afeem मैं लगने वाले प्रमुख रोग
1.मृदुरोमिल आसिता (कोडिया एवं काली मस्सी रोग)
afeem मैं लगने वाले प्रमुख रोग :- afeem उगाने वाले सभी क्षेत्रों में दौनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) से बहुत हानि होती हैं। रोग का प्रकोप पौध अवस्था से लेकर फल आने तक बहुत हानि मस्सी से पौधे की पत्तियों पर भूरे या काळा धब्बे बन जाते हैं। इस रोग से प्रभावित फसल की बढ़वार निचे की पत्तियों पर फैल जाते हैं। इस रोग से प्रभावित फसल की बढ़वार कम हो जाती हैं। कोडिया रोग की रोकथाम के लिए बीजोपचार हेतु फफूंदनाशी दवा मेटालेक्सिल 35 एस.डी. (एप्रोन) 8 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके ही बुवाई करें। इसके बाद फसल में रोग प्रकट होने पर फफूंदनाशी दवा मेंकोजेब 64. मेटालेक्सिल 8: (रिडोमिल एम जेड-72 डब्ल्यूपी) घुलनशील चूर्ण का (0.2:) अर्थात 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में पहला छिड़काव रोग के लक्षण प्रकट होने पर दूसरा व तीसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल से दोहरावें।
2. छाछिया रोग
इस रोग को चूर्णिल आसिता या पाउडरी मिल्ड्यू भी कहते हैं। यह रोग इरिसीफी पोलिगोनाइ नामक फफूंद से होता हैं। रोग फफूंद के कोनिडिया से होता हैं। इस रोग के लक्षण पौधे के तना के निचले हिस्से पर दिखाई देते हैं। बाद में यह रोग धीरे-धीरे पत्तियों पर सफेदी के रूप में दिखाई देता हैं। बाद में सफेद धब्बे बन जाते हैं। धीरे-धीरे वह काले पड़ जाते हैं। इस रोग का प्रकोप तीव्र होने पर कभी-कभी सफेद चूर्ण डोडों पर भी दिखाई पड़ता हैं तथा पूरा पौधा सफेद चूर्ण से ढक जाता हैं। इसकी रोकथाम के लिए फसल बुवाई के 70, 85 एवं 105 दिनों पर टेब्यूकोनाजोल 1.5 मि.ली.ध्लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
3. विषाणु 4जनित (एफिड्स एवं सफेद मक्खी द्वारा)
पीली पत्ती रोग (मोजेक) का प्रबंधन रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर जलायें अथवा गहरे गड्ढे में दबाएं। कीटनाशक दवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. का 0.3 मि.ली.ध्लीटर पानी या डाइमिथिएट 30 ई.सी. 2 मि.ली. घ्लीटर पानी में घोलकर पहला छिड़काव करें एवं दूसरा व तीसरा छिड़काव 10-12 दिन के अन्तराल से
4. भूमिगत कीट दीमक एवं कटुआ इल्ली
इसके अंतर्गत वे कीट आते है जो भूमि में रहकर अफीम के पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाते है। रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास का छिड़काव करें। नीम की खल/500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाले।
5. जड़ गलन रोग का समन्वित प्रबंधन
फसल बुवाई से पहले नीम की खली की खाद 500 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा 80 किलो 20 आरी क्षेत्र में मिलायें। जैव फफूंदनाशी ट्राइकोड्रामा चूर्ण से 10 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से बीज उपचार करें। अफीम की फसल के 35 एवं 60 दिनों के उपरान्त फफूंदनाशी दवाओं जैसे दृ हेक्जाकोनाजोल 5 ई. सी. (0.1:) 1 मि.ली. प्रति लीटर या मेंकोजेब 75: चूर्ण (0.3:) 4 ग्रामध्लीटर की दर से पानी का घोल बनाकर फसल की जड़ों में ड्रेचिंग करें।
6. डोडे की लट
क्यूनालफॉस (25 इ.सी.) 1.5 मी.ली. से 2.0 मि.ली. एक लीटर पानी में मिलावें। (0.04-0.05:) बिस आरी क्षेत्र के लिए 200-250 मि.ली.क्यूनालफॉस 125 लीटर पानी में मिलावें अथवा मोनोक्रोटोफॉस 1 मि लीलीटर पानी में मिलावें। जैव फफूंदनाशक 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर 200 की.ग्रा. पकी हुई गोबर की खाद में मिलाकर भूमि उपचार करें। बिस आरी के लिए 100-150 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस 100-150 लीटर पानी में मिलावें ।
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7. पाला
afeem की फसल को पीला से बहुत ज्यादा नुकसान होता हैं। अतः फसल को निम्न प्रकार बचाया जाये पला पड़ने की संभावना हो या पाला पड़ गया हो तो तुरंत प्रारम्भ से सिंचाई करें। पाला पड़ने से पूर्व सिंचाई करने से पाले का असर कम होता हैं। फसल के चारों और धुँआ करने से पाले का असर कम होता हैं। गंधक का तेजाब का 0.1: घोल अर्थात 120-150 मि.ली. गंधक का तेजाब 120-50 लीटर पानी में मिलाकर 20 आरी क्षेत्र में छिड़काव करें। उपरोक्त उपचार 15 दिन बाद दोहरा