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  • Mustard Varieties : अक्टूबर में सरसों की इन चार किस्मों की करें खेती, बंपर होगी पैदावार

    Mustard Varieties : अक्टूबर में सरसों की इन चार किस्मों की करें खेती, बंपर होगी पैदावार

    Mustard Varieties : अक्टूबर में सरसों की इन चार किस्मों की करें खेती, बंपर होगी पैदावार

    Mustard Varieties भारत में मस्टर्ड या सरसों एक मुख्य तिलहन फसल है, जो तेल उत्पादन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सरसों की खेती लगभग हर राज्य में की जाती है, और इसकी अलग-अलग किस्में किसानों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं। हर किस्म की अपनी खुबियाँ होती हैं, जो किसानों को उनके स्थान परिवेश और खेती की स्थिति के अनुरूप चयन करने में मदद करती हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध सरसों की किस्मे और उनकी विशिष्टताओं का वर्णन किया गया है।

    आरएच 725 किस्म

    आरएच 725 किसानो में काफी लोकप्रिय किस्म है। ये वैरायटी अपनी उचित भुगतान और उन्नत तेल उत्पादन के लिए प्रशंसित है। इसका फसल लगभग 130-135 दिन में तयार हो जाती है। इसकी पैदावार 22-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। यह विविधता उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहां थोड़ी अधिक गर्मी हो और मिट्टी की निकल बेहतर हो। इस वैरायटी में पेस्ट और बिमारियों से लड़ने की शमता भी होती है, जो किसानों के लिए इसे एक अच्छी पसंद बनती है।

    राज विजय सरसों-2

    राज विजय सरसों-2 एक और उत्कृष्ट किस्म है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्रों में उगती है। इसकी पैदावार 20-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। इस किस्म का मुख्य विशेष रूप इसकी अच्छी मात्रा और स्वस्थ अनाज है। ये वैरायटी मिड सीजन में खेती के लिए उपयुक्त है और इसमें फसल के रोग से बचाव का भी अच्छा प्रबंध होता है।

    आरएच-761 किस्म

    आरएच-761 एक अधिक उपज देने वाली किस्म है जो किसानों के बीच अपनी अच्छी पैदावार के लिए प्रसिद्ध है। इसकी फसल 135-140 दिन में तयार हो जाती है और 24-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार दे सकती है। ये किस्म भी कीट और बीमारियों के प्रति काफी सहनशील होती है, जो इसे जैविक खेती के लिए एक अच्छा विकल्प बनाती है। इसकी फसल का अच्छा दाना आकृति और तेल की मात्रा इसको व्यवसायिक रूप से सफल बनाती है।

    पूसा बोल्ड किस्म

    Mustard Varieties

    पूसा बोल्ड सरसों की एक प्रसिद्ध क़िस्म है जो भारत के कई राज्यों में खेती के लिए प्रचलित है। इसकी फसल 145-150 दिनों में पक जाती है। ये किस्म काफी अधिक पैदावार देती है जो 25-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। पूसा बोल्ड वैरायटी तेल के उत्पादन के लिए खास मानी जाती है क्योंकि इसमें तेल की अधिक मात्रा होती है। इसमें बिमारियों से लड़ने की शामता भी होती है, जो इसके फूल और दाने को सुरक्षित रखती है।

    आर एच 30 किस्म

    आर एच 30 एक और बेहतर किस्म है जो ठंडी जलवायु के क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी फसल 140-145 दिनों में तैयार होती है और फसल 22-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है। क्या विविधता में उन्नत गुणवत्ता के दाने होते हैं जो तेल उत्पादन में काफी फायदे होते हैं। ये वैरायटी पेस्ट और बिमारियों से काफी हद तक सुरक्षित रहती है और किसानों को अच्छी खेती का अनुभव देती है।

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  • Jasmin Ki Kheti : कीजिये इसकी खेती और कमाइए अच्छी  आई

    Jasmin Ki Kheti : कीजिये इसकी खेती और कमाइए अच्छी आई

    Jasmin Ki Kheti : कीजिये इसकी खेती और कमाइए अच्छी आई

    जैस्मिन या चमेली एक प्रसिद्ध फूल है जो अपनी मीठी सुगंध के लिए जाना जाता है। इसका उपाय न सिर्फ सुगंध तेल और इत्र बनाने में होता है, बल्कि इसके फूलों का व्यवसायिक महत्व भी है। Jasmin Ki Kheti भारत के कई क्षेत्रों में होती है और ये किसानों के लिए अच्छा आर्थिक लाभ देने वाला व्यवसाय बन चूका है।

    Jasmin Ki Kheti कैसे करे

    जैस्मिन की खेती के लिए सबसे पहले अच्छी वैरायटी के बारे में जानें। चमेली के पौधे गर्मियों में अच्छे से उगते हैं और इन्हें छोटी या मीडियम ज़मीन पर उगया जा सकता है। इन्हें लगाने के लिए स्वस्थ और रोगमुक्त पौधे चुनें। पौधों को लाइन में लगाएं और हर पौध के बीच में 1-1.5 मीटर की दुरी रखें। पौधों की जड़ो को जल देने के बाद, इन्हें धूल और गर्मी से बचाना जरूरी है।

    Jasmin Ki Kheti के लिए भूमि और जलवायु

    चमेली की खेती के लिए हल्के तेले वाले स्थान और अच्छी निकल वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। इन्हें खेती के लिए बालुई दोमट मिट्टी या लाल मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। चमेली को उगने के लिए गर्मी और उकति – हर जलवायू की जरुरत होती है, लेकिन ये पौधे अधिक से अधिक सूर्य की रोशनी को पसंद करते हैं। इसलिए इन्हें ऐसे क्षेत्रों में उगया जाता है जहां अधिक गर्मी हो।

