Safed musli ki kheti : इस्से जुडी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर
Safed musli ki kheti मूसली (क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम) एक अनमोल औषधि पौधा है, जिसका उपचार आयुर्वेद और ग्रीक औषधियों में होता है। इस तरह से शरीर की शारीरिक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और तनाव को दूर किया जा सकता है। इसकी खेती को किसानों के बीच एक व्यावसायिक कंपनी के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इसकी बाजार में काफी मांग है और इसकी अच्छी पैठ हो सकती है।
सफेद मूसली की खेती कैसे करें
Safed musli ki kheti में इसे प्रकंदों को लगाकर तैयार किया जाता है। इसमें सबसे पहले प्रकंदों को छोटे टुकड़ो में बाँट कर मिट्टी में इसे उपयोग किया जाता है। प्रत्येक टुकड़े का वजन लगभग 2-3 सेमी होना चाहिए और इसे 15-20 सेमी की दूरी पर लगाया जाना चाहिए। मूसली की खेतीइसके लिए सही परिस्थितियों के साथ-साथ उचित देखभाल और सिंचाई की भी आवश्यकता होती है।”
जलवायु और मिट्टी
Safed musli ki kheti के लिए गरम और नरम जलवायु सबसे अधिक होती है। 25°C से 30°C का तापमान इसकी बेहतरी वृद्धि के लिए सही माना जाता है। इस पौधे को ऐसे शेत्रों में लगाना चाहिए जहां बारिश समय पर हो। मिट्टी की बात करें तो सफेद मूसली के लिए बालू मिट्टी या कार्बनिक पदार्थ से भरपूर मिट्टी सबसे अच्छी होती है। जमीन का ड्रेनेज सिस्टम भी अच्छा होना चाहिए, ताकि पानी के जमाव से राइजोम खराब न हो जाएं।
प्रसिद्ध किस्मत
सफेद मूसली की कई किस्में होती हैं, लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्ध किस्म क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम है। ये क़िस्म पैदावार के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है और इसका उपयोग दवाओं में ज्यादा किया जाता है।
जमीन की तैयारी कैसे करें
सफेद मूसली की खेती से पहले जमीन को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। इसके लिए जमीन को 2-3 बार गहरा जोतना चाहिए ताकि मिट्टी भूरी हो जाए। तैयारी के दौरन जैविक खाद जैसे कि गोबर या वर्मीकम्पोस्ट को जमीन में मिलाना उचित होता है। मिट्टी को नरम बनाने के लिए हल्की सिंचाई भी कर सकते हैं।
बिजाई
सफेद मूसली की बिजाई मई-जून के समय की जाती है जब बारिश शुरू होती है। इसमें प्रकंदों को छोटे टुकड़ों में बांटकर मिट्टी में 6-8 सेमी की गहराई में लगाया जाता है। हर एक प्रकंद के टुकड़े के बीच 15-20 सेमी की दूरी रखना जरूरी होता है, ताकि पौधों को वृद्धि के लिए पूरी जगह मिल सके।
खाद
सफेद मूसली के पौधों को पोषण देने के लिए जैविक खाद का उपयोग सबसे अच्छा होता है। इसमें FYM (फार्म यार्ड खाद), गोबर की खाद, और वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है। लगभग 10-12 टन एफवाईएम प्रति हेक्टेयर जमीन में मिलानी चाहिए ताकि पौधों को अच्छी पोषण मिल सके।
खरपतवार नियन्त्रण
खरपतवार मूसली के पौधों की ग्रोथ में बढ़ोतरी होती है, इसलिए इनका नियन्त्रण करना जरूरी होता है। सफेद मूसली की खेती में 2-3 बार निंदई करनी पड़ती है। पहली निंदई बिजाई के 30 दिन बाद देखभाल करनी चाहिए, और इसके बाद हर 15-20 दिन के अंतराल पर दोहरानी चाहिए। मल्चिंग एक और प्रभावी तरीका है, जिससे खरपतवार पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
सिंचाई
सफेद मूसली की खेती में सिंचाई का भी विशेष महत्व है। बिजाई के बाद पौधों को लगता है पानी मिलना चाहिए। हल्का पानी देना सही होता है, लेकिन ध्यान रहे कि पानी का जमाव न हो। बारिश के समय में पानी देने की अवधि कम होती है, लेकिन शुरू के महीनों में 1-2 हफ्ते में सिंचाई जरूरी होती है।
सफ़ेद मूसली की कटाई
सफ़ेद मूसली के पौधे बिजाई के बाद 6-8 महीने में तैयार हो जाते हैं। जब पौधों के पत्ते पीले होने लगते हैं, तो इसका मतलब है कि प्रकंद तैयार हो गए हैं। कटाई करने के लिए प्रकंदों को ध्यान से निकालकर उनकी सफाई की जाती है, और फिर इनको धूप में सुखाया जाता है।
सफेद मूसली की खेती के लाभ
Safed musli ki kheti करके किसान अपनी आमदनी को काफी बढ़ा सकते हैं क्योंकि इसकी मांग आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में काफी ज्यादा होती है।
इसकी खेती कम ज़मीन पर भी हो सकती है और इससे कम मेहनत में अच्छा मुनाफ़ा मिलता है।
सफेद मूसली की खेती एक व्यवसायिक खेती है जो छोटे और बड़े किसान दोनों के लिए लाभदायक है।
पढ़िए यह ब्लॉग Matar ki kheti
FAQs
सफेद मूसली क्या है?
सफेद मूसली की खेती किस मौसम में की जाती है?
सफेद मूसली की खेती के लिए कौन सी जलवायु सबसे अच्छी होती है
सफेद मूसली की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी होती है?
सफेद मूसली की बिजाई कैसे की जाती है?