ki kheti Aapkikheti.com

    जाने Ashwagandha ki kheti से जुडी ये सभी जानकारी

    1. अश्वगंधा की खेती से कमाई

    अश्वगंधा की खेती गरीब किसानों के लिए बहुत लाभदायक हो सकती है,इसके खेती से औसतन प्रति हेक्टेयर 3 से 6 क्विंटल सूखी जड़ का उत्पादन होता है। भारत में इस समय अश्वगंधा की जड़ की कीमत लगभग ₹120-₹150 प्रति किलोग्राम है तो किसान प्रति हेक्टेयर लगभग ₹3,60,000 से ₹9,00,000 तक कमा सकते हैं, जिसमें उत्पादन लागत शामिल होती है। इसके अलावा, अगर किसान अश्वगंधा पाउडर या और कोई फसल का भाग बेचते हैं तो उनकी कमाई और भी अधिक हो सकती है, क्योंकि इसके हर हिस्से की बाजार अच्छी मांग हैं

    2. अश्वगंधा की खेती का समय

    अश्वगंधा एक सूखा-रोधी फसल है और इसे गर्म जलवायु की जरुरत होती है। इसे आमतौर पर खरीफ के मौसम (जून-जुलाई) में बोया जाता है और सर्दियों के महीनों (दिसंबर-जनवरी) में इसकी कटाई की जाती है। इस फसल को पूरी तरह से पकने में 150-180 दिन लगते हैं। हालांकि, बोने का समय मौसम के हिसाब से अलग हो सकता हैं उदाहरण के लिए, राजस्थान में, जहाँ यह फसल अच्छी तरह से पनपती है, बीज आमतौर पर मानसून की शुरुआत में बोए जाते हैं, ताकि शुरुआती समय में मिटटी में नमी बानी रहे और फसल को बढ़ने में आसानी हो

    3. अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र

    अश्वगंधा भारत का मूल निवासी पौधा है और शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है। यह रेतीली या दोमट मिट्टी और 20°C से 35°C के बीच के मध्यम तापमान वाले क्षेत्रों में पनपता है। भारत में अश्वगंधा की खेती के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं:

    राजस्थान: यह राज्य अपने शुष्क जलवायु और उपयुक्त मिट्टी के कारण अश्वगंधा का प्रमुख उत्पादक है। नागौर, जोधपुर, बाड़मेर और पाली जिलों में बड़े पैमाने पर अश्वगंधा की खेती की जाती है।

    मध्य प्रदेश: मंदसौर, नीमच और रतलाम के क्षेत्र भी प्रमुख अश्वगंधा उगाने वाले इलाके हैं।

    उत्तर प्रदेश: झांसी और ललितपुर जैसे जिलों में भी अश्वगंधा की खेती होती है।

    महाराष्ट्र और गुजरात: इन राज्यों के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी यह फसल अच्छी तरह से उगाई जाती है।
    इसके अलावा, अन्य क्षेत्रों में भी जहाँ ऐसी ही मिट्टी और जलवायु है, अश्वगंधा की व्यावसायिक खेती की जा सकती है।

    4. Ashwagandha ki kheti kaise kare

    •  मिट्टी की तैयारी
      अश्वगंधा को हल्की, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली या दोमट मिट्टी पसंद है, जिसका pH 7.5 से 8 के बीच हो। मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए 2-3 बार हल चलाना चाहिए। भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक खाद या कम्पोस्ट का उपयोग किया जाना चाहिए।
    • बीज चयन और बुवाई
      उच्च अंकुरण दर वाले प्रमाणित बीजों का चयन किया जाना चाहिए। बीजों को सीधा खेत में बोया जाता है। प्रति हेक्टेयर लगभग 5-7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को 1-2 सेमी गहराई में बोया जाना चाहिए और पंक्तियों के बीच लगभग 30 सेमी की दूरी होनी चाहिए।
    • सिंचाई
      अश्वगंधा एक सूखा-प्रतिरोधी फसल है और इसे बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। राजस्थान जैसे क्षेत्रों में वर्षा आधारित खेती उपयुक्त होती है। हालांकि, यदि बारिश कम होती है, तो बुवाई के समय और बढ़ते चरण में एक या दो बार हल्की सिंचाई लाभदायक हो सकती है। अधिक सिंचाई से बचना चाहिए, क्योंकि इससे जड़ सड़ सकती है।
    •  निराई और उर्वरक उपयोग
      निराई-गुड़ाई नियमित रूप से की जानी चाहिए, खासकर शुरुआती विकास चरणों में। जैविक उर्वरक जैसे वर्मीकम्पोस्ट और गोबर की खाद मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सिफारिश की जाती है। रासायनिक उर्वरकों का सीमित मात्रा में उपयोग फसल वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।
    • कटाई
      बुवाई के 5-6 महीने बाद अश्वगंधा की जड़ों की कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पत्तियां सूखने और पीली होने लगती हैं, तो पौधों को मिट्टी से खींचा जाता है और जड़ों को साफ करके धूप में सुखाया जाता है।

    5. Ashwagandha ki kheti kahan hoti hain

    भारत के कई राज्यों में अश्वगंधा की खेती होती है, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात प्रमुख हैं। वैश्विक स्तर पर इसे अफ्रीका, मध्य पूर्व और कुछ अमेरिकी और चीनी क्षेत्रों में भी उगाया जाता है। हालांकि, भारत जलवायु की अनुकूलता और औषधीय पौधों की पुरानी परंपरा के कारण अश्वगंधा का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।

    6. अश्वगंधा पाउडर के फायदे

    Ashwagandha ki kheti Aapkikheti.com

    अश्वगंधा अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है और इसका पाउडर आयुर्वेदिक चिकित्सा में विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए उपयोग किया जाता है:

    तनाव से राहत: अश्वगंधा एक ‘एडाप्टोजेन’ है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर को तनाव प्रबंधन में मदद करता है। यह कॉर्टिसोल के स्तर को कम करता है और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देता है।

    प्रतिरक्षा में सुधार: अश्वगंधा का नियमित सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, जिससे शरीर संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में सक्षम होता है।

    शक्ति और सहनशक्ति बढ़ाना: अश्वगंधा शारीरिक सहनशक्ति और ताकत में सुधार करता है, जिससे यह खिलाड़ियों और फिटनेस प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है।

    सूजनरोधी गुण: इस जड़ी-बूटी में प्राकृतिक सूजनरोधी गुण होते हैं, जो गठिया जैसे रोगों में सूजन और दर्द को कम करने में सहायक होते हैं।

    नींद में सुधार: अश्वगंधा नींद की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है और इसे अनिद्रा से पीड़ित लोगों के लिए सिफारिश की जाती है।
    हार्मोन संतुलन: यह थायरॉयड और अधिवृक्क ग्रंथियों के कार्य को नियंत्रित करने में सहायक है और प्रजनन स्वास्थ्य में भी सहायक होता है।

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    Ashwagandha ki kheti FAQ’s

    Ashwagandha kya hain

    अश्वगंधा एक औषधीय पौधा है जिसका आयुर्वेदिक चिकित्सा में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसकी जड़ों और पत्तियों का व्यावसायिक उपयोग किया जाता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।

    अस्वगंधा की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है?

    अश्वगंधा की खेती रेतीली मिट्टी या उन क्षेत्रों में की जा सकती है जहाँ जल निकासी अच्छी हो। इसे उपजाऊ मिट्टी में भी उगाया जा सकता है लेकिन वहाँ गहरा पानी जमा नहीं होना चाहिए।

    अश्वगंधा की खेती के लिए कौन सा मौसम सही है?

    अश्वगंधा गर्म और शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगता है। इसके बीज खरीफ मौसम (जुलाई से अक्टूबर) में बोए जाते हैं, लेकिन कुछ जगहों पर इसकी खेती रबी मौसम में भी की जा सकती है।

    अश्वगंधा की खेती कैसे शुरू करें?

    अश्वगंधा की खेती के लिए सबसे पहले बीजों का चयन करें और फिर इसे खुले खेत में बोएँ। इसकी खेती के लिए बीजों को 2-3 सेमी की गहराई पर बोया जाता है। बोए गए बीजों को हर 15-20 दिन में पानी देना चाहिए।

    अश्वगंधा की खेती में कितना समय लगता है?

    अश्वगंधा की फसल तैयार होने में लगभग 150 से 180 दिन लगते हैं, जिसमें जड़ों के पकने और फसल की कटाई का समय भी शामिल है।

    अश्वगंधा की खेती के लिए कितने पानी की आवश्यकता होती है?

    इसकी खेती के लिए बहुत ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन शुरुआती दौर में थोड़ी सिंचाई की ज़रूरत होती है। बीच में अगर पानी की कमी भी हो जाए, तो यह अपने आप एडजस्ट हो जाती है।

    अश्वगंधा की खेती के क्या-क्या फ़ायदे हैं?

    अश्वगंधा एक व्यावसायिक रूप से फ़ायदेमंद फसल है, जिसके लिए आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ रही है। इसके फल और जड़ें बाज़ार में उचित मूल्य पर बिकती हैं, जो किसानों के लिए आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद है।

    क्या अश्वगंधा की खेती में कोई विशेष रोग या कीट हैं?

    अश्वगंधा में पत्ती धब्बा, जड़ सड़न और डैंपिंग-ऑफ़ जैसी कुछ सामान्य बीमारियाँ हो सकती हैं। इन बीमारियों से बचने के लिए खेती में उचित निवारक उपाय अपनाने चाहिए।

    अश्वगंधा की खेती में खाद और पोषक तत्वों की क्या ज़रूरत होती है?

    अश्वगंधा की खेती में हर 10-15 घंटे में जैविक खाद या थोड़ा रासायनिक उर्वरक डालना चाहिए। इसके स्वस्थ विकास के लिए जैविक खाद का उपयोग अधिक उपयोगी है।

    क्या Ashwagandha ki kheti के लिए कोई सरकारी योजना उपलब्ध है?

    सरकार ने औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) के तहत सहायता उपलब्ध है। इसके लिए राज्य के कृषि विभाग या वनस्पति विभाग से संपर्क किया जा सकता है।

  • चारकोल का उपयोग :कैसे बढ़ाएं मिट्टी की उपज, खेतों में इस तरीके से करें इस्तेमाल

    चारकोल का उपयोग :कैसे बढ़ाएं मिट्टी की उपज, खेतों में इस तरीके से करें इस्तेमाल

    चारकोल का उपयोग :कैसे बढ़ाएं मिट्टी की उपज, खेतों में इस तरीके से करें इस्तेमाल

    अगर आप भी खेती में उर्वरकता बढ़ाना चाहते हैं पर आप सही तरह से खाद का चुनाव नहीं कर पा रहे हैं तो ये ब्लॉग आपको बहुत अच्छी जानकारी प्रदान करेगा तो अभी पढ़े हमारे ब्लॉग चारकोल का उपयोग :कैसे बढ़ाएं मिट्टी की उपज, खेतों में इस तरीके से करें इस्तेमाल को जिस से आप भी खेती में बढ़ोतरी कर सको |

    चारकोल का उपयोग

    जाने चारकोल के उपाय से खेती में फायदा

    चारकोल के बारे में जाने

    आप चारकोल का इस्तेमाल खाद के रूप में भी कर सकते हैं. चारकोल यानी लकड़ी का कोयला मिट्टी की उपजाऊता बढ़ाने में सहायक होता है. आप चारकोल को बाजार से खरीद भी सकते हैं या फिर घर में भी बना सकते हैं. आइए जानते हैं चारकोल का उपयोग खेतों में कैसे किया जा सकता है. चारकोल यानी लकड़ी का कोयला, आप इसका इस्तेमाल खाद के तौर पर भी कर सकते हैं. चारकोल या बायोचार खेती में बड़ा लाभ दे सकता है और इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. आप चाहें तो इसे घर पर बना सकते हैं या बाजार में आधुनिक तरीके से बनाकर इसे बेचा जाता है, उसे खरीदकर खेतों में डाल सकते हैं.