    चमेली की खेती का समय

    चमेली की खेती का समय जून-जुलाई या फिर फरवरी-मार्च का होता है। इस समय पौधे की जल्दी वृद्धि होती है और ये ठंड और गर्मी दोनों को अच्छे से झेलते हैं। बीज लगाने के एक साल के अंदर, चमेली के पोधे फूल देने लगते हैं।

    चमेली की प्रसिद्ध किस्में

    Jasmin Ki Kheti

    चमेली की कई प्रसिद्ध किस्में होती हैं जो व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त हैं। कुछ प्रसिद्ध किस्में हैं: जैस्मीनम साम्बक (मोगरा) जैस्मीनम ग्रैंडिफ्लोरम (स्पेनिश जैस्मीन) जैस्मीनम ऑफिसिनेल (कॉमन जैस्मीन) ये सभी किस्में व्यावसायिक फूल उत्पादन में मुख्य हैं और इत्र और परफ्यूम इंडस्ट्री में इनकी मांग होती है।

    खरपतवार नियंत्रण

    चमेली की खेती में खरपतवार का नियंत्रण बहुत जरूरी है। खरपतवार पोधों की वृद्धि को रोकती है और फूल उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, खेती के मध्य काल में, मिट्टी का हल चलाना और हाथ से खरपतवार को हटाना जरूरी होता है। रासायनिक जड़ी-बूटियों का भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन सावधानी के साथ।

    खाद

    चमेली की खेती में जैविक और रासायनिक खाद दोनों का उपयोग होता है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट लगाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। फूलों की अच्छी पैदावार के लिए एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) का योगदान भी जरूरी है। हर साल 2-3 बार खाद देने से पोधों की वृद्धि अच्छी होती है।

    पोधे की देखभाल

    चमेली के पौधो की देखभाल करना बहुत जरूरी होता है। हर महीने मिट्टी को थोड़ा ढीला करना, पानी का सही हिसाब रखना और पोधो को धूल और पत्तियों से दूर रखना जरूरी है। समय-समय पर देखभाल और सफाई करना भी आवश्यक है।

    फासल काटने का समय

    चमेली के फूलों की तोड़ाई उउस समय करनी चाहिए जब फूल आधा खिला हो। सुबह के समय या शाम को तोड़ाई सबसे बेहतर होती है, क्योंकि तब फूलों में सुगंध अधिक होती है। फूल तोड़ने के बाद तुरंत मार्केट में बेचने के लिए भेजने से अच्छी गुणवत्ता बनी रहती है।
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  • Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana : हर फसल के साथ मिलेगा आर्थिक सहयोग

    Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana : हर फसल के साथ मिलेगा आर्थिक सहयोग

    Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana : हर फसल के साथ मिलेगा आर्थिक सहयोग

    Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana

    Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana महाराष्ट्र सरकार ने किसानों के लिए एक खास योजना की शुरुआत की है जिसका नाम है नमो शेतकारी महासंमान निधि योजना। योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है और उन्हें बेहतर उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है। योजना के तहत किसानों को हर साल एक निश्चित राशि दी जाएगी ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके और वे खेती में नई तारीखें अपना सकें।

    योजना का विस्तार

    Namo Shetkari Mahasamman Nidhi Yojana के तहत हर पात्र किसान को महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रति वर्ष एक निश्चित धनराशी (आम तौर पर ₹6,000) दी जाएगी। ये राशि किसान को तीन किस्तों में मिलती है, जो उनके बैंक खाते में सीधे ट्रांसफर होती है। योजना का उद्देश्य उन छोटे और सीमांत किसानों की मदद करना है जो अपने परिवार के साथ मिलकर खेती से अपना जीवन यापन करते हैं। योजना ने महाराष्ट्र के सभी किसानों को अपने दायरे में शामिल किया है, और ये किसानों के लिए एक बड़ा सहारा साबित हुआ है।

    लाभ

    इस योजना के तहत छोटे और और सीमांत किसानों को हर साल ₹6,000 मिलते हैं।
    ये राशि उनके बैंक खाते में डायरेक्ट ट्रांसफर होती है जो आर्थिक सुधार के लिए काफी मददगार होती है।
    योजना से किसान अपनी खेती के खर्च को संभाल सकते हैं जैसे बीज, खाद और फसल की देखभाल के लिए आर्थिक सहायता मिलती है।योजना से उनका जीवन स्थिर है और उन्हें ज्यादा आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
    किसान इस धनराशी को फ़सलों के नुक्सान या किसी भी प्रकार के अन्य आविष्कार खर्च के लिए इस्तमाल कर सकते हैं।

    पात्रता

    किसान महाराष्ट्र राज्य के निवासी होने चाहिए।
    छोटे और सीमांत किसान जो 5 हेक्टेयर से कम जमीन के मालिक हैं, इस योजना के लिए पात्र हैं।
    किसानों का नाम राज्य के किसान रजिस्टर में दर्ज होना चाहिए।
    योजना के लिए वही किसान पात्र हैं जो पहले से किसी और राज्य या केंद्रीय योजना के लाभ नहीं ले रहे हैं जिसमें किसान धन सहायता मिले।

    आवेदन प्रक्रिया

    इस योजना के लिए आवेदन करने के लिए किसान को सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार के कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होता है।
    वहां पर नमो शेतकरी महासंमान निधि योजना का फॉर्म भरना होता है।
    फॉर्म में अपनी व्यक्तिगत जानकारी जैसे नाम, पता, मोबाइल नंबर, जमीन की जानकारी और बैंक खाते का जिक्र करना होता है।
    फॉर्म को ऑनलाइन सबमिट करने के बाद आपको एक पावती पर्ची मिलेगी जिसे भविष्य में रेफर कर सकते हैं।

    आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेज

    आधार कार्ड किसान का जमीन के स्वामित्व के दस्तावेज 7/12 उतरा बैंक पासबुक की फोटोकॉपी जिसका आईएफएससी कोड स्पष्ट हो) मोबाइल नंबर (जो सक्रिय हो) पासपोर्ट साइज फोटो

