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  • Makar sakranti kab hai: मकर सक्रांति कब मनाई जाएगी

    Makar sakranti kab hai: मकर सक्रांति कब मनाई जाएगी

    Makar sakranti kab hai: मकर सक्रांति कब मनाई जाएगी जानिये शुभ मुहूर्त और लाभ

    Makar sakranti kab hai:सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद मनाई जाने वाली मकर संक्रांति पूजा इस बार 14 जनवरी की बजाय 15 जनवरी को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र का मानना ​​है कि जब सूर्य देव तारों के एक समूह से दूसरे समूह में भ्रमण करते हैं तो इसे संक्रांति कहा जाता है। जब सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति अन्य 12 संक्रांतियों की तुलना में वास्तव में विशेष और महत्वपूर्ण है।

    मकर सक्रांति पर क्या करे ?

    Makar sakranti kab hai

    विहुपुर के पंडित शंकर मिश्र ने बताया कि मिथिला पंचान के अनुसार 15 तारीख को मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त होने के कारण लोग पूजा के दौरान पूरी पूजा करते हैं और तिल-गुड़ चढ़ाते हैं. घर पर उनके घरेलू देवता। तिल और गुड़ को परिवार के सदस्यों के साथ बाँटकर भोग लगाया जाता है।

    पंडित मुईरंजय मिश्र ने कहा कि मकर संक्रांति की पूजा का पुराना तरीका नहीं बदलेगा. गंगा नदी में स्नान करना और दान देना भी बहुत लाभकारी पुण्य बताया गया है। इस बीच मकर संक्रांति पर गंगापाल/नवगछिया क्षेत्र सहित भागलपुर-अंग प्रदेश के लोग दिन में परिवार और करीबी दोस्तों के साथ चुड़कड़ बेलम तिलकुट आदि खाते हैं।

    Makar sakranti का महत्व क्या है ?

    धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन मां गंगा धरती पर आती हैं। इसी प्रकार सूर्य देव भी इस समय से उत्तरायण होते हैं।

    शुभ मुहूर्त क्या है ?

    मकर संक्रांति का पुण्य काल 07:15 से 06:21 तक है

    और मकर संक्रांति का पुण्य सायं 07:15 से 9:06 तक है.

    Makar sakranti kab hai

    Makar sankranti लीप वर्ष 2024 में 15 जनवरी को रवि योग में मनाया जाएगा।

    इस बार मकर संक्रांति का त्योहार लीप वर्ष 2024 में 15 जनवरी को रवि योग में मनाया जाएगा। यह वर्ष 365 दिनों की बजाय 366 दिनों का होगा। फरवरी में 28 दिन होते हैं लेकिन लीप वर्ष में फरवरी में 29 दिन होते हैं। इस महीने हुए सात हमलों में से छह हमले एक सप्ताह में चार-चार बार हुए। अकेले गुरुवार को ऐसा पांच बार हुआ. मकर संक्रांति का त्योहार हर साल के पहले महीने 14 जनवरी को मनाया जाता है।

  • e-NAM PORTAL: बिना मंडी जाए भी आप बेच सकते हैं अपनी फसल

    e-NAM PORTAL: बिना मंडी जाए भी आप बेच सकते हैं अपनी फसल

    eNAM PORTAL : बिना मंडी जाए भी आप बेच सकते हैं अपनी फसल जानिए कैसे

    e-NAM PORTALयदि आप भी एक किसान है और बेचना चाहते हैं घर बैठे अपनी फसल तो आप उठा सकते हैं ये योजना का लाभ

    किसानों के लिए यह असामान्य बात नहीं है कि वे अच्छी फसल तो पैदा करते हैं लेकिन मुनाफा नहीं कमाते। इसका मुख्य कारण किसानों की फसल का समय पर बाजार में नहीं पहुंचना या बिचौलियों को सही कीमत नहीं मिलना है. किसानों की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बड़े प्रयास किये हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने किसानों की बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए e-NAM पोर्टल शुरू किया है. इस पोर्टल तक पहुंच के साथ किसान घर बैठे आसानी से किसी भी ऑनलाइन बाजार में अपनी फसल बेच सकते हैं।

    ई-नाम पोर्टल का एक बड़ा लाभ यह है कि यह किसानों की स्थानीय उपज बाजार तक पहुंच बढ़ाता है और बाजार खरीदारों और सेवा प्रदाताओं तक आसान डिजिटल पहुंच प्रदान करता है। इतना ही नहीं बल्कि सब कुछ एक मंच पर उपलब्ध है जिससे किसानों के लिए अपनी उपज बेचना आसान हो जाता है। इसके अलावा किसानों को भारी नुकसान से बचाया जाता है क्योंकि उनकी उपज सूची मूल्य से नीचे नहीं बेची जाती है।

    e-NAM PORTAL

    ये सुविधाएं उपलब्ध हैं

    यह समझा जाता है कि पोर्टल के पास वाणिज्यिक ग्रेड निरीक्षण गोदाम वित्तीय प्रौद्योगिकी बाजार सूचना परिवहन और अन्य सुविधाएं प्रदान करने वाले 41 सेवा प्रदाताओं तक पहुंच है। ये सेवा प्रदाता किसानों को एक नेटवर्क प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से वे अपनी फसल बेच सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

    इसके अलावा किसान e-NAM ऐप के जरिए भी अपनी उपज बेच सकते हैं. ऐसा करने के लिए Google Play Store से e-NAM ऐप डाउनलोड करें। यहां किसानों को व्यापक सेवा प्रदाता लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदाता गुणवत्ता आश्वासन सेवा प्रदाता सफाई गुणवत्ता छंटाई और पैकेजिंग सेवा प्रदाता भंडारण सुविधा सेवा प्रदाता कृषि इनपुट सेवा प्रदाता तकनीकी वित्त और बीमा सेवा प्रदाता जैसी विभिन्न सेवाएं मिलती हैं।

    और योजना के बारे में पढ़े https://aapkikheti.com/government-schemes/pm-kisan/

    अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचें।

    • कृषि उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिए सबसे पहले आधिकारिक वेबसाइट enam.gov.in पर जाएं वेबसाइट पर रजिस्टर पर क्लिक करें।
    • अपना ईमेल पता दर्ज करें और आपको अपना ईमेल पता भरने के लिए एक अस्थायी लॉगिन आईडी मिलेगी।
    • e-NAM वेबसाइट पर रजिस्टर करने के लिए आपको लॉग इन करना होगा।
    • केवाईसी विवरण और अन्य आवश्यक दस्तावेज अपलोड करें और जमा करें। कृषि उपज का व्यापार कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) की मंजूरी से शुरू होता है।

     

  • makke ki kheti कैसे करे?

    makke ki kheti कैसे करे?

     makke ki kheti कैसे करे?