    चारकोल को घर में कैसे बनाए

    चारकोल का उपयोग

    घर में बनाना हो तो आप ड्रम विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसे हैदराबाद स्थित केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान ने तैयार किया है. इसमें एक ड्रम होता है जिसमें चारकोल तैयार किया जाता है. इस विधि में ड्रम में बायोमास के अवशेष रख कर उसे आग पर चढ़ाया जाता है. इस ड्रम को 90-95 मिनट के लिए चूल्हे पर रखा जाता है फिर बाद में उसे उतार कर उसका ढक्कन बंद करके उसपर गीली मिट्टी चढ़ा दी जाती है. इससे चारकोल तैयार हो जाता है.  इस चारकोल को किसान अपने खेतों में इस्तेमाल करके फसल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं. चारकोल को बुवाई से पहले खेत की जुताई के दौरान 10-15 सेमी की गहराई पर और खड़ी फसल में छिड़का जा सकता है. इसे एक साथ अधिक मात्रा में या कई बार कम-कम मात्रा में भी इस्तेमाल कर सकते हैं खाद की कुछ मात्रा को घटाकर और उसकी जगह पर बायोचार की कुछ मात्रा का उपयोग करने से भी पैदावार को बढ़ाया जा सकता है. चारकोल फसल के लिए कितना फायदेमंद है, यहां इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कितने तापमान पर बनाया गया है. अगर तापमान ज्यादा रहेगा तो उसके पोषक तत्व मर जाते हैं जबकि 500-600 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बनाया गया चारकोल मिट्टी में अधिक लाभ देता है. ऐसा चारकोल मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाता है. कम तापमान पर बने चारकोल या बायोचार में पोषक तत्व खत्म नहीं होते. इसलिए उसे खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है. चारकोल मिट्टी में मौजूद सूक्षमजीवों को बढ़ाता है.  चारकोल फसल उत्पादन बढ़ाने के अलावा किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है. यह फसल की बुवाई से लेकर उसके पकने तक बड़ी भूमिका निभाता हैयह फसल को शुरुआती अवस्था में ही ज्यादा पोषक तत्व देता है, जिससे उनकी ग्रोथ अच्छी होती है. इससे पौधों की जड़ से लेकर तना, फूल और फलों में अच्छी वृद्धि देखी जाती है. चारकोल से मिट्टी की एसिडिटी भी कम होती है और पीएच मान सही बना रहता है.

    अगर आपको ऐसी ही जानकारी जाननी है तो हमारी वेबसाइट Aapkikheti.com पर जाय जहां आपको हर तरह के ब्लॉग मिलेंगे जो आपको खेती से जुडी हर जानकारी प्रदान करेंगे |

     

  • Sugarcane ki kheti: तना छेदक खतरनाक कीट से ऐसे करें बचाव  पढ़े ब्लॉग

    Sugarcane ki kheti: तना छेदक खतरनाक कीट से ऐसे करें बचाव पढ़े ब्लॉग

    Sugarcane ki kheti: तना छेदक खतरनाक कीट से ऐसे करें बचाव पढ़े ब्लॉग

    Sugarcane Ki kheti  भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह विभिन्न कीटों और बीमारियों से प्रभावित हो सकती है। इनमें से सबसे खतरनाक कीटों में से एक है ‘गन्ने का तना छेदक’ (Sugarcane stem borer)। यदि इस कीट का समय रहते सही तरीके से प्रबंधन नहीं किया गया तो यह भारी नुकसान पहुंचा सकता है। इस ब्लॉग में  किट से कैसे करे बचाव विस्तार से चर्चा करेंगे।

    Sugarcane ki kheti से जुड़ी हर बडी खबर जानिए इस ब्लॉग में

    Sugarcane ki kheti kaise kare

    गन्ने की खेती के लिए पहले गन्ने के टुकड़े या “सेट्स” को छोटे टुकड़ों में काट कर लगाया जाता है। हर टुकड़े में 2-3 आंखें होनी चाहिए, जहां से नए पौधे उगते हैं। सेटट्स को 10-15 सेमी गहराई में बीज लवन करते हैं और इन्हें सुरक्षित खेतों में अच्छे से लगते हैं।

    गन्ने की उन्नत किस्में

    गन्ने की उन्नत किस्में है जो उपज और चीनी के सितारों को बढ़ाती है। कुछ प्रमुख किस्मे हैं: सीओ 86032
    सीओजे 64
    सीओ 238
    इन किस्मो के उपयोग अधिक उत्पादन और प्रतिधान के लिए किया जाता है।

    मिट्टी और जलवायु

    गन्ने की खेती के लिए दोमत मिट्टी या भारी लोम मिट्टी सबसे उत्तम होती है। मिट्टी का pH लेवल 6.5 -7.5 के बीच होना चाहिए। गन्ने को गरम और नरम जलवायु की ज़रूरत होती है, जिसमें 20-35 डिग्री सेल्सियस का तापमान होता है।

    सिंचाई

    गन्ने की खेती में सिंचाई एक महत्वपूर्ण भाग है। बीज लवन के 2-3 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद, फसल के विकास के हिसाब से हर 10 -15 दिन में सिंचाई करनी होती है। तापमान के हिसाब से सिंचाई का इंटरवल कम या ज़्यादा हो सकता है।