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  • Pradhan Mantri Mudra Yojana : पाय सरकार से वित्तीय सहायता और करे खेती से जुडी जरूरतों को पूरा

    Pradhan Mantri Mudra Yojana : पाय सरकार से वित्तीय सहायता और करे खेती से जुडी जरूरतों को पूरा

    Pradhan Mantri Mudra Yojana : पाय सरकार से वित्तीय सहायता और करे खेती से जुडी जरूरतों को पूरा

    Pradhan Mantri Mudra Yojana एक सरकारी योजना है जो 2015 में शुरू हो गई थी। इस  योजना का उद्देश्य छोटे और मध्यम उद्योग को वित्त मदद देना है जिससे  वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा सकें। इस योजना के तहत, छोटे व्यापारी, महिला उद्यमियों और नये उद्यमियों को बिना किसी संपार्श्विक के ऋण प्रदान किया जाता है, जो काफी आसान और सहज प्रक्रिया के साथ मिलता है।

    प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के लाभ

    Pradhan mantri mudra yojana

    ऋण के लाभ: इस  योजना में ऋण प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार की गारंटी  या संपार्श्विक देने की गारंटी नहीं होती है।

    कम ब्याज दरें: मुद्रा योजना के तुरंत बाद दिया गया लोन उन्हें कम ब्याज दर पर प्रदान किया जाता है।

    उद्यमिता विकास: इस  योजना से नए उद्यमियों को अपना बिजनेस को शुरू करने   और बढ़ाने  में मदद मिलती है।

    महिला सशक्तिकरण: महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण और ऋण लाभ उपलब्ध हैं, जिनमें महिला उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलता है।

    Apply for Mudra Loan

    मुद्रा लोन प्राप्त करने के लिए आप किसी भी  राष्ट्रीयकृत बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक या एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) में आवेदन कर सकते हैं। लोन का आवेदन पत्र बैंक से या ऑनलाइन भी भर सकते हैं। Click here for direct registration 

    Pradhan Mantri Mudra Yojana Interest Rate

    मुद्रा लोन के लिए व्याज दर बैंक या वित्तीय संस्थान के हिसाब से अलग होती है। सामान्य तौर पर, ब्याज दर 7.5% से लेकर 12% तक हो सकती है। इस दर का आधार आवेदक के क्रेडिट स्कोर और ऋण राशि पर निर्भर है।

    Pradhan Mantri Mudra Yojana Eligibility (पात्रता)

    Pradhan Mantri Mudra Yojana के लिए कुछ बुनियादी पात्रता मानदंड होते हैं:

    आवेदक का भारतीय नागरिक होना जरूरी है।

    व्यवसायिक गतिविधि एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) के अंतर्गत आनी चाहिए।

    ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदक का अपना व्यापार होना चाहिए, छोटे व्यापारी, नई शुरुआत करने वाले उद्यमी, और स्वरोजगार वाले लोग इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं।

    Application Process (आवेदन प्रक्रिया )

    मुद्रा लोन के लिए आवेदन प्रक्रिया काफी सरल है: सबसे पहले आपको अपना व्यापारी प्लान तैयार करना होगा।

    बैंक या एनबीएफसी से संपर्क करें जो मुद्रा ऋण प्रदान करता हो।

    वहां पर ऋण आवेदन पत्र भरें।

    आवेदन के साथ आवश्यक दस्तावेज जमा करें।

    बैंक आपका बिज़नेस प्लान और दस्तावेज़ों को सत्यापित करेगा और ऋण स्वीकृत करेगा।

    Documents Required (महत्वपूर्ण दस्तावेज़ )

    मुद्रा लोन के लिए कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ लगते हैं :

    पहचान प्रमाण (आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी)

    पता प्रमाण (राशन कार्ड, बिजली बिल, पासपोर्ट)

    व्यवसाय प्रमाण (व्यापार का पंजीकरण प्रमाण पत्र या व्यवसाय योजना)

    आय प्रमाण या बैंक स्टेटमेंट

    पासपोर्ट साइज फोटो, सभी दस्तावेजों के माध्यम से, आप अपने ऋण का आवेदन प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं और मुद्रा योजना के तहत ऋण का लाभ उठा सकते हैं।

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  • Mirchi Ki Kheti : कैसे करे सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी की खेती के बारे में

    Mirchi Ki Kheti : कैसे करे सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी की खेती के बारे में

    Mirchi Ki Kheti : कैसे करे सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी की खेती के बारे में

    Mirchi Ki Kheti भारत में एक प्राचीन और लोकप्रिय कृषि क्रिया है। भारत मिर्चों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जहां इसका इस्तेमामल मसाला और स्वाद बढ़ाने के लिए होता है। मिर्ची की खेती किसानो के लिए एक लाभदायक व्यवसाय हो सकता है

    mirchi ki kheti

     

    मिर्ची की खेती कैसे करें

    Mirchi Ki Kheti करने के लिए पहले आपको अच्छे बिजों का चयन करना होता है। इसके लिए उन्नत प्रजाति के बीज का इस्तमाल करना चाहिए जो रोग-मुक्त हो। बिजों को पहले नर्सरी में लगाया जाता है और जब पौधे लगभग 25-30 दिन के हो जाते हैं, तो उन्हें खेत में रोप दिया जाता है। हर 60-75 सेमी की दुरी पर पौधे लगाए जाते हैं ताकि उन्हें बढ़ने के लिए अच्छी जगह मिल सके।

    मिट्टी और जलवायु

    मिर्च की खेती के लिए भारी और चिकनी मिट्टी से बचना चाहिए। इसकी खेती के लिए अच्छी सूखी मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिर्ची को जमीन में पानी रुकने की शमता वाली मिट्टी पसंद है। मिर्च की खेती के लिए गरम और नम मिट्टी वाली जलवायु सही होती है। यदि तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे तो मिर्ची का उत्पादन अच्छा होता है।