    जानिए makke ki kheti कैसे करे?

    makke ki kheti kese kare

    भूमि में जस्ते की कमी होने पर बारिश के मौसम से पहले 25 किलो जिंक सल्फेट की मात्रा को खेत में डाल देना चाहिए। खाद और उवर्रक को चुनी गई उन्नत किस्मों के आधार पर देना चाहिए इसके बाद बीजो की रोपाई के समय नाइट्रोजन की 13 मात्रा को देना चाहिए, और इसके दूसरे भाग को बीज रोपाई के एक माह बाद दे, और अंतिम भाग को पौधों में फूलो के लगने के दौरान देना चाहिए।

    बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Sowing Seeds Right time and Method):

    makke ki kheti में बीजो को लगाने से पहले उन्हें अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे बीजो की वृद्धि के दौरान उनमे रोग न लगे द्य इसके लिए सबसे पहले बीजो को थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम की मात्रा को प्रति 1 किलो बीज को उपचारित कर ले द्य इस उपचार से बीजो को को फफूंद फफूंद से बचाया जाता है द्य इसके बाद बीजो को मिट्टी में रहने वाले कीड़ो से बचाने के लिए प्रति किलो की दर से थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम की मात्रा से उपचारित कर लेना। चाहिए।

    मक्के के बीजो की रोपाई सीड ड्रिल विधि द्वारा भी बो सकते है द्य इसके बीजो को बोने के लिए खेत में 75 ब्ड की दूरी रखते हुए, कतारों को तैयार कर लेना चाहिए, तथा प्रत्येक बीज के बीच में 22 ब्ड की दूरी अवश्य रखे। एक एकड़ के खेत में लगभग 21,000 मक्के के पौधों को लगाया जा सकता है। मक्के के बीजो की रोपाई को वर्ष में अलग-अलग ऋतुओं में की जा सकती है द्य यदि आप चाहे तो इसके बीजो को मार्च के अंत तक बो सकते है,। या फिर अक्टूबर से नवंबर तक या फिर जनवरी और फरवरी के मध्य भी इतके बीजो की बुवाई को किया जा सकता है।

    मक्के के पौधों की सिंचाई (Maize Plante rigation) :

    मक्के की फसल को पूर्ण रूप से तैयार होने तक 400-600 मिमी पानी की जरूरी होती है द्य इसकी पहली सिंचाई को बीजो की रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए द्य इसके बाद जब पौधों में दाने भरने लगे तब इसे सिंचाई की। आवश्यकता होती है द्य मक्के की फसल की सिंचाई बीजो के रोपाई के समय के अनुसार की जाती है द्य इसके अतिरिक्त मक्के की फसल को खरपतवार से भी बचाना पड़ता है द्य खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई दृ गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है द्य makke ki kheti में जब खरपतवार दिखाई दे तो । प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण कर लेना चाहिए, तथा 20 से 25 दिन के अंतराल में खरपतवार दिखने पर उसे निकल देना। चाहिए।

    अतिरिक्त कमाई (Extra Earnings) :

    मक्के की फसल के दौरान आप makke ki kheti में अन्य फसलों को ऊगा कर अतिरिक्त कमाई भी कर सकते हैद्य इसमें आप मूंग, तिल, सोयाबीन, बोरो या बरबटी, उरद, सेम जैसी फसलों को ऊगा सकते हैद्य जिससे किसानो को आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना। पड़ेगा।

    मक्के के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम(Maize plant Diseases and their Prevention) :

    तना। मक्खी रोग इस तरह के रोग का प्रकोप फसल में बसंत के मौसम में देखने को मिलता है द्य तना मक्खी रोग पौधों पर हमला कर उनके तनो को खोखला कर देता है, जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है इस रोग की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल की 2 से 3 मिलीलीटर की मात्रा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से डाल कर छिड़काव करे ।

    तना भेदक सुंडी रोग इस तरह का रोग तने में छेद कर उसे अंदर सेखाकर उसे सूखा देता है द्य जिससे तना सूख कर नष्ट हो जाता है। क्वीनालफॉस 30 या क्लोरेन्ट्रानीलीप्रोल का उचित मात्रा में छिड़काव कर इसरोग की रोकथाम की जा सकती है।भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग इस किस्म का रोग पौधों को अधिक हानि पहुँचता है।

    इस रोग के लग जाने से पौधों की पत्तियो पर हल्की हरी या पीली चौड़ी धारिया दिखाई देने लगती है द्य रोग के अधिक बढ़ जाने पर यह धारिया लाल रंग की हो जाती है, तथा सुबह के समय पत्तियो पर राख के रूप में फफूंद नजर आती है। मेटालेक्सिल या मेंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

    पत्ती झुलसा कीट रोग :

    यह कीट रोग पत्तियों के निचले हिस्से से शुरू होकर कची धूल और आक्रमण करता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पत्तियों की निचली सतह पर लम्बे, भूरे, अण्डाकार धब्बे नजर आते है। मेन्कोजेब या प्रोबिनब की उचित मात्रा का घोल बना कर पौधों पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है। इसके अतिरिक्त भी मक्के के पौधों में कई रोग देखने को मिल जाते हैं, जैसे:- जीवाणु तना सड़न, रतुआ, सफेद लट, सैनिक सुंडी, कटुआ, पत्ती लपेटक सुंडी आदि।

    पौध अंगमारी रोग से बचाव (Plant Blight Disease Prevention) :