    खरपतवार नियंत्रन

    गन्ने की खेती में खरपतवार को समय पर नियंत्रित करना जरूरी है। मल्चिंग का इस्तमाल या हाथ से खरपतवार को साफ करना अच्छा तरीके हैं। ये खेती में उनके प्रभाव को कम करता है और पौधों की अच्छी वृद्धि होती है।

    खाद

    गन्ने की खेती में सही मात्रा में जैविक और रसायनिक खाद का प्रयोग जरूरी होता है। जैविक खाद जैसी गोबर की खाद और रसायनिक खाद जैसी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश को समय पर देना चाहिए ताकि फसल की वृद्धि अच्छी हो और उपज में वृद्धि हो।

    गन्ने का तना छेदक: एक परिचय

    गन्ने का तना छेदक एक प्रमुख कीट है जो गन्ने की फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के लार्वा गन्ने के तने में घुसकर भीतर से खाते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फसल की गुणवत्ता और उपज में भारी गिरावट आती है। तना छेदक के लक्षणों में तनों में छिद्र, पीले पत्ते, और सूखे तने शामिल हैं।

    तना छेदक के हमले के लक्षण

    तना छेदक के हमले के कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

    तनों में छिद्र: गन्ने के तने में छोटे-छोटे छिद्र दिखाई देते हैं, जो कीट के प्रवेश के निशान होते हैं।

    पीले और सूखे पत्ते: पौधे की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और समय से पहले सूखने लगती हैं।

    गन्ने का गिरना: तनों की कमजोरी के कारण गन्ने का पौधा गिर सकता है।

    कमजोर तना: तना अंदर से खोखला और कमजोर हो जाता है, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

    तना छेदक से बचाव के उपाय

    तना छेदक के प्रकोप से गन्ने की फसल को बचाने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं:

    1. उचित फसल चक्र (Crop Rotation)

    फसल चक्र अपनाने से तना छेदक कीट की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। गन्ने के बाद अन्य फसलों की खेती करने से कीट के जीवन चक्र को बाधित किया जा सकता है और उनकी संख्या कम की जा सकती है।

    2. जैविक नियंत्रण (Biological Control)

    तना छेदक के नियंत्रण के लिए जैविक नियंत्रण एक प्रभावी उपाय है। जैविक नियंत्रण में निम्नलिखित शामिल हैं:

    परजीवी ततैया: Trichogramma जैसे परजीवी ततैया तना छेदक के अंडों पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट करते हैं।

    परभक्षी कीड़े: कुछ परभक्षी कीड़े, जैसे कि Chrysoperla, तना छेदक के लार्वा को खाते हैं और उनकी संख्या को नियंत्रित करते हैं।

    3. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control)

    तना छेदक के प्रकोप के समय रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। हालांकि, रासायनिक नियंत्रण को अंतिम उपाय के रूप में उपयोग करना चाहिए और इसे सावधानीपूर्वक करना चाहिए। निम्नलिखित कीटनाशक तना छेदक के नियंत्रण के लिए उपयोग किए जा सकते हैं:

    क्लोरपायरीफॉस (Chlorpyrifos), साइपरमेथ्रिन (Cypermethrin) कार्बोफ्यूरान (Carbofuran)

    4. यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical Control)

    यांत्रिक नियंत्रण विधियाँ तना छेदक के प्रकोप को कम करने में सहायक होती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

    प्रभावित तनों को हटाना: संक्रमित तनों को पहचानकर उन्हें खेत से हटाना चाहिए, ताकि कीट का प्रसार रोका जा सके।

    गन्ने की उचित रोपण दूरी: गन्ने के पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें, जिससे हवा और रोशनी का संचरण बेहतर हो सके और कीट का प्रसार कम हो।

    5. सांस्कृतिक नियंत्रण (Cultural Control)

    सांस्कृतिक नियंत्रण विधियाँ गन्ने की फसल के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

    समय पर बुवाई और कटाई: गन्ने की बुवाई और कटाई के समय का सही चयन करने से तना छेदक के प्रकोप को कम किया जा सकता है।

    स्वच्छता और सफाई: खेत की सफाई और पुराने फसलों के अवशेषों को हटाने से कीट के प्रजनन स्थल कम होते हैं।

    6. अवशेष प्रबंधन (Residue Management)

    गन्ने की फसल के बाद खेत में बचे अवशेषों को प्रबंधित करना भी तना छेदक के नियंत्रण में सहायक होता है। अवशेषों को जलाने या उन्हें गहरी जुताई द्वारा मिट्टी में मिलाने से कीट के अंडों और लार्वा को नष्ट किया जा सकता है।

    कीट प्रबंधन में किसानों की भूमिका

    तना छेदक से बचाव के लिए किसानों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उन्हें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

    नियमित निरीक्षण: फसल की नियमित रूप से जाँच करें और प्रारंभिक लक्षणों की पहचान करें।

    सही जानकारी: कीट प्रबंधन के बारे में सही जानकारी प्राप्त करें और कृषि विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली सलाह का पालन करें।

    समुचित प्रशिक्षण: कीट प्रबंधन और नियंत्रण विधियों के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त करें।

    गन्ने की फसल को तना छेदक जैसे खतरनाक कीटों से बचाना आवश्यक है, अन्यथा भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। उचित फसल चक्र, जैविक, रासायनिक, यांत्रिक, सांस्कृतिक, और अवशेष प्रबंधन विधियों का सही उपयोग करके इस कीट के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है। किसानों को समय पर उचित कदम उठाने और कीट प्रबंधन के उपायों का पालन करने से फसल की सुरक्षा और उत्पादन में वृद्धि संभव है।