    मिर्ची की प्रसिद्ध किस्में

    भारत में मिर्ची की प्रसिद्ध किस्में पाई जाती है, जैसे: गुंटूर मिर्ची: आंध्र प्रदेश की ये मिर्ची तीखी और लाल रंग के लिए मशहूर है।
    कश्मीरी मिर्ची: हल्के रंग और कम तीखेपन के लिए प्रसिद्ध।
    ब्यादगी मिर्ची: कर्नाटक की ये क़िस्म अपने लाल रंग और कम तीखेपन के लिए जानी जाती है।

    Mirchi ki kheti ke lliye ज़मीन की तैयारी

    मिर्ची की खेती के लिए ज़मीन की तैयारी अच्छे तरीके से करनी पड़ती है। पहले खेत को गहरा जोत कर, गन्दे घास-फूस और पुरानी फसल के अवशेषों को निकाल देना चाहिए। जमीन को ध्यान से देखने के बाद, जैविक खाद का प्रयोग करना उचित रहता है ताकि मिट्टी की उर्वरकता बढ़ सके।

    मिर्च की खेती का समय

    mirch ki kheti

    मिर्ची की बिजाई का समय जलवायु के अनुसार बदलता है। ये गर्मियों के मौसम में, फरवरी से मार्च के बीच बिजाई की जाती है। कुछ जगहों पर जून-जुलाई में भी बिजाई की जाती है। बिजोन को पहले नर्सरी में लगाया जाता है और 30-40 दिन बाद पौधे को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाता है।

    मिर्च की खेती में खाद का प्रयोग

    मिर्ची की खेती में जैविक खाद का प्रयोग सबसे अच्छा माना जाता है। गोबर की खाद, वर्मी-कम्पोस्ट, या फिर नीम की खाद का लाभदायक होता है। यदि रसायनिक खाद का उपयोग किया जाए तो एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) 150:60:60 किग्रा/हेक्टेयर अनुपत में दिया जाता है।

    खरपतवार नियंत्रण

    मिर्ची की खेती में खरपतवार नियंत्रण एक महतवापूर्ण कदम है। खरपतवार फसल के पोषक तत्वों को छीन लेते हैं, जिससे मिर्ची की वृद्धि कम हो जाती है। खेत में हाथ से निंदाई या संचेतक दवा का प्रयोग करके खरपतवार को रोका जा सकता है। सही समय पर निंदाई करना उत्पादन को बढ़ाने में मददगार होता है।

    सिंचाई

    मिर्ची की खेती के लिए समय-समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। मिर्च के पौधों को बिल्कुल भी पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि पानी की कमी से फुल और फल छोटे रह जाते हैं। ड्रिप सिंचाई या फर सिंचाई का उपाय मिर्ची के पौधों के लिए सर्वोत्तम होता है, जिसमें पानी की बचत भी होती है और फसल भी अच्छी होती है।

    कटाई

    मिर्ची की कटाई लगभग 90-120 दिन के बीच होती है, जब मिर्चियां लाल या हरे रंग की हो जाती हैं। कटाई के समय, मिर्चियों को हाथों से तोड़ा जाता है। मिर्ची की फसल को सुखा कर बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है या फिर सीधे बाजार में बेचा जा सकता है।

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  • Shimlamirch ki kheti :जाने कैसे करे इस सब्जी की खेती

    Shimlamirch ki kheti :जाने कैसे करे इस सब्जी की खेती

    Shimlamirch ki kheti : जाने कैसे करे इस सब्जी की खेती

    Shimlamirch ki kheti  शिमला मिर्च की वैज्ञानिक खेती से किसान लाखों रुपये कमा सकते हैं। पौधा रोपाई के 75 दिन बाद उत्पादन देना शुरू कर देता है। 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। औसत मूल्य प्रति किलो लगभग 100 रुपये है।

    इसकी खेती आम सब्जियों की तरह हर तरह की जलवायु में होती है। किसानों को अच्छी फलत से भरपूर आय मिलती है। किसान ने बताया कि एक हेक्टेयर खेत में गोबर की खाद डालने के बाद में उसकी जुताई की। उसके बाद, खरपतवार को बाहर निकालने, पाटा लगाने, बैक्टीरिया नाशक दवाओं का छिड़काव करने और शिमला मिर्च की खेती शुरू करने का काम किया गया।

    shimla mirch ki kheti

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    ड्रिप इरीगेशन का उपयोग

    खेती के लिए यह सबसे अच्छा सिंचाई उपाय है। उनका कहना था कि किसान धीरे-धीरे पारंपरिक पानी लगाने की प्रणाली से बाहर आ रहे हैं। इस प्रक्रिया को लागू करने के बाद, पानी की बचत की जा सकती है और आवश्यकतानुसार पानी लगाया जा सकता है। उत्पादन अच्छा होता है और खर्च बचता है। इस तरह हम खाद का सही इस्तेमाल कर सकते हैं। इस प्रक्रिया पर सरकार बहुत अधिक छूट दे रही है।

    Shimlamirch ki kheti mein samay kitna lagta hain 

    नियमित रूप से सही खाद, पानी और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करके अच्छी फसल मिली है। शिमला मिर्च की खेती करने के लिए जमीन का pH 6 होना चाहिए। रोपाई के लगभग 75 दिन बाद, शिमला मिर्च का पौधा पैदावार देना शुरू कर देता है और 40 डिग्री तक का तापमान सह सकता है। एक हेक्टेयर में लगभग 300 क्विंटल शिमला मिर्च लगती है।

    उत्तर प्रदेश में शिमला मिर्च की खेती

    शिमला मिर्च अक्सर दूसरी सब्जियों की तुलना में अधिक महंगा होता है। जिन किसानों ने यह समझ लिया है, वे आज अच्छी कमाई कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में शिमला मिर्च की खेती करने वाले बहुत से किसान हैं। यहां के किसानों ने बनाई शिमला मिर्च दिल्ली से आगरा तक पहुंचती है