    इस रोग के हो जाने पर कपास के टिंडो के पास वाले पत्ते लाल कलर के हो जाते हैं, खेत में नमी होने पर भी पौधा मुरझाने लगता है। इस रोग के लग जाने पर पौधा कुछ दिन बाद ही नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।

    अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से बचाव (Preventing Alternaria Leaf Spot Disease) :

    यह बीज जनित रोग होता है, जिसके लग जाने पर पहले पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है द्य फिर काले भूरे रंग का गोलाकार बन जाता है, यह रोग पत्तियों को जल्द ही गिरा देता है। इसका असर पैदावार को सिमित कर देता है, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा से इस पर छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

    जड़ गलन रोग से बचाव (Root Rot Disease Prevention):

    जड़ गलन यह समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से देखने को मिलती है, इससे बचाव के लिए एक ही तरीका है कि खेत में जल का भराव न रहने दें। इस तरह की समस्या अधिकतर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है। इस रोग में पौधा शुरुआत से ही मुरझाने लगता है, इससे बचाव के लिए खेत में बीज को लगाने से पहले कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यूपी 0-3% या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0-2% से उपचारित कर लेना चाहिए द्य कपास की फसल के साथ • मोठ की बुवाई करने से भी इसका बचाव किया जा सकता है।

  • niraayi gudayi किसे कहते है

    niraayi gudayi किसे कहते है

    niraayi gudayi किसे कहते है

    niraayi gudayi kise kahate hain:-  भारत को एक कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है, और यहाँ की अधिकांश जनसँख्या खेती और इससे सम्बधित उद्योगों पर आश्रित हैद्य भारत में प्रतिवर्ष विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता हैद्य कभी-कभी वातावरण अनुकूल न होनें तथा अन्य कारणों से फसलों के उत्पादन में भारी कमीं हो जाती है द्य हालाँकि किसान अपनी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करते है, जिसमें से निराई गुड़ाई भी शामिल है। किसी भी फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ानें के लिए फसल को बोनें के उपरांत निराई- गुड़ाई करना अत्यंत आवश्यक होता है। निराई-गुड़ाई किसे कहते हैं, निराई दृ गुड़ाई कैसे करते हैं।

    निराई गुड़ाई 

    niraayi gudayiअक्सर हम देखते है, कि खाली पड़ी हुई भूमि या खेतों घास-फूस के आलावा विभिन्न प्रकार के पौधे अपने आप ही उग आते है द्य ठीक उसी प्रकार जब किसानों द्वारा फसल उत्पादन के लिए बुवाई की जाती है, तो उस फसल के पौधों के साथ ही विभिन्न प्रजातियों के जैसे- दूबघास, पत्थरचटा, कनकवा, मकोय, हजारदाना, जंगली चौलाई, जंगली जूट, कालादाना, सफेद मुर्ग, गोखरू, अगेव आदि उग आते है, जिन्हें हम आम भाषा में खरपतवार कहते है इस प्रकार के खरपतवारों के पनपने से फसल की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता में कमी आ जाती है। किसानों द्वारा इस प्रकार के खरपतवारों को खेतों से हटाना या नष्ट करना ही निराई दृ गुड़ाई कहलाता है द्य दरअसल खेतों में स्वतः उगनें पर यदि इन्हें समय रहते नहीं हटाया जाता है, तो यह फसल की पैदावार में भारी कमीं हो जाती है

    निराई-गुड़ाई कैसे करते है :

    niraayi gudayi अर्थात खरपतवार को खेतों से हटाना या उन्हें नष्ट करना कृषि में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव फसलों के उत्पादन पर पड़ता है द्य दरअसल यह ऐसे पौधे या घास-फूस होते हैं, जो किसी भी फसल के साथ अनचाहे रूप से उग आते हैं और फसल को नष्ट कर देते हैं  खेतों में इस प्रकार की अनचाही घास-फूस या पौधों को हटानें के लिए किसानों को बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है द्य हालाँकि किसान अपनें खेतों में निराई गुड़ाई का कार्य 3 प्रकार से करते है, जो इस प्रकार है- खुरपे, कुदाल और अन्य कृषि यंत्रों की सहायता से विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग कर मशीन द्वारा खरपतवार को हटाना एक निश्चित समय के दौरान खुरपे और अन्य कृषि यंत्रों की सहायता से उन्हें हटाते है द्य हालाँकि इस कार्य के लिए किसानों को बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है

    वर्तमान समय में घास-फूस या खरपतवार को नष्ट करनें के लिए किसानों द्वारा कई विधियाँ प्रयोग की जाती है द्य कई किसान इसके लिए विभिन्न प्रकार के रासायनों का प्रयोग करते है और कई किसान खरपतवार को हटानें के लिए मशीनों का उपयोग करते है एक सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के अनुसार ज्यादातर किसान खेतों में निराई गुड़ाई करनें की अपेक्षा रासायनों का प्रयोग सबसे अधिक करते है, क्योंकि इसमें किसानों का कार्य सरलता से बहुत ही कम समय में हो जाता हैद्य हालाँकि खेतों में रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल फसल और भूमि दोनों के लिए हानिकारक है।

    आज के तकनीकी दौर में लगभग सभी क्षेत्रों में कार्य करनें के लिए मशीनों को उपयोग में लाया जाता हैद्य इसी प्रकार कृषि के क्षेत्र में भी खेतों की जुताई से लेकर फसलों के बोनें तक मशीनों का प्रयोग किया जाता हैद्य निराई गुड़ाई के लिए भी आज बाजार में विभिन्न प्रकार की मशीनें उपलब्ध है, जिसका उपयोग किसानों द्वारा किया जा रहा हैद्य आपको बता दें, कि रसायनों के अपेक्षा मशीनों से निराई दृ गुड़ाई करना अधिक बेहतर माना जाता है।

  • Pradhanmantri किसान सम्मान निधि योजना

    Pradhanmantri किसान सम्मान निधि योजना

    Pradhanmantri किसान सम्मान निधि योजना

    Pradhanmantri किसान सम्मान निधि योजना:- पीएम-किसान योजना, भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य छोटे और सीमांत किसानों को न्यूनतम आय प्राप्त करने में मदद करने के लिए पैसा देना है। इन किसानों को रु. तक मिलेंगे. जो हर साल 6000 रुपये के तीन हिस्सों में दिया जाएगा. हर चार महीने में 2000 रु.

