Dhaincha Farming : एक विशेष जानकारी
ढैंचा एक महत्वपूर्ण चारा और हरी खाद की फसल है, जो खास तौर पर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और मिट्टी में नाइट्रोजन की भरपाई करने के लिए किया जाता है। ये एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाई जाने वाली फसल है, जो बहुत कम पानी और कम खर्च में अच्छा उत्पादन देती है। चलो, Dhaincha Farming के तरीके और उसके प्रमुख लाभ पर एक नज़र डालते हैं।
ढैंचा की खेती कैसे करें
Dhaincha Farming मुख्य रूप से मिट्टी को अच्छा बनाने के लिए की जाती है, लेकिन इसे चारे की फसल के रूप में भी इस्तमाल किया जा सकता है। ढैंचा का पौधा अपनी जड़ों के साथ, नाइट्रोजन को मिट्टी में बढ़ाता है, जो अगली फसल के लिए फ़ायदेमंद है। ख़रीफ़ सीज़न या रबी सीज़न में इसका रोपण किया जा सकता है, और कम समय में इसका अच्छा विकास होता है।
ढैंचा की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
ढैंचा की खेती के लिए बलुई-दोमट और जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसमें जैविक सामग्री अच्छी होनी चाहिए, ताकि ये फसल मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ावा दे सकती है । ढैंचा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है, और इसके लिए 25°C से 30°C तक का तापमान सबसे अच्छा होता है। मिट्टी की अच्छी जल निकासी और मध्यम वर्षा इसके लिए आदर्श हैं।
ढैंचा की उन्नत किस्मे
ढैंचा की कुछ उन्नत किस्मे हैं जो अलग-अलग परिस्थितियों में अच्छा परिणाम देती हैं, जैसे की:सेसबानिया एक्यूलेटा: ये सबसे आम और तेजी से बढ़ने वाली किस्म है जो मिट्टी को नाइट्रोजन के लिए समृद्ध बनाती है।
सेसबानिया रोस्ट्रेटा: इस किस्म में जड़ की गांठें ज्यादा होती हैं जो मिट्टी में नाइट्रोजन को तेजी से बढ़ाती हैं।
ढाँचा की खेती के लिए ज़मीन की तयारी
ढैंचा के बीज बेहतर विकास के लिए जमीन को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है। पहले ज़मीन को जुताई के लिए अच्छे से हल चलाना चाहिए, ताकि मिट्टी भूर-भूरी और नरम हो जाए। इसके बाद, एक बार और जुताई करके मिट्टी को समतल करना चाहिए, ताकि बिजाई के समय बीज अच्छे से जम सकें और जल्दी बढ़ें।
बिजाई
बिजाई का समय अप्रैल से जून तक सबसे अच्छा होता है, जब तापमान और नमी आदर्श होती है। ढैंचा के बीज 20 -25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोया जाता है। बीजों को 2-3 सेमी की गहराई में बोया जाता है और बिजाई के बाद हल्की सी पट का इस्तेमाल करके जमीन को अच्छी तरह से कवर किया जाता है, ताकि बीजों को नमी मिल सके।
सिंचाई
ढैंचा की खेती के लिए शुरुआती चरण में एक बार पानी देना जरूरी है, ताकि बीज को नमी मिले और वो अच्छे से उग सके। उसके बाद, 10 -15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। अगर बारिश हो रही है तो पानी देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन सुखद के हालात में हल्के पानी की ज़रूरत होती है।
खरपतवार नियन्त्रण
खरपतवार ढैंचा की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। इसलीये प्रारंभिक चरण में हाथ से निराई या अंतःखेती से खरपतवार को हटाना चाहिए। अगर भारी मात्रा में खरपतवार उगती है तो शाकनाशी का भी उपयोग किया जा सकता है।
कटाई
ढैंचा की फसल 45 – 60 दिनों में तैयार हो जाती है, जब ये 4-5 फीट तक की ऊंचाई तक पहुंच जाती है। इस स्टेज पर इसकी हरी खाद के लिए कटाई की जाती है, या फिर इसे चारे के रूप में उपयोग कर सकते हैं। कटाई के बाद इसको मिट्टी में मिलाना चाहिए, ताकि ये मिट्टी में पोषक तत्व प्रदान करें।
ढैंचा की खेती के लाभ
मिट्टी में नाइट्रोजन को बढ़ाता है: ढैंचा की खेती से मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ता है, जो अगली फसल के लिए फायदेमंद होता है।
मृदा क्षरण रोकता है: ये फसल मिट्टी को पकड़ कर मृदा क्षरण से बचाता है।
पानी का उपयोग कम करता है: कम सिंचाई की जरुरत होती है, जो सुखद क्षेत्रों के लिए उपयोगी है।
खरपतवार को रोकता है: इसके घने विकास के कारण खरपतवारों को कम जगह मिलती है और ये स्वाभाविक रूप से खरपतवार नियन्त्रण में मदद करता है।
कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाता है: मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता और संरचना को सुधारता है।
पढ़िए यह ब्लॉग Palak Ki Kheti
FAQs
ढैंचा की खेती किस मौसम में करनी चाहिए?
ढैंचा की खेती का सबसे अच्छा समय खरीफ सीजन (अप्रैल से जून) है, लेकिन इसे रबी सीजन में भी उगाया जा सकता है।
ढैंचा की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे उपयुक्त है?
ढैंचा की खेती के लिए बलुई-दोमट और जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जैविक पदार्थ की अच्छी मात्रा हो।
ढैंचा की खेती के क्या लाभ हैं?
ढैंचा की खेती मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती है, मिट्टी की उर्वरता को सुधारती है, और मिट्टी का कटाव रोकने में मदद करती है।
ढैंचा की फसल कितने समय में तैयार हो जाती है?
ढैंचा की फसल 45-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जब यह लगभग 4-5 फीट ऊंची हो जाती है।
ढैंचा की खेती के दौरान सिंचाई कैसे करनी चाहिए?
शुरुआती चरण में एक बार सिंचाई करनी चाहिए, और फिर 10-15 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।