लहसुन की खेती में खतरनाक कीट -:
किसान अगर ध्यान दें और थोड़ी सी सावधानी बरतें तो लहसुन की फसल को खतरनाक कीटों से बचाया जा सकता है. समय पर लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो उनका नियंत्रण भी किया जा सकता है, आइए जानते हैं कैसे. देश में होने वाली मसाला की खेती में लहसुन एक प्रमुख फसल है. इसका इस्तेमाल सब्जियों के अलावा औषधियों में भी किया जाता है. भारतीय लहसुन की मांग दूसरे देशों में भी रहती है यही कारण है कि बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती से जुड़े हुए हैं. वैसे तो ये मुनाफे की खेती है लेकिन कई बार इसमें लगने वाले कीट इसे नुकसान का सौदा बना देते हैं. किसान अगर ध्यान दें और थोड़ी सी सावधानी बरतें तो लहसुन की फसल को खतरनाक कीटों से बचाया जा सकता है. समय पर लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो उनका नियंत्रण भी किया जा सकता है, आइए जानते हैं कैसे.
थ्रिप्स : यह लहसुन की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे अधिक हानिकारक कीट है. यह सा पीले रंग का होता है जो पत्तियों का रस चूसकर उनमे छोटे-छोटे सफेद धब्बे बना देता है. पत्तिया पीला होकर मुरझाने लगते हैं और पौधा सूख जाता है. फलस्वरूप फसल छोटी रह जाती है और उपज में भरी गिरावट आ जाती है. यह कीट फूल आने के समय अधिक नुकसान पहुंचाता है. जब थ्रिप्स की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (30 थ्रिप्स प्रर्ति पौधे) से ऊपर हो जाये तभी कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए. उपयुक्त फसलचक्र व उन्नत तकनीक से खेती करें। नियंत्रण : जब थ्रिप्स की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (30) थ्रिप्स प्रर्ति पौधे) से ऊपर हो जाए तब इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिला कीट छोटा कर छिड़काव करें या फिप्रोनिल 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें या स्पायनोसेद 100 मिली / हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. पीले / नीले रंग के स्टिकी पट्टिकाओं का प्रयोग भी लहसुन के खेत में करना थ्रिप्स की रोकथाम के लिए लाभकारी रहता है. माइट्स : इस कीट से ग्रसित पोधे की पत्तियां पूरी तरह खुल नहीं पाती व पूरा का पूरा पोधा जलेबी की तरह मुड़ जाता है. ग्रसित पत्तियों के किनारे पीले हो जाते हैं. लहसुन उथली जड़ वाली फसल है अतः पौधों की जड़ों में वायु संचार के लिए उथली निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है. खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर पेंडामेथालीन का 3-4 ली. मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई से पहले छिड़काव करना चाहिए।
नियंत्रण : लक्षण दिखाई देते ही ओमईट 1 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पानी में घोल कर छिड़काव करें। बैंगनी धब्बा : बैंगनी धब्बा रोग (पर्पिल ब्लाच) इस रोग के प्रभाव से प्रारम्भ में पत्तियों तथा उर्ध्व तने पर सफेद एवं अंदर की तरफ धब्बे बनते है, जिससे तना एवं पत्ती कमजोर होकर गिर जाती है. फरवरी एवं अप्रैल में इसका प्रक्रोप ज्यादा होता है।
रोकथाम एवं नियंत्रण: 1. मैकोजेब+कार्बडिज़म 2.5 ग्राम दवा के सममिश्रण से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करें. 2. मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें. 3. रोग रोधी किस्म जैसे जी-50, जी-1, जी 323 लगाएं.
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