Kusum ki Kheti : कम पानी में अच्छी पैदावर
Kusum ki Kheti , जिसे safflower भी कहा जाता है, एक लाभकारी तेल उपज फसल है जो भारत के राज्य में उगती है। इसका तेल और बीज व्यापारी और घरेलु उपाय में इस्तेमाल होता है। कुसुम का उपयोग आयुर्वेद और चिकित्सा के क्षेत्र में भी होता है, जो इसे और भी महत्तवपूर्ण बनाता है।
कुसुम की खेती कैसे करें
कुसुम की खेती करने के लिए सबसे पहले इसके बीज और जमीन का सही चयन जरूरी है। ये खेती रबी फसल के तौर पर की जाती है और अक्टूबर से नवंबर के बीच इसके बीज बोन का समय होता है। सही तरीके से खेती की जाए तो इसकी अच्छी पैदावार मिल सकती है।
कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी काफी अनुकूल होती है। इस फसल को सूखे और गर्मी भरे मौसम में उगाया जा सकता है। मिट्टी की बात करे तो हल्के और गहरे ड्रेनेज वाली मिट्टी इसके लिए अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच स्टार लगभग 6 से 7 के बीच हो तो पैदावर और भी अच्छी होती है।
कुसुम की उन्नत किस्मे
कुसुम की उन्नत किस्मे चुनना पैदावर को बेहतर बनाने में मददगार होती है। कुछ प्रमुख उन्नत किस्मे किसानो के बीच प्रचलित हैं, उनमे भीम, पीबीएनएस-12, और ए-1 शामिल हैं। इन किस्में का इस्तमाल करने से उपयोगी तेल उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
बिजाई
कुसुम के बीज की बिजाई के लिए जमीन को अच्छे से तैयार किया जाता है। इसमे बीज लगाने के लिए 30-40 सेमी की दूरी और 2-3 सेमी की गहराई रखी जाती है। हर हेक्टेयर में लगभग 10-12 किलो बीज की जरूरत होती है ताकि अच्छी पैदावर हो।
कुसुम की खेती में सिंचाई
कुसुम की खेती में सिंचाई का ध्यान रखना पड़ता है, लेकिन ये फसल अपने प्रारंभिक चरण के बाद कम पानी में भी अच्छी होती है। पहली सिंचाई बिजाई के तुरत बाद और दूसरे फूल आने के समय करनी चाहिए। उसके बाद सिर्फ तब सिंचाई करे जब बहुत जरूरी हो।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण कुसुम की खेती में एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि ये पैदावर को कम कर सकते हैं। पहली निराई बिजाई के 20 -25 दिन के बाद और दूसरी निराई 40-45 दिन के बाद की जाती है। मल्चिंग या खरपतवार नाशक का इस्तमाल भी किया जा सकता है।
कटाई
कुसुम की फसल लगभग 5-6 महीने में तैयार हो जाती है। जब इसके फूल और पत्ते सुखने लगते हैं तब समझ लेना चाहिए कि कटाई का समय आ गया है। फ़सल को धीरे से काट कर उसके बीज इकठ्ठा किये जाते हैं जो तेल उत्पादन के लिए उपयोगी होते हैं।
कुसुम की खेती के फायदे
Kusum ki Kheti से किसानो को कई तरह के लाभ मिलते हैं। इसका तेल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है और इसे खाने के साथ-साथ सौंदर्य उत्थान में भी इस्तमाल किया जाता है। ये तेल कोलेस्ट्रॉल कम करने और दिल को स्वस्थ रखने में मददगार होता है। इसके इलावा, कुसुम की खेती से कम लागत और कम मेहनत में अच्छी आमदनी की संभावनाएं होती हैं, इसलिए ये एक लाभकारी फसल है।
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FAQs
कुसुम की खेती क्या है?
कुसुम की खेती एक लाभकारी फसल है जिसे भारत में उगाया जाता है। इसे कम पानी में भी उगाया जा सकता है और इससे तेल और बीज प्राप्त होते हैं, जो स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए उपयोगी होते हैं।
कुसुम की खेती के लिए कौनसी जलवायु और मिट्टी अनुकूल है?
कुसुम की खेती के लिए सूखा और गर्म मौसम अनुकूल होता है। हल्की और गहरी ड्रेनेज वाली मिट्टी जिसमें पीएच स्तर 6-7 के बीच हो, इसके लिए अच्छी मानी जाती है।
कुसुम की उन्नत किस्में कौनसी हैं?
कुछ प्रमुख उन्नत किस्मों में भीम, पीबीएनएस-12, और ए-1 शामिल हैं। ये किस्में तेल उत्पादन को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
कुसुम की खेती में सिंचाई की आवश्यकता कितनी होती है?
कुसुम की खेती कम पानी में भी अच्छी होती है। पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद और दूसरी फूल आने के समय करनी चाहिए। इसके बाद जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें।
कुसुम की कटाई कब की जाती है?
कुसुम की फसल लगभग 5-6 महीने में तैयार हो जाती है। जब फूल और पत्ते सूखने लगते हैं, तब कटाई का समय होता है।