    शिमला मिर्च की खेती का समय

    इसकी खेती का समय मुख्य रूप से मानसून के शुरुवात होने से जो जाती हैं जिसमे पहली बुआई जून से जुलाई के महीने में, दूसरी बुआई अगस्त से सितंबर के महीने में और तीसरी बुआई नवंबर से दिसंबर के महीने में

    शिमला मिर्च की खेती कहां होती है

    शिमला मिर्च की खेती वैसे तो सभी राज्यों में होती हैं पर ये राज्य इसकी खेती के लिए ससेब अच्छा वातावरण प्रदान करते हैं पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश

    शिमला मिर्च की खेती कैसे करें

    सबसे पहले आप शिमला मिर्च के बीज को चुने और ध्यान दे की वो अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए फिर बीज को नर्सरी में 6 हफ्ते के लिए बोदे उसके बाद जब पौधे तैयार हो जाये तो उन्हें निकल कर खेती में लगा दे | शिमला मिर्च के पौधे की रोपाई के समय, इसकी लंबाई करीब 16 से 20 सेंटीमीटर और इसमें 4-6 पत्तियां होनी चाहिए | आप पौधे को लगाकर नियमित रूप से सिंचाई देते रहे और याद रहे गर्मी में पानी ज्यादा दे बल्कि सर्दियाँ में कम क्योंकि सर्दियों में जयादा पानी लगाने से फसल ख़राब हो सकती हैं |

    पेदावर कितनी होगी

    जब पौधों के पत्तों में छिद्र होते हैं, तो वे पेड़ों पर पर्याप्त मात्रा में सल्फर डालते हैं। तना छेदक, मोजेक रोग और उकठा रोग जैसे फफूंद कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। समय से देखरेख करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं। किसान ने बताया कि फिलहाल वह लगभग 300 क्विंटल फसल खरीदने के लिए तैयार हैं। लेकिन मौसम की मदद से यह पांच सौ क्विंटल तक जा सकता है।

    Shimlamirch ki kheti ke fayde

    shimla mirch ki kheti

    शिमला मिर्च की खेती से किसानों को अच्छी कमाई होती है. बाज़ार में इसकी कीमत आम तौर पर दूसरी सब्ज़ियों से ज़्यादा होती है | शिमला मिर्च में कई औषधीय गुण होते हैं. इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, पोटैशियम, कैल्शियम, लौह, और अन्य खनिज तत्व पाए जाते हैं | शिमला मिर्च की खेती के लिए ज़मीन का पीएच मान 6 होना चाहिए, इसकी 40 डिग्री तक के तापमान को सह सकता है 

    इस समय कीमत कितनी है?

    इस पौधे का बहुत बड़ा आकार है। यह फल बहुत जल्दी नहीं सड़ता। इस समय 100 किलो शिमला मिर्च की बिक्री होती है। फसल हाथों-हाथ खरीदी जा रही है। इससे लाखों रुपये मिल रहे हैं। यह पैदावार लगभग छह महीने तक जारी रहती है। पौधों को संभालने के लिए लगभग हर महीने एक गुड़ाई आवश्यक है। इससे पौधे हरियाली रखते हैं। खरपतवारों को नियंत्रित करने से पौधों की फलत और सुंदरता बरकरार रहती है।

    और भी ब्लॉग पढ़े https://aapkikheti.com/featured/kisan-andolan/

     

  • Coconut farming : जानने के लिए पढ़िए पूरा ब्लॉग

    Coconut farming : जानने के लिए पढ़िए पूरा ब्लॉग

    Coconut Farming : जानने के लिए पढ़िए पूरा ब्लॉग

    Coconut Farming

    भारत में Coconut farming एक प्रसिद्द और लाभदायक खेती है | यह खेती खास तोर पर तटीय इलाकों में की जाती है जहा पर इसे बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। नारियल ना सिर्फ खाने के लिए उपयोगी होते हैं, बल्कि इसके पेड़ का हर हिस्सा अलग-अलग व्यावसायिक उपयोग के लिए प्रयोग में लाया जाता है। आइए, नारियल की खेती कैसे करें और इससे जुड़े अनेको पहलुओं को समझें।

    नारियल खेती कैसे करें

    Coconut farming करने के लिए सही तकनीक और योजना बनाना जरूरी है
    इसमें सबसे पहले बीजो का चुनाव और उन्हें रोपने का सही तरीका समझना जरुरी होता है | बीज को अंकुरित होने के बाद पेड़ लगाया जाता है। रोपण का सही समय और जगह का विकल्प नारियल की वृद्धि को प्रभावित करता है।

    जलवायु और भूमि

    नारियल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर माना जाता है। गर्म और आर्द्र मौसम नारियल के पेड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए अवश्यक है। 25°C से 30°C के बीच का तापमान नारियल की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है। नारियल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है जिसमें अच्छी जल निकासी होती है।

    किस्में

    नारियल की कई किस्में होती है जिसमे बौनी और लंबी किस्में प्रमुख हैं | लंबी वैरायटी का पौधा लंबा होता है और इसका फल भी ज्यादा होता है, जबकी बौनी वैरायटी का पोधा जल्दी फल देने लगता है और इसका पौधा छोटा होता है। खेती के लिए ‘ईस्ट कोस्ट टाल’ और ‘ड्वार्फ ग्रीन’ जैसी प्रमुख किस्मों को ज्यादा पसंद किया जाता है।

    नारियल के पौधे कैसे लगाएं

    नारियल के बीज को पहले अंकुरित करना होता है। एक अच्छे अंकुरित बीज का विकल्प चुनने के बाद उसे 30x30x30 सेमी के गड्ढे में रोपना होता है। बीज को 8-10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए ताकि पौधे के बीच में उचित जगह हो। पौधों को ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां धूप अच्छी मिले और जल की सही व्यवस्था हो।

