जैविक हरी खाद के प्रयोग से धान की पैदावार बढ़ाएं
जैविक हरी खाद के प्रयोग करने पर धान फसल की बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। इसके साथ-साथ हमारे खेतों की मिट्टी में जीवांश की मात्रा में वृद्धि होती है। उपजाऊ मृदा वही कहलाती है, जिसमें जीवांश की भरपूर मात्रा हो। मृदा का उपजाऊपन बढ़ाने की क्रियाओं में हरी खाद का प्रयोग सर्वाधिक कारगर है। इस क्रिया में प्रायः दलहनी पौधों को उसी खेत में उगाकर 30-40 दिनों के बाद। जुताई करके मिट्टी में मिला देते है। हरी खाद का प्रयोग करने के लिये आप जब धान की नर्सरी डालते है, उसी समय मुख्य खेतों में हरी खाद जैसे-सन् या ढेचा इत्यादि के बीज बो दें। लगभग 30 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होगा। रोपा लगाने के लगभग एक सप्ताह पूर्व खेतों में हल चलाकर हरी खाद के कोमल पौधों को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। चार से पांच दिनों में यह मिट्टी में मिलकर अच्छी तरह सड़ जाती है। जिससे मिट्टी में जीवांश की मात्रा में वृद्धि होती है और आपके खेतों की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। हरी खाद की फसलें दलहनी होती है,। इनके पौधों की जड़ों में मौजूद गठानों में राइजोबिया नामक जीवाणु होते हैं जो वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन पोषक तत्व को अवशोषित कर पौधों को उपलब्ध कराते है और पौधों की आवश्यकता से अतिरिक्त नाइट्रोजन मृदा में स्थिर करते है, जो अगली फसल के काम आता है। ढेंचा की हरी खाद से प्रति हैक्टर लगभग 100 किलो नाइट्रोजन (2 क्विंटल यूरिया कीमत रू. 1000/-) प्राप्त होती है। इसके जतिरिक्त थोड़ी मात्रा में स्फुर, पोटाश, गंधक, मैग्नीशियम, ताम्बा, लोहा इत्यादि । तत्व भी प्राप्त होते हैं। बीज बनाने के लिये हरी खाद के बीज थोड़ी! मात्रा में बगार खेतों में भी बोएं। इससे आपको हर वर्ष बीज खरीदने की झंझट से मुक्ति मिलेगी। वैसे भी इनकी उपलब्धता समय पर कम होतीहै। इसलिये इसका बीज स्वयं बनाने की आदत डालें।