    पीएम किसान योजना का प्राथमिक उद्देश्य पूरे भारत में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। भारत की अर्थव्यवस्था को चलाने में कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, किसानों का समाज में प्रमुख स्थान है। फिर भी, देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच प्रचलित सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के परिणामस्वरूप कृषक समुदायों को वित्तीय कल्याण प्राप्त करने में लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लंबे समय से चले आ रहे इस मुद्दे ने आजादी के बाद से ही भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया है। इस सामाजिक और आर्थिक मुद्दे से निपटने के लिए, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के उद्देश्य से कई पहलों को लागू करने का लगातार प्रयास किया है।

    इन उल्लेखनीय प्रयासों में से एक पीएम किसान सम्मान निधि योजना है, जिसे भारत सरकार द्वारा 2018 में इन समुदायों को सहायता और समर्थन प्रदान करने के इरादे से शुरू किया गया था। 9 अगस्त 2020 को, भारत सरकार ने इस योजना के हिस्से के रूप में छठी किस्त का वितरण किया, जिससे इसकी पहुंच देश भर के लगभग 8.5 करोड़ किसानों तक हो गई। एक स्पष्ट दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, यह पहल भारत में अनुमानित 125 मिलियन किसानों के लिए सकारात्मक परिणाम लाने के लिए डिज़ाइन की गई है, जिसमें उन लोगों का समर्थन करने पर विशेष ध्यान दिया गया है जो हाशिए पर हैं या छोटे पैमाने पर कृषि गतिविधियों में लगे हुए हैं।

    आय सहायता से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों या परिवारों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता से है जो बेरोजगारी, विकलांगता या कम आय जैसी विभिन्न परिस्थितियों के कारण पर्याप्त रूप से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। सहायता का यह रूप आम तौर पर सरकार या अन्य कल्याणकारी संगठनों द्वारा व्यक्तियों को उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और एक सभ्य जीवन स्तर बनाए रखने में मदद करने के लिए प्रदान किया जाता है।

    आय सहायता का उद्देश्य वित्तीय कठिनाई को कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्तियों और परिवारों को भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुंच प्राप्त हो। इसे किसी व्यक्ति की आय और उनके आवश्यक खर्चों के बीच के अंतर को पाटने, चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उन्हें सुरक्षा जाल प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आय सहायता कार्यक्रम अलग-अलग देशों और न्यायक्षेत्रों में अलग-अलग होते हैं, पात्रता मानदंड और लाभ राशियाँ अक्सर घरेलू आकार, आय स्तर और विशिष्ट आवश्यकताओं जैसे कारकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं। इन कार्यक्रमों का लक्ष्य सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करके असमानता को कम करना है कि हर किसी को अपनी आर्थिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना आगे बढ़ने का उचित मौका मिले। वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा, आय सहायता कार्यक्रम अतिरिक्त सेवाएँ और संसाधन भी प्रदान कर सकते हैं, जैसे नौकरी प्रशिक्षण, परामर्श और रोजगार खोजने में सहायता।

    जरूरतमंद व्यक्तियों और परिवारों की सहायता के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की पेशकश करके, आय सहायता समुदायों के भीतर सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कार्यक्रम का केंद्रीय पहलू किसानों को समर्थन देने के लिए बुनियादी आय के प्रावधान के इर्द-गिर्द घूमता है। पूरे देश में प्रत्येक योग्य किसान परिवार 6000 रुपये की वार्षिक राशि प्राप्त करने का पात्र है। बहरहाल, यह राशि एकमुश्त भुगतान में वितरित नहीं की जाती है। इसके बजाय, भुगतान को तीन बराबर भागों में विभाजित किया जाता है और चार महीने के अंतराल पर वितरित किया जाता है। नतीजतन, प्रत्येक किसान को हर चार महीने में 2000 रुपये की राशि मिलती है। इस वित्तीय सहायता का उपयोग लाभार्थियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के दिशानिर्देश इन निधियों के उपयोग पर किसी भी सीमा को स्पष्ट रूप से रेखांकित नहीं करते हैं।

    अनुदान को संज्ञा या क्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, यह उस संदर्भ पर निर्भर करता है जिसमें इसका उपयोग किया जाता है। संज्ञा के रूप में, अनुदान का तात्पर्य धन या अन्य संसाधनों की राशि से है जो किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए किसी व्यक्ति या वस्तु को दिया जाता है। यह किसी छात्र को उनकी शिक्षा में सहायता के लिए दिया जाने वाला वित्तीय अनुदान हो सकता है, या किसी वैज्ञानिक को उनकी पढ़ाई में सहायता के लिए दिया गया शोध अनुदान हो सकता है। एक क्रिया के रूप में, अनुदान का अर्थ है किसी को कुछ देना या प्रदान करना। यह किसी को कुछ करने की अनुमति देना हो सकता है, जैसे किसी ऐसे व्यक्ति को ड्राइवर का लाइसेंस देना जिसने अपना ड्राइविंग परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया हो।

    अनुदान का अर्थ किसी चीज़ को सत्य मानना ​​या स्वीकार करना भी हो सकता है, जैसे कि यह मान लेना कि कोई निश्चित सिद्धांत सटीक है। कुल मिलाकर, अनुदान एक बहुमुखी शब्द है जिसका उस संदर्भ के आधार पर अलग-अलग अर्थ होता है जिसमें इसका उपयोग किया जाता है। पीएमकेएसएनवाई योजना एक किसान सहायता कार्यक्रम है जो भारत सरकार द्वारा प्रायोजित है, जिसका अर्थ है कि इसकी सारी फंडिंग सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। अपनी प्रारंभिक घोषणा में, इसने इस पहल के कार्यान्वयन के लिए विशेष रूप से 75000 करोड़ रुपये का वार्षिक बजट आवंटित करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की। 9 अगस्त 2020 को, योजना के लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से 17,000 करोड़ रुपये की बड़ी राशि वितरित की गई, क्योंकि धनराशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा की गई थी।