    पौधे की देखभाल

    नारियल के पोधों की देखभाल उनकी प्रारंभिक अवस्था में ज्यादा जरूरी होती है। पौधो में से नयी पत्तियों का लगातार निकलना एक अच्छी वृद्धि का संकेत होता हैं लगता है। पोधो को हर एक-दो महीने में प्रॉप अप किया जाता है ताकि वे ठीक से उबर सकें। इन्हें कीड़े और बिमारियों से बचाकर रखना होता है, जिनके लिए नीम का तेल या फेरोमोन ट्रैप का उपयोग किया जाता है।

    खाद

    Coconut farming में सही और संतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग जरूरी होता है। जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट और गाय के गोबर का उपयोग करने से पोधे को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं। एक पोधे को हर साल 500 ग्राम नाइट्रोजन, 320 ग्राम फास्फोरस और 1200 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। उर्वरकों को छिड़कने का सही समय जून और दिसंबर का होता है

    खरपतवार नियंत्रण

    नारियल की खेती में खरपतवार की समस्य अक्सर देखी जाती है। खरपटवार का प्रभाव पोधे की वृद्धि और फलन पर होता है। खरपटवार को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग का उपयोग करना सही होता है। इसके अलावा, रासायनिक जड़ी-बूटियों का उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन इसका संतुलित प्रयोग ही किया जाए तो बेहतर होता है।

    सिंचाई

    नारियल के पोधों की सही तरीके से सिंचाई करना जरुरी होता है उनकी वृद्धि के लिए | शुष्क मौसम के दौरन हर हफ़्ते में एक बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। ड्रिप सिंचाई की प्रणाली बेहतर होती है, क्योंकि इससे पानी का सही वितरण होता है और पानी की बचत भी होती है।

    तुड़ाई

    नारियल के फल की तोड़ाई का समय पौधे की उम्र पर निर्भर करता है | लंबी किस्म का पेड़ 6-7 साल में फल देना शुरू करता है, जबकी बौनी किस्म का पेड़ 4-5 साल में। नारियल जब पानी से भर जाए तब तोड़ा जाता है |

    भारत में नारियल की खेती

    Coconut Farming

    भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में नारियल की खेती के लिए प्रमुख राज्य हैं। भारत दुनिया में नारियल का एक बड़ा उत्पादक देश है। तटीय क्षेत्रों के अलावा अब अनेक दूसरे राज्य भी नारियल की खेती में अग्रसर हैं जहां सही जलवायु और भूमि उपलब्ध है। नारियल की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है और ये एक टिकाऊ व्यवसाय माना जाता है।

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  • lahsun ki kheti : जाने खेती करने का सबसे आसान तरीका यहाँ से

    lahsun ki kheti : जाने खेती करने का सबसे आसान तरीका यहाँ से

    lahsun ki kheti : जाने खेती करने का सबसे आसान तरीका यहाँ से

    लहसुन  एक एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है जो ना सिर्फ रसोई में एक खास जगह रखती है, बल्कि इसका वैद्य महत्व भी है। भारत के कई राज्यों में लहसुन की खेती होती है, और इसकी मांग हर समय बनी रहती है। अगर आप lahsun ki kheti करना चाहते हैं तो पढ़िए पूरा लेख

    Lahsun Ki Kheti Kaise Kare

    लहसुन  की खेती के लिए सबसे पहले आपको अच्छी क़िस्म का बीज चुनना होगा। इसके लिए उस मिट्टी को चुनना जरूरी है जिसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक हो और अच्छी जल निकासी व्यवस्था हो। लहसुन  की खेती अक्टूबर-नवंबर में की जाती है , जब मौसम थोड़ा ठंडा होता है।

    मिट्टी और जलवायु

    लहसुन  की खेती के लिए बाली मिट्टी (दोमट मिट्टी) सबसे अच्छी मानी जाती होती है । मिट्टी का पीएच स्टार 6-7 के बीच होना चाहिए। लसुन ठंडे और नर्म जलवायु में अच्छी तरह से उगता है। लगभग 12-24°C का तापमान इस फसल के लिए अच्छा होता है। सीधी धूप की जरुरत होती है, लेकिन बहुत ज़्यादा बरसात और नम्मी से फ़सल ख़राब हो सकती है।

    लासुन की उन्नत किस्म

    Lahsun ki kheti

    लहसुन की उन्नत किसम को चुनना आपकी पैदावर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कुछ लोकप्रिय उन्नत किस्मे हैं: जी-1 जी-41 जी-50 किस्म में अच्छी कमाई और रोग प्रतिरोध होती है, जो खेती को सफल बनाने में मददगार होती है।

    जमीन की तैय्यारी 

    lahsun ki kheti के लिए ज़मीन का अच्छे से तैयार होना जरूरी है। खेती के पहले जमीन को गहराई से जोतना चाहिए और दो-तीन बार हल चलाना चाहिए ताकि मिट्टी ढीली हो जाए। मिट्टी में जैविक खाद मिलाकर जमीन को और अधिक उपजाओ बनाया जा सकता है।

    बिजाई का समय

    लहसुन की बिजाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच का होता है । ठंड के दौरान बिजाई करने से फसल मजबूत होती है और अच्छी कीमत मिलती है। लहसुन के बीज को लगभग 2-3 सेमी गहराई में लगना चाहिए।

     बीज

    लहसुन के बीज के लिए, बल्ब के लौंग को इस्तेमाल किया जाता है। हर लौंग को एक अलग पौधे के रूप में लगाया जाता है। हर एक लौंग का वजन 8-10 ग्राम के बीच होना चाहिए ताकि पोधे मजबूत और उपजाओ बन सकें।

    खरपतवार नियन्त्रण

    खरपतवार (मातम) लहसुन  की पैदावर पर कम कर सकते हैं, इसलिए उनका नियन्त्रण जरूरी है। फ़सलों के बीच- बीच में वक़्त पर हल चलाकर खरपतवार को हटा सकते हैं। खेती के दौरान जैविक गीली घास का इस्तमाल करने से भी खरपतवार को रोका जा सकता है।

