Sunflower Farming: कैसे पाए सबसे अच्छी किस्म से भारी मुनाफा जाने अभी
आज के समय में Sunflower Farming काफी ज्यादा फायदे दे सकती हैं , क्योंकि इसका उपयोग काफी ज्यादा हैं , और इस वजह से ही इसकी खेती में काफी इलाकों में कई ज्यादा पैमाने पर की जाती हैं | अगर आप भी इसकी खेती की मदटी से अच्छा फायदा उठाना चाहते हैं तो हमारे इस ब्लॉग को जरूर पढ़े जो आपको इसकी खेती में काफी ज्यादा फायदे देगा | अगर आप खेती से जुड़ी ऐसी ही जानकारी जानना चाहते हैं , तो यहाँ क्लिक करे
Sunflower Farming: कैसे पाए सबसे अच्छी किस्म से भारी मुनाफा जाने अभी
सूरजमुखी का वैज्ञानिक नाम “हैलीएन्थस” (Helianthus) है, जो दो शब्दों से बना है — हैलीअस (Helios) यानी सूर्य और एन्थस (Anthus) यानी फूल। यह फूल हमेशा सूरज की दिशा में मुड़ता है, इसलिए इसे “सूरजमुखी” कहा जाता है। सूरजमुखी भारत की एक प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसके बीजों में लगभग 48–53% तक खाने योग्य तेल पाया जाता है। इसका तेल हल्के रंग, स्वाद और उच्च लिनोलिक एसिड की वजह से हृदय के लिए अत्यंत लाभदायक माना जाता है।
सूरजमुखी के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी
सूरजमुखी की खेती रेतीली दोमट से लेकर काली मिट्टी तक लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। परंतु सर्वोत्तम उपज के लिए भूमि उपजाऊ, भुरभुरी और जल निकास वाली होनी चाहिए।
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पीएच मान: 6.5 से 8 के बीच होना आदर्श है।
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खराब मिट्टी से बचें: अम्लीय या जलभराव वाली भूमि में खेती करने से उत्पादन घट सकता है।
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हल्की क्षारीय मिट्टी भी यह फसल सहन कर सकती है।
Top Sunflower Farming Varieties
भारत में Sunflower Farming की कई उन्नत और हाइब्रिड किस्में विकसित की गई हैं, जो किसानों को कम समय में ज्यादा पैदावार और अच्छी तेल मात्रा देती हैं। नीचे दी गई किस्में अलग-अलग मौसम, मिट्टी और परिस्थितियों के अनुसार सर्वोत्तम मानी जाती हैं 👇
1. Jwalamukhi (ज्वालामुखी)
ज्वालामुखी सूरजमुखी की एक लोकप्रिय दरमियाने कद की किस्म है, जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 170 सेंटीमीटर होती है। यह फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें तेल की मात्रा लगभग 42% तक होती है। औसत पैदावार 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है।
यह किस्म स्थिर उपज और सूखा सहनशीलता के लिए जानी जाती है, इसलिए यह उन क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन करती है जहाँ वर्षा कम होती है।
2. GKSFH 2002
यह एक दोहरी हाइब्रिड (Double Cross Hybrid) किस्म है जो किसानों में काफी लोकप्रिय है। इसका कद मध्यम होता है और यह 115 दिनों में तैयार हो जाती है। औसत पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ और तेल की मात्रा 42.5% तक होती है।
यह किस्म रोगों के प्रति सहनशील होती है और विभिन्न मिट्टियों में भी स्थिर उत्पादन देती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह गर्मी और नमी दोनों परिस्थितियों में संतुलित उपज देती है।
3. PSH 2080 (2019)
PSH 2080 एक नवीनतम (latest) और जल्दी पकने वाली हाइब्रिड किस्म है, जिसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने वर्ष 2019 में विकसित किया था। यह फसल सिर्फ 97 दिनों में तैयार हो जाती है। पौधे की औसत ऊँचाई 151 सेंटीमीटर होती है।
इसकी पैदावार सबसे अधिक, लगभग 9.8 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है। बीज काले और लम्बे होते हैं, जिनका वजन 5.8 ग्राम प्रति 100 बीज होता है। इसमें 43.7% तेल की मात्रा पाई जाती है।
यह किस्म खासतौर पर उन किसानों के लिए उपयुक्त है जो कम समय में अधिक लाभ चाहते हैं।