    Sugarcane Ki kheti ब्लॉग में बताए गए उपायों का पालन करके किसान अपनी गन्ने की फसल को तना छेदक के खतरनाक प्रकोप से बचा सकते हैं और अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाएगा। कृषि से जुड़ी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें Aapkikheti.com 
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  • Strawberry ki kheti: खेती से जुडी हर जानकरी जाने यहां

    Strawberry ki kheti: खेती से जुडी हर जानकरी जाने यहां

    Strawberry ki kheti: खेती से जुडी हर जानकरी जाने यहां

    Strawberry ki kheti एक लाभदायक और लोकप्रिय कृषि गतिविधि है, जो मुख्य रूप से ठंडे और समशीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में की जाती है। यह एक रसीला और स्वादिष्ट फल है, जिसे ताजगी और पोषण के लिए जाना जाता है। स्ट्रॉबेरी की खेती भारत में मुख्य रूप से महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और उत्तर पूर्वी राज्यों में की जाती है।

    आखिर कैसे करे Strawberry ki kheti जाने यहाँ

    मिट्टी की तैयारी और बीजाई उत्पादन

    Strawberry ki kheti शुरू करने के लिए सबसे पहले उपयुक्त मिट्टी का चयन करना आवश्यक है। इसके लिए मिट्टी का पीएच लेवल 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए, जो पौधे अच्छे विकास के लिए जरूरी है। नर्सरी में स्ट्रॉबेरी के बीज उगाए जाते हैं। बीजाई उगने के लिए बीज ट्रे या पीट पॉट का उपयोग किया जाता है जहां पर बीजाई को उगाया जा सकता है। बीज की तैयारी और उनकी उगने की अवधि में ध्यान दिया जाता है ताकि अंकुर स्वस्थ हों और उनका प्रत्यारोपण समय पर हो सके।

    प्रत्यारोपण का महत्व

    जब पौधे 3-4 पत्ते वाले हो जाते हैं, तब उन्हें खेत में रोपाई किया जाता है। प्रत्यारोपण के समय ध्यान दिया जाता है कि खेत का उचित जल निकासी हो ताकि पौधे की जरूरत के अनुसार पानी प्राप्त हो सके। इस समय पर पौधे को अच्छी धूप के लिए उजागर किया जाता है ताकि उनका विकास अच्छे से हो सके।

    पोषण और पानी की प्रवृत्ति

    पौधों की देखभाल में पानी की प्रकृति का महत्वपूर्ण स्थान है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करके पौधो को नियम रूप से पानी प्रदान किया जाता है, जिसे पानी की बचत होती है और पौधो को सही मात्रा में पानी मिलता है। इसी प्रकार, पौधों को समय पर जैविक या रासायनिक उर्वरकों से पोषण प्रदान किया जाता है ताकि उनका विकास सही समय पर हो सके।

    स्ट्रॉबेरी में लगने वाले रोग

    पौधों की रक्षा के लिए कीट और रोग से बचाव भी खतरनाक है। इसके लिए जैविक कीटनाशक जैसे नीम का तेल, पायरेथ्रम या फिर कोई अन्य प्राकृतिक उपाय किया जा सकता है। रोगन और कीटों के समय पर निदान करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और उनका विकास भी अच्छा होता है।

    फलोत्पादन एवं सामायिक पोषण

    जब पौधे लगभाग 4-6 हफ्ते के बाद फल देने लगते हैं, तब उन्हें समय पर तोड़ेन और पोषण प्रदान करते रहेंगे ताकि उनका विकास सही समय पर हो सके। फलोत्पादन के दौरन भी पौधों को सामायिक पोषण प्रदान करते रहें ताकि उनका विकास अच्छे से हो सके और उनमें किसी प्रकार की कमी न आए।

    Strawberry ki kheti एक महत्तवपूर्ण और संवेदनाशील कृषि पद्धति है जो समय, मेहनत और विधियों को समझकर और अमल में लाते हुए अच्छी भुगतान प्राप्त करने में सहायक होती है। इस पद्धति को सही तरीके से समझने और अमल में लाने से पौधे स्वस्थ और विकसित रहते हैं और कृषि क्षेत्रों में लाभकारी हो सकती है।

    Strawberry farming benefit

    स्ट्रॉबेरी की खेती करके आप काफी पैसा कमा सकते हैं क्योंकि इसकी खेती काफी आसान होती हैं और इसके दाम गेहू से ज्यादा कीमत में भी मिलता हैं जिस से आप गेहू की खेती की जगह इसकी खेती कर सकते हैं

    खेती से जुड़ी और जानकारी के लिए यहां पर क्लिक करें Aapkikheti.com

  • Matar ki kheti : जानिये यहाँ मटर की खेती से जुडी सारी अहम् जानकारी

    Matar ki kheti : जानिये यहाँ मटर की खेती से जुडी सारी अहम् जानकारी

    Matar ki kheti : जानिये यहाँ खेती से जुडी सारी अहम जानकारी

    क्या आप सोच रहे हैं की सर्दियां आ रही हैं ,तो किस चीज़ की खेती करू जिस से काफी फायदा हो तो करें| Matar ki kheti क्योंकि ये सर्दियों में अधिक प्रयोग होने वाली सब्जियों में आती हैं ,अगर आप करना चाहते हैं तो पढ़े हमारे इस ब्लॉग को जो आपको सभी जानकारी देगा और अगर आप हमारे इंस्टाग्राम से जुड़ना चाहते हैं तो यहाँ Click करें |

    Matar ki kheti Aapkikheti.com

    जाने हर जुडी जानकारी हमारे इस ब्लॉग में

    Matar ki kheti के बारे मे

    मटर एक तरह की दाने वाली फसल हैं ,जो आपने बहुमुखी प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं, क्योकि इसको हम नास्ते में खा सकते हैं इसके अलावा आप इसे सूखा कर भी यूज़ कर सकते हो | मटर की खेती आपको सर्दियों में सबसे अधिक देखने को मिलेगी