    लसुन की सिंचाई

    लहसुन की खेती में सिंचाई जरुरी रहती है । बिजाई के तुरंत बाद एक हल्का पानी देना जरूरी है। पत्ता सफ़ेद होने पर पानी देना बंद करना चाहिए, लेकिन फसल के दौरान 8-10 दिन के अंदर – अंदर पर सिंचाई जरूरी होती है।

    लसुन की देखभाल

    Lahsun ki kheti

    फसल की देखभाल करने के लिए , रोग-प्रतिक्षमत्ता किसम के बीज का इस्तमाल करें और समय-समय पर कीटनाशकों का प्रयोग करें। जैसी-जैसी फसल बढ़ती है, उसका नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए ताकि कोई भी रोग हो या कीड़े का समय पर इलाज हो सके।

    कटाई

    लहसुन की फसल की कटाई लगभग 5-6 महीने बाद तैयार होती है। जब पत्ते पूरी तरह से सूख जाते हैं तब लसुन को खोद कर निकल लिया जाता है। कटाई के बाद लहसुन  को थोड़े समय के लिए धूप में सुखा कर रखा जाता है ताकि उसकी चमक खत्म हो जाए और लम्बे समय तक स्टोर किया जा सके।

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  • नीला थोथा का खेती में उपयोग : जाने क्या हैं ये और क्या हैं इसके फायदे और नुकसान

    नीला थोथा का खेती में उपयोग : जाने क्या हैं ये और क्या हैं इसके फायदे और नुकसान

    नीला थोथा का खेती में उपयोग : जाने क्या हैं ये और क्या हैं इसके फायदे और नुकसान

    आज बताने जा रहे हैं आपको एक ऐसी चीज़ के बारे में जिसका प्रयोग हम खेती में अगर करते हैं तो खेती में किसी भी तरह की समस्या नहीं होगी क्योंकि ये सबसे शक्तिशाली पेस्टिसाइड हैं | आप इसकी फायदे जान कर हैरान हो जाएंगे तो इसकी पूरी जानकरी जानने के लिए नीला थोथा का खेती में उपयोग को जरूर पढ़े

    नीला थोथा, जिसे कॉपर सल्फेट के नाम से भी जाना जाता है, एक रासायनिक यौगिक है जो खेती में कई तरीकों से उपयोग किया जाता है। इसका रंग नीला होता है और ये एक प्रभावशाली कवकनाशी और कीटनाशक के रूप में काम करता है। आइए इसके बारे में और भी जानकारी लेते हैं।

    नीला थोथा क्या है?

    नीला थोथा एक अकार्बनिक यौगिक है जिसमें तांबा और सल्फर मिलकर बनता है। इसका रसायनिक सूत्र CuSO₄ होता है। ये खेती के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि ये पौधों की फंगल बीमारियों को रोकने के लिए काम आता है।

    नीला थोथा का उपयोग कैसे करें?

    कवकनाशी के रूप में नीला थोथा का उपयोग पौधो में फंगल संक्रमण को रोकने के लिए होता है।
    प्रयोग हम किस तरीके से करे करें: एक लीटर पानी में लगभाग 2-3 ग्राम नीला थोथा घोल कर स्प्रे करें,
    ये फासलों को फंगल रोग जैसे ब्लाइट, रस्ट और पाउडरी मिल्ड्यू से बचाता है।
    पानी के शुद्धिकरण में: नीला थोथा का उपयोग कुछ जगह पे पानी के शुद्धिकरण के लिए भी किया जाता है, जिसका अलगा (काई) का प्रबंधन किया जाता है।

    मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में मदद : तांबे की कमी वाली मिट्टी में इसकी थोड़ी मात्रा मिलाने से मिट्टी के पोषण सुधारने में मदद मिलती है।

    नीला थोथा का खेती में उपयोग Aapkikheti.com

    • फफूंद जनित बीमारियों का इलाज: ये फफूंद जनित बीमारियों से बचाता है जो पौध के विकास के लिए जरूरी होता है।
    • कीट नियंत्रण: ये कीट और कीट से फसल को सुरक्षित करता है, जो फसल के उत्पादन को बढ़ाता है।
    • मिट्टी की तांबे की कमी दूर करता है: अगर मिट्टी में तांबे की कमी है, तो नीला थोथा उसे पूरा करता है और फसल की वृद्धि में सुधार करता है।
    • पानी को शुद्ध बनता है: कई बार तालाबों में पानी आता है, जो नीला थोथा से नियंत्रण किया जा सकता है।
      सुरक्षा उपाय नीला थोथा एक मजबूत रसायन है, इसलिए इसका उपयोग ध्यान से करना चाहिए
    •   हाथ में दास्ताने पहनें: सीधे संपर्क वाली त्वचा हानिकारक हो सकती है।
    • आँखों से दूर रखें: अगर आँखों में चला जाए, तो इसे तुरंट ठंडे पानी से धोएँ।
    • मात्रा का ध्यान रखें: नीला थोथा का अधिक मात्रा पौध और मिट्टी के लिए हानिकारक हो सकता है, इसलिए केवल मात्रा का ध्यान रखें।

    जानकारी और उपाय नीला थोथा को अक्सर बोर्डो मिश्रण के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसका चूना (चूना) और नीला थोथा मिला जाता है जो एक प्रभावशाली कीटनाशक और कवकनाशी होता है।
    ये आसान से बाजार में उपलब्ध है, और इसका उपयोग ऑर्गेनिक और नॉन-ऑर्गेनिक दोनों उत्पादों में किया जा सकता है।

