Sitafal ki kheti कैसे करें
Sitafal ki kheti:-सीताफल को शरीफा, शुगर एप्पल और कस्टर्ड एप्पल के नाम से भी जाना जाता है. ये एक स्वादिष्ट मीठा फल होता है. इस कारण लोग इसको खाना काफी ज्यादा पसंद करते हैं. इसके खाने के बहुत सारे फायदे हैं. सीताफल के इस्तेमाल से हृदय संबंधित, पेट संबंधित, कैंसर, कमजोरी और जोड़ों में दर्द जैसी कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
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सीताफल का खाने के अलावा व्यापारिक तौर पर भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इसके बीजों को सुखाकर उनका तेल निकाला जाता है. इस तेल का इस्तेमाल साबुन और पेंट बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसके गूदे को दूध में मिलाकर आइसक्रीम तैयार की जाती है. इसका फल बहुत ठंडा होता है. जिससे यह शरीर के तापमान को स्थिर बनाता है। इसकी खेती के लिए शुष्क जलवायु वाली जगह ज्यादा उपयुक्त होती है. इसके पौधे को गर्मी की ज्यादा जरूरत होती है. और सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है. इसके पौधे को ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती. इसकी पत्तियों में एक विशेष महक आती है, जिस कारण इसके पौधों की ज्यादा देखरेख करने की जरूरत नही होती. भारत में इसकी खेती झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा होती है। अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
उपयुक्त मिट्टी:- सीताफल की खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती हैं. लेकिन अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. जबकि जल भराव वाली काली चिकनी मिट्टी में इसकी खेती नहीं की जा सकती. क्योंकि जल भराव होने पर उत्त्पन्न होने वाले कीटों के कारण पौधों में कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए।
जलवायु और तापमान:- सीताफल की खेती के लिए शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं. इसके पौधे अधिक गर्मी में आसानी से विकास करते हैं. लेकिन अधिक समय तक पड़ने वाली तेज सर्दी इसके लिए उपयुक्त नही होती. इससे इसके फलों का स्वाद कड़ा हो जाता है. इसके फलों को पकने के लिए गर्मी के मौसम की जरूरत होती है. लेकिन गर्मी में पकने के बाद भी इसके फल बहुत ठंडे होते हैं। इसके पौधे को अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. और विकास के टाइम ये 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेता है. लेकिन जब इस पर फूल और फल बनते हैं, उस वक्त 40 डिग्री से ज्यादा तापमान होता है तो इसके फूल और फल दोनों झड़ने लगते हैं।
Sitafal ki kheti कैसे करें
उन्नत किस्में :- सीताफल की कई तरह की किस्में पाई जाती है. इन सभी किस्मों को उगने के स्थान, फल, बीज के रंग और आकार के आधार पर तैयार किया गया है। अर्का सहन: अर्का सहन सीताफल की एक संकर किस्म है. इस किस्म के फल बहुत रसदार होते हैं. जो बहुत धीमी गति से पकते हैं. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा कम और आकार छोटा होता है. इसके गूदे अंदर से बर्फ की तरह सफेद दिखाई देते हैं. जो स्वाद में बहुत मीठे होते हैं. इनमें सुगंध मध्यम प्रकार की आती है।
लाल सीताफल:- इस किस्म के पौधों को बीज के माध्यम से उगाने पर फलों में शुद्धता बनी रहती है. इसके फलों का रंग हल्का लाल गुलाबी होता है. इस किस्म के एक पौधे से एक वर्ष में 40 से 50 फल ही प्राप्त किया जा सकते हैं. जो समय के साथ साथ बढ़ते जाते हैं. इस किस्म के फलों में बीज काफी कम मात्रा में पाए जाते है।
मैमथ :- इस किस्म का उत्पादन लाल शरीफे से ज्यादा होता है. इसके एक पौधे से सालभर में 60 से ज्यादा सीताफल प्राप्त होते हैं. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा भी कम पाई जाती है. इसके फलों की फाँके गोलाकार और बड़ी होती हैं. जिनमें गूदे की मात्रा अधिक पाई जाती है।
बाला नगर:- इस किस्म के Sitafal ki kheti ज्यादातर झारखंड में की जाती है. झारखण्ड के जंगलों में यह सामान्य रूप से पाया जाता है. इसके फलों का रंग हल्का हरा होता है. इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा अधिक पाई जाती है. इसके एक पौधे की पैदावार 5 किलो के आसपास पाई जाती है। इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिनका उत्पादन अलग अलग जगहों पर किया जाता है. इनमें वाशिंगटन पी.आई. 107, 005, ब्रिटिश ग्वाइना और बारबाड़ोज सीडलिंग जैसी कई किस्में मौजूद हैं।
खेत की तैयारी :- Sitafal ki kheti के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को हटाकर उसकी पलाऊ के माध्यम से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर उसमें पाटा लगा दें. पाटा लगाने से मिट्टी में मौजूद ढेले खत्म हो जाते हैं और भूमि समतल दिखाई देती है।