    Pradhanmantri किसान सम्मान निधि योजना

    फंडिंग की जिम्मेदारी भारत सरकार की है, हालांकि लाभार्थियों की पहचान करने का काम उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। बल्कि यह जिम्मेदारी उठाना राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों का कर्तव्य है। ये सरकारें यह निर्धारित करेंगी कि कौन से कृषक परिवार इस पहल से लाभ प्राप्त करने के पात्र होंगे। यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि, प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना के विनिर्देशों के अनुसार, एक किसान परिवार में पति, पत्नी और कोई भी कम उम्र की संतान शामिल होगी।

    प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए पात्रता मानदंड इस सरकारी कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक इसकी पात्रता मानदंड है। इन मानदंडों को पूरा करने वाले किसान परिवार इस कार्यक्रम से लाभ उठा सकते हैं: छोटे और सीमांत किसान जिनके पास कृषि भूमि है, वे प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएमकेएसएनवाई) का लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं। अर्हता प्राप्त करने के लिए, लाभार्थी को भारत का नागरिक होना चाहिए। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के किसान आवेदन कर सकते हैं और कार्यक्रम में नामांकित हो सकते हैं हालाँकि, यह उल्लेखनीय है कि

    पीएमकेएसएनवाई के दिशानिर्देशों में कुछ मानदंड हैं जो विशिष्ट श्रेणियों के व्यक्तियों को लाभार्थी सूची में शामिल होने से बाहर करते हैं। PMKSNY से किसे बाहर रखा गया है? प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत सभी किसान वित्तीय सहायता का लाभ नहीं उठा सकते हैं। लोगों के ये समूह नीचे सूचीबद्ध हैं – यह पहल भूमि स्वामित्व वाली किसी भी संस्था या संगठन को भाग लेने की अनुमति नहीं देती है। जिन किसान परिवारों के एक या अधिक सदस्य निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं, उन्हें भी पात्रता से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

  • krishi yantra खरीदने के लिए दिशानिर्देश

    krishi yantra खरीदने के लिए दिशानिर्देश

     krishi yantra खरीदने के लिए दिशानिर्देश

    कृषि यांत्रिकीकरण योजना के तहत किसानों स्वयं सहायता समूह और कृषक उत्पादक संगठनों को अनुदान पर krishi yantra उपलब्ध कराने को लेकर कृषि विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए। 10 हजार लेकर एक लाख रुपये तक के कृषि यंत्रों के लिए जमानत राशि 2500 रुपये होगी जबकि इससे अधिक के कृषि यंत्र कस्टम हेयरिंग सेंटर या फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना के लिए जमानत राशि पांच हजार रुपये होगी।

    कृषि यांत्रिकीकरण योजना के तहत किसानों, स्वयं सहायता समूह और कृषक उत्पादक संगठनों को अनुदान पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराने को लेकर कृषि विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन योजना और प्रमोशन ऑफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन फार इन-सीटू मैनेजमेंट ऑफ क्राप योजना योजना के तहत कृषि यंत्रों के लिए लाभार्थियों को दर्शन पोर्टल पर पंजीकरण करना अनिवार्य होगा।

    ई-लॉटरी के आधार पर होगी चयन प्रक्रिया:

    krishi yantra

    लाभार्थी का चयन ई-लाटरी के आधार पर किया जाएगा। चयनित लाभार्थी को 30-45 दिनों के भीतर कृषि यंत्र क्रय कर बिल पोर्टल पर अपलोड करना होगा, नहीं तो उनकी जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी। किसानों को कृषि यंत्र पर अनुदान का लाभ प्राप्त करने के लिए जमानत राशि ऑनलाइन ही जमा करनी होगी। 10 हजार लेकर एक लाख रुपये तक के कृषि यंत्रों के लिए जमानत राशि 2500 रुपये होगी जबकि इससे अधिक के कृषि यंत्र, कस्टम हेयरिंग सेंटर या फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना के लिए जमानत राशि पांच हजार रुपये होगी।

    दस्तावेज अपलोड करना होगा जरूरी:

    लाभार्थी के चयन होने की तिथि से कृषि यंत्र क्रय कर विभागीय पोर्टल पर क्रय रसीद, यंत्र की फोटो विभागीय पोर्टल पर अपलोड करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा। कस्टम हायरिंग सेंटर या फार्म मशीनरी बैंक के लिए यह अवधि 45 दिन की होगी। यदि समय पर उक्त दस्तावेज अपलोड नहीं किए गए तो लाभार्थी की जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी और उसके स्थान पर दूसरे किसान का चयन किया जाएगा।

    कृषि विभाग के स्तर से जारी गाइडलाइन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मानव चालित या पशु चालित कृषि यंत्र पर एक बार अनुदान प्राप्त करने वाले लाभार्थी अगले तीन वर्षों तक योजना का लाभ नहीं ले सकेंगे। वहीं, शक्ति चालित कृषि यंत्रों के लिए यह अवधि पांच वर्ष की होगी। फार्म मशीनरी बैंक या कस्टम हायरिंग सेंटर 10 वर्ष के उपरांत ही दोबारा इस योजना का लाभ ले सकेंगे। बता दें कि इस वित्तीय वर्ष करीब 335 करोड़ रुपये कृषि यंत्र अनुदान के रूप में राज्य सरकार व्यय करेगी। कृषि यंत्रों पर 40-50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाएगा।

  • Matar ki kheti कैसे करें, खेती से लाभ, बुवाई का सही समय

    Matar ki kheti कैसे करें, खेती से लाभ, बुवाई का सही समय

    परिचय भारत में मटर 7.9 लाख हेक्टेयर भूमि में उगाई जाती है। इसका वार्षिक उत्पादन 8.3 लाखा टन एव उत्पादकता १०२६ किग्रा. / हेक्टेयर है। Matar ki kheti वाले प्रदेशों में उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। उत्तरप्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में Matar ki kheti की जाती है, जो कुल राष्ट्रीय क्षेत्र का 53.7% है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश में २.7 लाख है..