     नीला थोथा से संबंधित महत्वपूर्ण FAQs

    • प्रश्न 1: क्या नीला थोथा सभी फसलों के लिए उपयोगी है?
      हां, नीला थोथा विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयोगी होता है, लेकिन इसका उपयोग फसल और मिट्टी की स्थिति के अनुसार करना चाहिए। अधिक मात्रा में उपयोग करने से फसलों को नुकसान हो सकता है।
    • प्रश्न 2: नीला थोथा का उपयोग करते समय किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?
      नीला थोथा एक केमिकल है, इसलिए इसका उपयोग करते समय सुरक्षा के लिए दस्ताने और मास्क पहनना चाहिए। इसे फसल पर सही मात्रा में और सही समय पर छिड़कना चाहिए।
    • प्रश्न 3: नीला थोथा का अधिक उपयोग फसलों पर क्या प्रभाव डाल सकता है?
      यदि नीला थोथा का अधिक मात्रा में उपयोग किया जाए तो यह फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है। इससे पत्तियाँ जल सकती हैं और फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
    • प्रश्न 4: क्या नीला थोथा पर्यावरण के लिए सुरक्षित है?
      यदि नीला थोथा का उपयोग अनुशंसित मात्रा में किया जाए तो यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है। परंतु अत्यधिक उपयोग से जल स्रोतों में प्रदूषण हो सकता है, जिससे जलीय जीवन प्रभावित हो सकता है।

    इस प्रकार, नीला थोथा का उपयोग कृषि में फसलों की सुरक्षा और पोषण के लिए महत्वपूर्ण है, परंतु इसका उपयोग उचित मात्रा और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।

    निर्णय नीला थोथा खेती में एक बहुत महत्व पूर्ण तत्व है जो पौध के विकास और रक्षा के लिए अवष्यक होता है। इसका सही उपाय खेती की सफलता को निश्चित करता है और फसल के उत्पादन में वृद्धि लाता है।

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  • Pm Kissan Samman Nidhi Yojna :  की आ गई तारीख उठाए नई क़िस्त का फायदा जाने क्या हैं न आने का कारण

    Pm Kissan Samman Nidhi Yojna : की आ गई तारीख उठाए नई क़िस्त का फायदा जाने क्या हैं न आने का कारण

    Pm Kissan Samman Nidhi Yojna : की आ गई तारीख उठाए नई क़िस्त का फायदा जाने क्या हैं न आने का कारण

    Pm Kissan Samman Nidhi Yojna प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा चलाई जा रही एक योजना जिसके माध्यम से सरकार किसानो के खाते में साल में 6000 रुपए तीन किस्तों में देती है

    इस योजना को 1 दिसंबर 2018 को जारी गया था जिसमे से उसकी 16 वी क़िस्त इस साल 28 फरवरी को जारी की और 17 वी क़िस्त 18 जून को जारी कर दिया गया था पर अब इंतजार हैं 18 वी क़िस्त के भुगतान का समय अक्टूबर तक का बताया गया है

    और अगर आप दस्तावेज़ में कुछ दस्तावेज बदलाव करवाना चाहते हैं तो सरकार के द्वारा चलाये जा रहे अभियानों में आप उसमे बदलाव करवा सकते हैं जिसके द्वारा आप इसका फायदा उठा सकते हैं

    यह योजना बहुत महत्वपूर्ण योजना हैं क्योकि इस योजना से उन किसानो को मदत मिलती हैं जिसकी आय के स्रोत काम इसी वजह से सरकार उन्हें ये योजना देती हैं अगर आप भी किसान हैं तो ये योजना में जरूर आवेदन करे और फायदा उठाये

    योजना के लिए सरकार की मुख्य वेबसाइट ये हैं https://pmkisan.gov.in/

    PM Kisan 18th Installment Date 2024

    सरकार ने हाल ही में पीएम सम्मान निधि योजना की 18 वीं क़िस्त की तारीक जारी कर दी हैं जो 5 अक्टूबर हैं जिसमे किसान भाइयों को अगले 2000 रुपए उनके खाते में आ जायेगे

    Pm Kissan Samman Nidhi Yojna में हुए बदलाव को जाने

    1. अपात्र किसान के खिलाफ कार्रवाई : आज के समय चलती योजना का फायदा हर कोई उठाना चाहता हैं पर इंसान गलत राह चुनता हैं और गलत तरह से योजना का फायदा उठता तो इसे देखते हुए सरकार ने उन किसानो के खिलाफ कार्रवाइये करने के आदेश दिए हैं जो धोखा कर रहे हैं
    2. लैंड सीडिंग : जिन किसान भाइयों ने अभी तक अपनी भूमि का पंजीकरण अभी तक नहीं करवाया हैं वो जल्दी करवा ले आपको 17वीं किस्त न मिलने का कारण ये भी हो सकता हैं
    3. आधार लिंकिंग : अगर किसी का मोबाइल नंबर बदल गया हैं या फिर आधार कार्ड से लिंक नहीं हैं तो जल्दी करवा ले वरना आपकी आने वाली क़िस्त नहीं आ पाएगी
    4. केवायसी उपडेट : किसानो को शुरुवात से बोला जा रहा हैं केवाईसी करवाइये और अगर आप केवाईसी नहीं करवाएंगे तो अप इसके फायदे ले सकते यहीं अन्यथा आप इसकी सुविधा से वंचित रह जाओगे अगर नहीं करवाई हैं तो यहाँ Click करें
    5. यदि आते हैं इनकम टैक्स के दायरे में : अगर आपकी आय या आपके घर के किसी भी सदस्य की आय इनकम टैक्स दायरे में आती हैं तो आप इस योजना का लाभ नहीं ले सकते हैं क्योंकि यह योजना उस किसान के लिए जो जीवन यापन करने के लिए परेशान होता हैं
    6. अब घर से कर सकेंगे आवेदन : सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लाभ को घर घर पहुँचाने के लिए मोबोइल ऐप बनाया हैं जिसकी सहायता से आप घर बैठकर ही इस योजना का फायदा उठा सकते हैं

    और अगर आप चाहते हैं की इसी तरह की जानकारी मिलती रहे तो हमारी वेबसाइट Aapkikheti.com पर आवश्य जाये