    Matar ki kheti ke liye mitti

    इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी 6 पीएच से 7 पीएच तक की होती है ,और हल्की दोमट मिट्टी चुने जो इसकी खेती के लिए सही होती हैं क्योकि यह मिटटी पानी को जमा होने से बचाती हैं जिस से फसल सही रहती हैं|

    सबसे ज्यादा कहाँ होती हैं खेती

    इसकी खेती ज्यादातर पंजाब ,उत्तरप्रदेश, हरयाणा, मध्यप्रदेश में सबसे अधिक होती हैं क्योंकि ये राज्य इसकी खेती के लिए बहुत उपयोगी होते हैं यहाँ का वातावरण इन के लिए पर्याप्त स्तिथि प्रदान करते हैं

    Matar ki kheti kaise karen

    खेती करने के लिए सबसे पहले आपको खेत को की तारह से जोतना होगा ध्यान मिटटी में पथर नहीं बचने चाहिए  |इसको बोने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से नवंबर तक होता हैं और आपकोअच्छी बीज को लेना हैं और 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई और 30 -40 के सेंटीमीटर की दूरी पर लगाए और आपको इनको कीट से बचाने के लिए उर्वरक का भी प्रयोग करना पड़ेगा जिस से वो ऐसी फसल देने के लिए उपयोगी रहेंगे

    मटर के खेत में पानी कैसे लगाए

    मटर की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है लेकिन आपको इसमें 10 से 15 दिन के अंतराल पर पानी देते रहना चाहिए ताकि फसल ठीक रहे और अगर आप ज्यादा पानी देंगे तो जड़ सड़ने का डर रहता है। इस कारण से अच्छी मिट्टी का चुनाव करना सबसे सही रहता हैं

    matar ki kheti kab hoti hai

    मटर की खेती अक्टूबर के अंत से और नवंबर और शुरुवात तक बोई जाती हैं जो की इसकी खेती करने के लिए सबसे सही समय होता हैं | खरीफ की फसल के बाद ही वैसे इसकी फसल कर दी जाती हैं

    मटर में लगने वाले रोग

    Matar ki kheti Aapkikheti.com

     उकठा रोग: इस रोग में पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. मौसम में बदलाव और बार-बार एक ही फ़सल लगाने से यह रोग होता है. इस रोग से बचने के लिए, संक्रमित खेत में दो-तीन साल तक मटर न बोएं. 
    सफ़ेद तना झुलसा: यह रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम कवक से होता है. यह कवक मिट्टी में सर्दियों में रहता है और हवा और सिंचाई से फैलता है. इस रोग से बचने के लिए, कम से कम पांच साल का खेती का अंतराल रखें और प्रतिरोधी किस्मों की खेती करें. 
    मटर बीज जनित मोजेक वायरस (पीएसबीएमवी): यह वायरस बीज से फैलता है और एफ़िड्स के ज़रिए भी फैलता है. इस रोग के लक्षण ये रहे: 
    • पत्तियां संकरी हो जाती हैं और नीचे की ओर मुड़ जाती हैं.
    • पौधों के ऊपरी हिस्से में फली छोटी हो जाती है और चमकदार हरे रंग की दिखती है.

    पाइथियम रोग: यह रोग नम मिट्टी और ज़्यादा आर्द्रता में होता है. इस रोग से बचने के लिए, मिट्टी में जैव कवक नाशी का इस्तेमाल करें

    FAQ’S Related to Matar ki kheti

    प्रश्न 1: मटर की खेती के लिए सबसे अच्छा समय क्या है? 

    उत्तर: मटर की खेती के लिए आदर्श समय अक्टूबर के अंत से नवंबर की शुरुआत तक है, जो खरीफ सीजन के ठीक बाद है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि फसल ठंडी सर्दियों के महीनों में उगती है, जो मटर की खेती के लिए एकदम सही है।

    प्रश्न 2: मटर की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी उपयुक्त है? 
    उत्तर: मटर 6 से 7 पीएच वाली मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगती है। हल्की दोमट मिट्टी आदर्श है क्योंकि यह अच्छी जल निकासी की अनुमति देती है, जिससे जलभराव नहीं होता जो फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। पथरीली मिट्टी से बचें और सुनिश्चित करें कि बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई की गई हो।

    प्रश्न 3: मटर की खेती सबसे ज़्यादा किन राज्यों में होती है?
    उत्तर: मटर की खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में व्यापक रूप से की जाती है, जहाँ जलवायु और मिट्टी की स्थिति मटर की खेती के लिए बेहद अनुकूल है।

    प्रश्न 4: मटर की फसल के लिए कितना पानी चाहिए?
    उत्तर: मटर को बहुत ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती। हर 10 से 15 दिन में फसल की सिंचाई करने की सलाह दी जाती है। ज़्यादा पानी देने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे जड़ सड़ सकती है। मिट्टी में उचित जल निकासी स्वस्थ पौधों को बनाए रखने में मदद करती है।

    अगर आप चाहते हैं की आप कृषि से जुडी और बातें जानना चाहते तो वेबसाइट पर जरूर जाए Aapkikheti.com
    https://aapkikheti.com/sweet-potato-farming/ इसको जरूर पढ़े

  • Petrol Pump License: अगर आप Petrol Pump खोलना चाहते हैं तो जानिए कितनी लागत आती है और कैसे मिलेगा लाइसेंस.

    Petrol Pump License: अगर आप Petrol Pump खोलना चाहते हैं तो जानिए कितनी लागत आती है और कैसे मिलेगा लाइसेंस.