    उड़ीसा में 0.48 लाख., बिहार में 0.28 लाख हे. क्षेत्र में मटर उगाई जाती है। उत्पादन तकनीक : भूमि की तैयारी दृ मटर की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, फिर भी गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। मटर के लिए भूमि को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए। खरीफ की फसल की कटाई के बाद भूमि की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल करके २-३ बार हैरों चलाकर अथवा जुताई करके पाटा लगाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। धान के खेतों में मिट्टी के ढेलों को तोड़ने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना जरुरी है।

    Matar ki kheti

    फसल पद्धति सामान्यतः

    मटर की फसल, खरीफ ज्वार, बाजरा, मक्का, धान और कपास के बाद उगाई जाती है। मटर, गेंहूँ और जौ के साथ अंतः पसल के रूप में भी बोई जाती है। हरे चारे के रूप में जई और सरसों के साथ इसे बोया जाता है। बिहार एवं पश्चिम बंगाल में इसकी उतेरा विधि से बुआई की जाती है।

    बीजोपचार –

    उचित राजोबियम संवर्धक (कल्चर) से बीजों को उपचारित करना उत्पादन बढ़ाने का सबसे सरल साधन है। दलहनी फसलों में वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण करने की क्षमता जड़ों में स्थित ग्रंथिकाओं की संख्या पर निर्भर करती है और यह भी राइजोबियम की संख्या पर भी निर्भर करता है। इसलिए इन जीवाणुओं का मिट्टी में होना जरुरी है। क्योंकि मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या पर्याप्त नहीं होती है, इसलिए राईजोबियम संवर्धक से बीजों को उपचारित करना जरूरी है।

    Matar ki kheti

    राईजोबियम से बीजों को उपचारित करने के लिए उपयुक्त कल्चर का एक पैकेट (250 ग्राम) 10 किग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता ही। बीजों को उपचारित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ और २ ग्राम गोंद को एक लीटर पानी में घोल कर गर्म करके मिश्रण तैयार करना चाहिए। सामान्य तापमान पर उसे ठंडा होने दें। और ठंडा होने के बाद उसमें एक पैकेट कल्चर डालें और अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण में बीजों को डालकर अच्छी तरह से मिलाएं, जिससे बीज के चारों तरफ इसकी लेप लग जाए। बीजों को छाया में सुखाएं और फिर बोयें। क्योंकि राइजोबियम फसल विशेष के लिए ही होता है, इसलिए मटर के लिए संस्तुत राईजोबियम का ही प्रयोग करना चाहिए। कवकनाशी जैसे केप्टान, थीरम आदि भी राईजोबियम कल्चर के अनुकूल होते हैं। राइजोबियम से उपचारित करने के 4-5 दिन पहले कवकनाशियों से बीजों का शोधन कर लेना चाहिए।

    बुआई के समय –

    मटर की बुआई मध्य अक्तूबर से नवम्बर तक की जाती है जो खरीफ की फसल की कटाई पर निर्भर करती है। फिर भी बुआई का उपयुक्त समय अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर का प्रथम सप्ताह है।बीज-दर, दूरी और बुआई- बीजों के आकार और बुआई के समय के अनुसार बीज वर अलग-अलग हो सकती है। समय पर बुआई के लिए 70-80 किग्रा. बीज/हे. पर्याप्त होता है। पछेती बुआई में 90 किग्रा./हे. बीज होना चाहिए। देशी हल जिसमें पोरा लगा हो या सीड ड्रिल से 30 सेंमी. की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिये जो मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है। बौनी मटर के लिए बीज दर 100 किलोग्राम हे. उपयुक्त है।

    उर्वरक-मटर में सामान्यतः

    20 किया, नाइट्रोजन एवं 60 किग्रा, फास्फोरस बुआई के समय देना पर्याप्त होता है। इसके लिए 100-125 किग्रा. मोनियम फास्फेट (बी. ए.पी) पाचा. कोटेदार दिसपट जासकता है। जाट शयम की कमी वाले क्षेत्रों में २० कि.ग्रा. पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से) दिया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में गंधक की कमी हो वहाँ बुआई के समय गंधक भी देना चाहिए। यह उचित होगा कि उर्वरक देने से पहल मेडी की जांच करा लें और कमी होने पर उपयुक्त पोषक तत्वों को खेत में दें।

  • Fal wali makkhi की रोक थाम कैसे करे?

    Fal wali makkhi की रोक थाम कैसे करे?

    Fal wali makkhi की रोक थाम कैसे करे?

    जब बाजार से खरीदे गए या बगीचे में उगाए गए फलों में कीड़े निकलते हैं, तो यह अक्सर हमें हैरान कर देता है कि ये कीड़े सामान्य दिखने वाले फलों में कैसे पहुंच गए। हालाँकि, इस घटना के पीछे अपराधी कोई और नहीं बल्कि कुख्यात फल मक्खी (fruit fly) है। ये फल मक्खियाँ, अन्य फल-चूसने वाले कीड़ों के साथ, खट्टे फलों को खराब करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। विशेष रूप से, पंजाब में, खट्टे फलों पर फल मक्खी (Fal wali makkhi) की दो प्रजातियों, बैक्ट्रोसेरा डॉर्सलिस और बैक्ट्रोसेरा ज़ोनटा का हमला देखा गया है, जिससे समस्या और बढ़ गई है। मादा मक्खी रंग बदलने वाले फल में छेद करने के लिए अपने ओविपोसिटर का उपयोग करती है, और फिर वह सतह के नीचे अपने अंडे देती है। इस प्रक्रिया में नर मक्खी कोई नुकसान नहीं पहुँचाता। जैसे ही अंडे छेदे गए फल में जमा होते हैं, वे गहरे डूब जाते हैं और फल का रंग गहरा हरा हो जाता है। समय के साथ, फल में छेद के आसपास का क्षतिग्रस्त क्षेत्र फैलता है और पीला हो जाता है। एक बार जब अंडे फूटते हैं, तो सफेद या पीले कैटरपिलर निकलते हैं और फल के गूदे में घुस जाते हैं, जहां वे इसे अंदर से खाना शुरू कर देते हैं। जब आक्रमणकारी फलों को काटा जाता है, तो असंख्य बिना पैर वाले कैटरपिलर देखे जा सकते हैं। मक्खियों के हमले से फल पर छेद हो जाते हैं, जिससे यह बैक्टीरिया और फोड़ों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। इन संक्रमणों के परिणामस्वरूप, फल अंततः सड़ जाते हैं और पेड़ से गिर जाते हैं, जिससे वे खाने योग्य नहीं रह जाते हैं।