4. PSH 1962 (2015)
यह हाइब्रिड किस्म 2015 में जारी की गई थी। इसकी औसत ऊँचाई 165 सेंटीमीटर होती है और यह 99 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
इसकी औसत पैदावार 8.2 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि तेल की मात्रा 41.9% होती है। बीज काले और मोटे होते हैं, जिनका वजन लगभग 6.4 ग्राम प्रति 100 बीज होता है।
PSH 1962 उन किसानों के लिए उत्तम है जो जल्दी कटाई वाली फसल चाहते हैं और जिनके खेतों में जल निकासी अच्छी होती है।
5. DK 3849 (2013)
यह किस्म 2013 में विकसित की गई थी और यह एक ऊँची हाइब्रिड किस्म के रूप में जानी जाती है। पौधे की ऊँचाई 172 सेंटीमीटर तक होती है। यह फसल 102 दिनों में पक जाती है और औसत उपज 8.4 क्विंटल प्रति एकड़ देती है।
इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा थोड़ी कम, लगभग 34.5% होती है, परंतु इसकी उपज क्षमता बहुत अधिक है।
यह किस्म विशेष रूप से उन किसानों के लिए उपयुक्त है जो ऊँचे पौधों वाली और रोग-प्रतिरोधक किस्म चाहते हैं।
6. PSH 996 (2012)
PSH 996 एक दरमियाने कद की किस्म है जिसकी ऊँचाई लगभग 141 सेंटीमीटर होती है। यह किस्म कम समय (96 दिनों) में पक जाती है और इस कारण इसे पछेती बुवाई (late sowing) के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।
औसतन यह 7.8 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है, जबकि तेल की मात्रा 35.8% होती है। इसके बीज गहरे रंग के और लंबे आकार के होते हैं, जिनका वजन 6.8 ग्राम प्रति 100 बीज होता है।
यह किस्म उन किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो फरवरी या मार्च में खेती शुरू करते हैं।
सूरजमुखी की खेती कैसे करें
खेत की तैयारी
सूरजमुखी की अच्छी फसल के लिए खेत की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण होती है। खेत को दो से तीन बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसमें हवा का संचार अच्छे से हो सके। प्रत्येक जुताई के बाद सपाट सुहागा चलाकर मिट्टी को समतल करें।
खेत में जल निकासी की व्यवस्था भी जरूरी है, क्योंकि सूरजमुखी के पौधे जल जमाव सहन नहीं कर पाते।
Surajmukhi Ki Buwai Ka Samay
अधिकतम पैदावार प्राप्त करने के लिए सूरजमुखी की बिजाई जनवरी के अंत तक पूरी कर लें। यदि किसी कारणवश बिजाई फरवरी में करनी पड़े, तो रोपाई (पनीरी) विधि अपनाना सबसे अच्छा रहेगा।
इस समय सीधी बिजाई करने से फसल पर कीटों और बीमारियों का अधिक खतरा रहता है, जबकि पनीरी विधि से पौधे अधिक मजबूत और स्वस्थ बनते हैं।
Beej Ko Kaise Boye
सूरजमुखी के बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं। बहुत गहराई में बोने से अंकुरण में देरी होती है, जबकि बहुत उथली बुवाई से बीज सूख सकते हैं। उचित गहराई पर बोई गई फसल तेजी से अंकुरित होती है और बेहतर विकास करती है।
फासला रखें
सही दूरी पर पौधों को लगाने से पौधों को पर्याप्त धूप, हवा और पोषण मिल पाता है।
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दो पंक्तियों के बीच दूरी: 60 सेंटीमीटर
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दो पौधों के बीच दूरी: 30 सेंटीमीटर
यह फासला फसल की बढ़त को संतुलित रखता है और बीमारियों के फैलाव को रोकता है।
Beej Bone Ke Tareka
सूरजमुखी की बिजाई कई तरीकों से की जा सकती है —
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गड्ढा खोदकर हाथ से बिजाई,
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या मशीन द्वारा बैड/मेड़ बनाकर बिजाई।
यदि फसल देर से बोनी हो, तो पनीरी (ट्रांसप्लांटिंग) विधि सबसे उत्तम रहती है। इसके लिए लगभग 1 एकड़ खेत के लिए 30 वर्ग मीटर क्षेत्र में पनीरी तैयार करें।
पनीरी की जड़ों को खेत में लगाने से पहले खेत को हल्की सिंचाई दें ताकि पौधे आसानी से जड़ पकड़ लें।