    Petrol Pump License: अगर आप Petrol Pump खोलना चाहते हैं तो जानिए कितनी लागत आती है और कैसे मिलेगा लाइसेंस?

    Petrol Pump License Policy: डीजल गैसोलीन की बढ़ती मांग के साथ यह व्यवसाय पैसा कमाने का एक अवसर बन गया है। यदि आप इस साइट पर गैस पंप खोलना चाहते हैं तो यह संदेश आपके लिए है। कृपया बताएं कि Petrol Pump खोलने के लिए  क्या करना होगा।

    सड़क पर ट्रैफिक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही पेट्रोल-डीजल की खपत भी बढ़ती जा रही है। हालाँकि बाज़ार में इलेक्ट्रिक और बायोफ़्यूल वाहन भी उपलब्ध हैं लेकिन इनका उपयोग ज़्यादा नहीं किया जाता है। इसके अलावा वे वाहन जिन्हें मैं ट्रिगर रेसिंग और टैंक रेसिंग की सीमा पर रख रहा हूं। यही कारण है कि शहरों और ग्रामीण इलाकों में नए गैस स्टेशन खुल रहे हैं। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती मांग को देखते हुए आने वाले कई सालों तक यह सिलसिला जारी रहने की संभावना है। इसलिए पेट्रोल पंप शुरू करने के लिए एक अच्छा बिजनेस विकल्प है और इससे अच्छी कमाई की जा सकती है।

    Petrol Pump Kaise khole ?

    अगर आप भी ऐसी ही स्थिति में हैं और पेट्रोल पंप शुरू करना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए है। कृपया मुझे बताएं कि पेट्रोल पंप खोलने के लिए मुझे क्या करना होगा और परमिट कैसे प्राप्त करना होगा।

    Petrol Pump License

    किन किन कंपनियों से मिलेगा Petrol Pump License ?

    पेट्रोल पंप खोलने के लिए लाइसेंस सरकारी और निजी तेल कंपनियां जैसे बीपीसीएल एचपीसीएल आईओसीएल रिलायंस एस्सार ऑयल जारी करती हैं। पेट्रोल पंप खोलने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और अधिकतम 60 वर्ष है। सामान्य श्रेणी के आवेदकों को 12वीं पास होना चाहिए जबकि एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणी के आवेदकों को कम से कम 10वीं पास होना चाहिए। अब पेट्रोल पंपों पर सिर्फ सीएनजी. इतना ही नहीं पेट्रोल पंप और इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन भी लगाए जा सकते हैं। इससे आपको दोगुना मुनाफा मिल सकता है.

    Anjeer ke Faayde

    कितनी जगह लगेगी ?

    गैस पंप खोलने के लिए आपको जमीन की जरूरत है. यदि आपके पास अपनी जमीन नहीं है तो आप जमीन किराये पर लेकर गैस स्टेशन खोल सकते हैं। इसके लिए भूमि पट्टा समझौता करना आवश्यक है। राष्ट्रीय या राष्ट्रीय राजमार्ग पर गैस स्टेशन खोलने के लिए 1200 से 1600 वर्ग मीटर भूमि की आवश्यकता होती है।

    Petrol Pump License

    कितना खर्च आएगा ?

    अगर आप ग्रामीण इलाके में पेट्रोल पंप खोलना चाहते हैं तो आपको 15 लाख से 20 लाख तक का निवेश करना होगा। ऐसे में कंपनी की ओर से आपको इस रकम का पांच फीसदी हिस्सा वापस कर दिया जाएगा. कहा गया कि शहरी इलाकों में पेट्रोल पंप खोलने के लिए 30 से 35 लाख रुपये खर्च करने होंगे. अगर आप गैस स्टेशन खोलना चाहते हैं तो आपके पास मुख्य सड़क के किनारे जमीन होनी चाहिए। इसलिए बिजली पहुंचाना आसान है. इस बिजनेस के जरिए आप भारी मुनाफा कमा सकते हैं.

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  • Anjeer Ke faayde :  जाने अंजीर को खाने से होने वाले फायदे के बारे में

    Anjeer Ke faayde : जाने अंजीर को खाने से होने वाले फायदे के बारे में

    Anjeer Ke faayde : जाने अंजीर को खाने से होने वाले फायदे के बारे में

    अंजीर के फायदे जानकार आप भी अंजीर शुरू कर देंगे तो अभी पढ़े Anjeer ke faayde ब्लॉग को जो आपको बताएगा की इसको खाने के क्या क्या फायदे हैं |

    1. पोषक तत्वों से भरपूर

    अंजीर फाइबर, विटामिन (जैसे विटामिन A, B1 और B2) और कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम और आयरन जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत हैं। ये आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं और सेहतमंद बनाए रखते हैं।

    2. पाचन में मदत करता हैं

    फाइबर से भरपूर अंजीर पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। यह गैस जैसी समस्या को दूर करने और पाचन तंत्र को स्वस्थ करने में मदत करता हैं |

    Aapkikheti

    3. दिल के लिए फायदेमंद

    अंजीर में मौजूद पेक्टिन खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम करने में मदद करता है। साथ ही, इसमें मौजूद पोटैशियम रक्तचाप को नियंत्रित करता है, जिससे हृदय रोगों का खतरा कम होता है।

    4. वजन में फायदेमंद

    अंजीर कम कैलोरी वाला और पेट भरने वाला नाश्ता है। यह भूख को शांत करता है और आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, जिससे वजन नियंत्रित रहता है।

    Money Plant Tips

    5. हड्डियों को मजबूत बनाता

    अंजीर कैल्शियम और फॉस्फोरस का अच्छा स्रोत है, जो हड्डियों को मजबूत बनाए रखते हैं और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों से बचाव करते हैं।

    6. रोग से बचता हैं

    अंजीर में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बीमारियां दूर रहती हैं।