    बरसात के मौसम में, फल मक्खी की आक्रामकता अधिक बढ़ जाती है, जिससे क्षतिग्रस्त तना दबाने पर रस छोड़ने लगता है। यह मक्खी न केवल किन्नू फल को संक्रमित करती है, बल्कि इसे ग्रेफाइट, मौसमी फलों और नींबू पर भी हमला करते देखा गया है। खट्टे फलों के अलावा, यह मक्खी अमरूद, आड़ू, नाशपाती, आम, आलू, लुकाथ, अंगूर, चीकू और अन्य फलों को संक्रमित करने के लिए जानी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि नीम के बागानों पर मक्खी का संक्रमण केन्द्रीय जिले और शुष्क सेन्जू जिले की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। यदि किन्नू के बाग के नजदीक अमरूद, नाशपाती, आड़ू, आलूचा और आम के बाग हों तो फल मक्खी का संक्रमण और भी गंभीर हो जाता है। आमतौर पर, खट्टे फलों पर हमले का प्राथमिक समय अगस्त और अक्टूबर के बीच होता है।

  • Beej upchaar से होगी गेहूं की अच्छी पैदावार

    Beej upchaar से होगी गेहूं की अच्छी पैदावार

    Beej upchaar से होगी गेहूं की अच्छी पैदावार

    Beej upchaar से होगी गेहूं की अच्छी पैदावार बीज उपचार केसे करें सम्पूर्ण जानकारी संवाद सूत्र, कृषि विभाग ने किसानों को बीज को उपचारित करने के बाद उसकी 15 बीजोपचार बिजाई करने की सलाह दी है। कृषि विभाग का कहना है कि बीज उपचारित करने से पैदावार तो अच्छी होगी ही साथ ही बीमारियों पर भी अंकुश लगेगा। पीला रतुआ जैसी बीमारियां नहीं पनपेंगी। अभी तक देखने में यही आया है कि 50 प्रतिशत किसान बीज को बिना उपचारित किए ही उसकी बिजाई कर रहे हैं। जिससे पैदावार में कमी आ सकती है। बीजोपचार के अभाव में फसल में आने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए किसानों को अतिरिक्त खर्च कर नियंत्रित करना पड़ेगा। इसके बावजूद भी फसल की पैदावार प्रभावित होगी।

    Beej upchaar कैसे किया जाए

     डॉ. अजय पंवार ने बताया कि गेहूं की बिजाई में किसान प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करें। बिजाई से पूर्व किसान 80 ग्राम थिराम नामक दवाई 40 किलोग्राम बीज में अच्छी तरह मिला लें या 40 ग्राम रेक्सिल नामक दवा को एक बैग में अच्छी तरह मिलाकर बीजोपचार करें। उन्होंने बताया कि बीजोपचार से बिजाई की गई फसल में काफी हद तक दीमक भी नियंत्रित होती है।

    उन्होंने कहा कि किसान बीजोपचार कर समय से पूर्व फसल में आने वाली बीमारियों की रोकथाम कर बंपर पैदावार प्राप्त कर सकते है। गेहूं की फसल में आने वाले बीज जनित रोगों के बारें में बताते हुए कहा कि फसल में मुख्यतः तीन प्रकार के बीज जनित रोग आते हैं। जिनसे फसल की पैदावार व गुणवत्ता प्रभावित होती है है। फसल में करनाल बंट नामक रोग आने से बालियों में कुछ दाने काले पड़ जाते हैं। रोग ग्रस्त फसल से सड़ी हुई मच्छली जैसी दुर्गंध आने लगती है। जबकि टुन्डू नामक रोग में फसल के पौधे का तना फूल जाता है। पौधे पर बालियां छोटी व मोटे आकार की हो जाती है।

    बालियों में दाना छोटा व पतला रह जाता है। फ्लैगलीफ नामक रोग पत्तों के ऊपरी सिरे से शुरू होता है। जिससे पौधे की पूरी बाली ही काली पड़ जाती है। बाली काले रंग के पाउडर में तबदील हो जाती है। जिसपर एक भी दाना नही आता। जिससे फसल की पैदावार कम होती है। उन्होंने किसानों को जीरो टीलेज, हैप्पी सीडर व सीड कम फर्टिलाईजर मशीन से बिजाई करने की सिफारिस की है, ताकि बिजाई के समय फसल में डाले जाने वाले उर्वरकों को किसानों को पूरा फायदा मिल सके। उन्होंने बताया कि यूरिया खाद एक मूवऐबल उर्वरक है। जबकि डीएपी नान मूवऐबल उर्वरक है। छटा विधि से गेंहू की बिजाई करने पर किसानों को गेहूं की बिजाई के समय डाले जाने वाले डीएपी खाद का पूरा लाभ नही मिल पाता।

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  • Surajmukhi ki kheti Kaise ki Jaati Hai

    Surajmukhi ki kheti Kaise ki Jaati Hai

    Surajmukhi ki kheti Kaise ki Jaati Hai

    सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी, एवं जायद तीनो ही मौसम में की जा सकती है, लेकिन खरीफ में इस पर अनेक रोगों एवं कीटो का प्रकोप होने के कारण फूल छोटे होते है, तथा दाना कम पड़ता है। जायद में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त होती है। इस कारण जायद में ही इसकी खेती ज्यादातर की जाती है।

    जलवायु और भूमि : सूरजमुखी की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु

    और भूमि की आवश्यकता पड़ती है? सूरजमुखी की खेती खरीफ रखी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है। सूरजमुखी की खेती अम्लीय एवम क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है।

    प्रजातियाँ : उन्नतशील प्रजातियाँ कौन कौन सी होती है, जिन्हें हमें खेत में बोना चाहिए? इसमे मख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है। एक तो सामान्य या संकुल प्रजातियाँ इसमे मार्डन और सूर्य पायी जाती है दूसरा संकर प्रजातियाँ इसमे के बी एस एच-1 और एस एच 3322 एवं ऍफ एस एच-17 पाई जाती है।