    7. डायबिटीज में लाभकारी

    अंजीर में प्राकृतिक शर्करा और निम्न ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।

    8. त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद

    अंजीर में मौजूद विटामिन त्वचा को पोषण देते हैं और बालों को मजबूत बनाते हैं, जिससे त्वचा दमकती है और बाल घने व मजबूत बनते हैं।

    ताजे अंजीर, सूखे अंजीर या अंजीर से बने व्यंजनों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और इन अद्भुत फायदों का आनंद लें

  • Adrak ki Kheti : कीजिये चाय के साथी की खेती इस ब्लॉग की मदद से

    Adrak ki Kheti : कीजिये चाय के साथी की खेती इस ब्लॉग की मदद से

    Adrak ki Kheti : कीजिये चाय के साथी की खेती इस ब्लॉग की मदद से

    Adrak ki Kheti

    Adrak ki Kheti एक लाभदायक व्यवसाय बन चूका है क्योकि अदरक का उपयोग देश और विदेश दोनों जगह होता है
    अदरक अपनी ताजगी, स्वाद और औषधि गुणों के लिए जाना जाता है। इसकी खेती करना काफी आसान है अगर सही तरीके से की जाये तो । अगर आप भी अपने खेत में अदरक की खेती करना चाहते हैं तो पढ़िए पूरा लेख

    Adrak Ki Kheti Kaise Kare

    सबसे पहले आपको अदरक का चुनाव करना होगा। बीज अदरक को छोटे टुकड़ों में काट कर लगाया जाता है। हर टुकड़े में कम से कम एक या दो आंखें होनी चाहिए जिसमें से नए पौधे निकल सकते हैं। टुकड़ों को लगाने से पहले उन्हें एक दिन तक धूप में सुखाया जाता है ताकि उनमें से अतिरिक्त नमी निकल जाए। उसके बाद टुकड़ोंको 5-7 सेमी गहराई में लगया जाता है।

    अदरक की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

    अदरक की खेती के लिए भारी और उपजाऊ मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। इसके लिए रेतीली दोमट मिट्टी को उपयुक्त समझा जाता है। इसके साथ ही, मिट्टी का pH स्तर 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए।। अदरक की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो, साथ ही पर्याप्त बारिश भी होनी चाहिए।

    अदरक की उन्नत किस्मे

    अदरक की कई उन्नत किस्में हैं कुछ प्रमुख उन्नत किस्मत हैं:
    नादिया
    मारन
    हिमाचल प्रदेश स्थानीय
    रियो-डी-जनेरियो
    वरदा
    ये किसमें उत्कृष्ट गुण और उपज देती हैं, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफ़ा होता है।

    अदरक की खेती किस मौसम में करें

    Adrak ki Kheti

    अदरक की खेती गर्मी के महीनों में होता है। इसका बीज लवन का पौधा अप्रैल से जून के बीच लगाया जाता है। मानसून के पहले या मानसून के दौरान बीज लवन करना काफी लाभदायक होता है, क्योंकि इस समय धरती में नरमी होती है और अधिक पानी उपलब्ध होता है।

    अदरक की खेती में खरपतवार नियंत्रण

    खरपतवार नियंत्रण एक बड़ी समस्या हो सकती है। इसलिए साफ-सफाई और समय पर निराई-गुड़ाई जरूरी होती है। हाथ से निराई करना या गीली घास का इस्तेमाल करना अच्छे तरीके हैं। मल्चिंग से सिर्फ खरपतवार नियंत्रित होती है बल्की मिट्टी की नमी भी बनी रहती है, जो अदरक के लिए फ़ाइदेमंद होता है।

    अदरक की खेती में खाद का प्रयोग

    Adrak ki Kheti के लिए अच्छी मात्रा में जैविक या रसायनिक खाद का उपयोग करना जरूरी है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट का इस्तमाल मिट्टी की उपज शक्ति को बढ़ाती है। इसके अलावा 75-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए, जो अदरक की खेती के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों को प्रदान करता है।

    सिंचाई

    अदरक को विकास के लिए नियमित सिंचाई की जरूरत होती है। सुरुआती दिनों में सिंचाई कैसे करें ये काफी मायने रखता है। बीज लावण के 1 हफ्ते के बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए और उसके बाद हर 7-10 दिन में सिंचाई जरूरी होती है। मानसून के दौरान पानी की जरुरत कम होती है क्योंकि प्राकृतिक बारिश उपलब्ध होती है।

    पोधे की देखभाल

    अदरक के पोधो को सुरुआती दिनों में अच्छी देखभाल की जरुरत होती है। समय समय पर खरपतवार साफ करना, पोधों की कटिंग करना और मिट्टी की जांच करना काफी जरूरी होता है। पोधों के आस-पास गीली घास डालने से ये पौधे कीड़े और बीमारियाँ से बचे रहते हैं, और पोधा स्वस्थ रहता है।

    फसल की कटाई

    अदरक के पोधे जब पूरे विकसित हो जाते हैं तो उनका रंग पीला पड़ने लगता है। ये समय अदरक की कटाई का होता है। फसल को बीज लावन के 7-9 महीने बाद काटा जाता है। अदरक को जमीन से निकालने के बाद सफाई करके बाजार में बेचा जा सकता है।

    Ginger Farming in India

    भारत दुनिया का सबसे बड़ा उअदरक उत्पादक है। भारत के प्रमुख राज्य जहां अदरक की खेती की जाती है उनमें केरल, कर्नाटक, असम, उड़ीसा और सिक्किम शामिल हैं। देश के कई राज्यों में जैविक और पारंपरिक डोनन तरीके से अदरक की खेती होती है। भारतीय अदरक अपने गुणों और स्वाद के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।

    पढ़िए यह ब्लॉग Jasmin Ki Kheti