    खेत की तैयारी : सूरजमुखी की फसल के लिए खेतो की तैयारी हमारे किसान भाई किस प्रकार करें? खेत की तयारी में जायद के मौसम में प्राप्त नमी न होने पर खेत को पलेवा करके जुताई करनी चाहिए। एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए मिटटी भुरभुरी कर लेना चाहिए, जिससे की नमी सुरक्षित बनी रह सकें। बुवाई का समय : बुवाई का सही समय क्या है और किस विधि से ये बोये जाते

    हैं? जायद में सूरजमुखी की बुवाई का सर्वोत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवारा है इस समय बुवाई करने पर मई के अंत पर जून के प्रथम सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जाती है, यदि देर से बुवाई की जाती है तो पकाने पर बरसात शुरू हो जाती है और दानो का नुकसान हो जाता है, बुवाई लाइनों में हल के पीछे 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिएप् लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की मात्रा : सूरजमुखी की बुवाई में प्रति हेक्टयर बीज की कितनी मात्रा लगती है, और इनका शोधन किस प्रकार करे? बीज की मात्रा अलग अलग पड़ती है, जैसे की संकुल या सामान्य प्रजातियो में 12 से 15 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है और संकर प्रजातियो में 5 से 6 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है। यदि बीज की जमाव गुणवता 70% से कम हो तो बीज की मात्रा बढ़ाकर बुवाई करना चाहिए, बीज को बुवाई से पहले 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलो ग्राम बीज को शोधित करना चाहिए बीज को बुवाई से पहले रात में 12 घंटा भिगोकर सुबह 3 से 4 घंटा छाया में सुखाकर सायं 3 बजे के बाद बुवाई करनी चाहिए जायद के मौसम में।

    Surajmukhi ki kheti Kaise ki Jaati Hai

    उर्वरक का प्रयोग : सूरजमुखी की फसल में में करनी चाहिए और कब करना चाहिए? सामान्य परिक्षण के आधार पर ही करनी चाहिए फिर भी किलोग्राम फास्फोरस एवम पोटारा 40 किलो पर्याप्त होता है। नत्रजन की अबी मात्रा मात्रा बुवाई के समय कुडों में योगा चाहिए शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के में देना चाहिए यदि आलू के बार फसल की मात्र कम की जा सकती है, बासिखरी से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खादया सिंचाई का समय : सूरजमुखी की उर्वरको का प्रयोग कितनी मात्रा उर्वरकों का प्रयोग मृदा नत्रजन 80 किलोग्राम, 60 तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर एल्फोरस व पोटाश की पूरी इसका विशेष ध्यान देना दिन बाद ट्राईफोसीड के रूप तो 20 से 25% उर्वरकखेत तैयार करते समय 250 लाभदायक पाया गया है। सिपाई कब और कैसे करनी चाहिए? पहली सिचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद हल्की या स्प्रिंकलर से करनी चाहिएप् बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 करते रहना चाहिए कुल 5 या 6 दिन के अन्तराल पर सिचाई सिचाइयो की आवश्यकता पड़ती है। फूल निकलते समय दाना भरते समय बहुत हल्की सिचाई की आवश्यकता पड़ती है।

    जिससे पौधे जमीन में गिरने न पाए क्योकि जब दाना पड़ जाता है तो सूरजमुखी के फूल के द्वारा बहुत ही पौधे पर वजन आ जाता है जिससे की गिर सकता है गहरी सिचाई करने से। निराई एवं गुड़ाई फसल की निराई गुडाई कब करनी चाहिए और उसमे खरपतवारो का नियत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें? बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिचाई के बाद ओट आने के बाद निराई गुड़ाई करना अति आवश्यक है, इससे खरपतवार भी नियंत्रित होते है। रसायनों द्वारा खरपतवार नियत्रण हेतु पेंडामेथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी घोलकर प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर छिड़काव करने से खरपतवारो का जमाव नहीं होता है।

    मिट्टी की मात्रा : सूरजमुखी की फसल में पौधों पर कब, कैसे और कितनी मिट्टी चढ़ानी चाहिए, ताकि उनका संतुलन बना रहे? सूरजमुखी का फूल बहुत ही बड़ा होता है इससे पौधा गिराने का भय बना रहता है इसलिए नत्रजन की टापड्रेसिंग करने के बाद एक बार पौधों पर 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँची मिट्टी चढ़ाना अति आवश्यक है जिससे पौधे गिरते नहीं है।

    परिषेचन की क्रिया : सूरजमुखी में परिषेचन की क्रिया कब करनी चाहिए किन साधनों के द्वारा करना चाहिए? सूरजमुखी एक परिषेचित फसल है इसमे परिषेचन क्रिया अति आवश्यक है यदि परिषेचन क्रिया नहीं हो पाती तो पैदावार बीज न बन्ने के कारण कम हो जाती है इसलिए परिषेचन क्रिया स्वतः भवरो, मधुमक्खियो तथा हवा आदि के द्वारा होती रहती है फिर ही अच्छी पैदावार हेतु अच्छी तरह फूलो, फुल आने के बाद हाथ में दस्ताने पहनकर या रोयेदार कपडा लेकर फसल के मुन्दको अर्थात फूलो पर चारो और धीरे से घुमा देने से परिषेचन की क्रिया हो जाती है यह क्रिया प्रातः 7 से 8 बजे के बीच में कर देनी चाहिए। फसल सुरक्षा : सूरजमुखी की फसल में फसल सुरक्षा किस प्रकार करें?

    सूरजमुखी में कई प्रकार के कीट लगते है जैसे की दीमक हरे फुदके डसकी बग आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ई सी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

    कटाई और मड़ाई: सूरजमुखी की फसल की कटाई और मड़ाई करने का सही समय क्या है कब करनी चाहिए? जब सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाए तो मुन्डको की कटाई करके या फूलो के कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए तथा इनको छाया में सुख लेना चाहिए इनको ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकल लेना चाहिए साथ ही सूरजमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है।